Chhattisgarh Police's "amazing record"! DGP demonstrates his strength... A 9-year-old case was resolved within 24 hours... Six SIs' increments were withheld for negligence... See the full story here.CG Police

बिलासपुर, 13 नवंबर। CG Police : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सख्त फटकार के बाद राज्य पुलिस महानिदेशक अरुण देव गौतम ने अंबिकापुर के एक 9 साल पुराने आपराधिक मामले में जांच में हुई देरी पर सख्त कदम उठाया है। DGP ने खुद हाईकोर्ट में व्यक्तिगत हलफनामा (Affidavit) दाखिल किया, जिसके 24 घंटे के भीतर ही साक्ष्य के अभाव में केस को बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।

पुलिस विभाग ने लापरवाही के लिए 6 उपनिरीक्षकों (SI) की एक वर्ष की वेतन वृद्धि रोक दी है, जबकि तत्कालीन डिप्टी एसपी मणीशंकर चंद्रा के खिलाफ ‘निराशा’ का दंड (Displeasure) लगाया गया है।

9 साल पुराना मामला 

मामला वर्ष 2016 का है। याचिकाकर्ता लखनलाल वर्मा के खिलाफ अंबिकापुर थाने में धारा 384, 502, 504, 34 भादवि के तहत अपराध दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई कि उनके दो सह-आरोपी पहले ही बरी हो चुके हैं, लेकिन पुलिस जानबूझकर जांच को लंबित रखे हुए है।

6 नवंबर 2025 को हाईकोर्ट ने DGP को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा देने और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जानकारी प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।

DGP ने सौंपी रिपोर्ट, 7 अफसरों पर हुई कार्रवाई

DGP रुण देव गौतम ने अदालत को बताया कि आदेश मिलते ही पुलिस मुख्यालय ने तत्काल जांच के निर्देश दिए। देरी के लिए जिम्मेदार अफसरों पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। संतोषजनक जवाब न मिलने पर 6 उपनिरीक्षक- नरेश चौहान, विनय सिंह, मनीष सिंह परिहार, प्रियेश जॉन, नरेश साहू और वंश नारायण शर्मा की एक वर्ष की असंचयी वेतन वृद्धि रोकी गई। वहीं तत्कालीन डिप्टी एसपी मणीशंकर चंद्रा को ‘निराशा का दंड’ दिया गया है।

 DGP का कोर्ट में हलफनामा

हलफनामे में DGP ने कहा कि जांच के दौरान कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला, इसलिए मामले में अब धारा 169 सीआरपीसी के तहत अंतिम रिपोर्ट (Closure Report) विचारण न्यायालय में पेश की जा रही है। उन्होंने अदालत को भरोसा दिलाया कि हाईकोर्ट के निर्देशों का शत-प्रतिशत पालन किया गया है।

9 साल बाद 24 घंटे में केस बंद

यह संभवतः छत्तीसगढ़ पुलिस का ‘अद्भुत रिकॉर्ड’ है कि जिस केस में 9 साल तक जांच लटकी रही, वह हाईकोर्ट के आदेश के 24 घंटे बाद ही बंद हो गया। मामले ने यह भी सवाल खड़े किए हैं कि बिना साक्ष्य के इतने वर्षों तक एक पत्रकार के खिलाफ केस क्यों लटकाया गया।  

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