Feelings: A human touch! Basant Pando, a child...two presidents and 73 years of memories...President Dr. Rajendra Prasad stayed at Rashtrapati Bhavan...now he wants to meet President Murmu and share his memories.Feelings

रायपुर/अंबिकापुर, 19 नवंबर। Feelings : छत्तीसगढ़ के सरगुजा की मिट्टी एक बार फिर इतिहास को दोहराने जा रही है। जिस धरती ने 1952 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का स्वागत किया था, उसी धरती पर 20 नवंबर को वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कदम रखने वाली हैं। लेकिन इस बार उत्साह सिर्फ राजनीतिक या प्रशासनिक नहीं, यह भावनाओं से भरा हुआ है, खासकर 80 वर्षीय बसंत पंडो के लिए, जिनकी जिंदगी की एक अनमोल स्मृति फिर जीवित होने वाली है।

‘गोलू’ को जब राष्ट्रपति ने गोद में उठाकर नाम रखा ‘बसंत’

वर्ष 1952…सूरजपुर में लोगों का हुजूम, प्रशासन की हलचल, लेकिन उन सबके बीच एक नन्हा बालक था, जिसे सब ‘गोलू’ पुकारते थे। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का काफिला जब गांव पहुंचा, तो गोलू भी भीड़ के बीच खड़ा था। अचानक राष्ट्रपति ने उसे अपनी गोद में उठा लिया। मुस्कुराए…और बोले, इसका नाम बसंत होगा…नया मौसम, नई शुरुआत।

उस पल ने गोलू का जीवन बदल दिया। नाम बदल गया, पहचान बदल गई, और स्मृति ऐसी बनी कि आज भी आंखें नम कर देती है। वही गोलू आज 80 वर्षीय बसंत पंडो हैं।

73 साल बाद फिर ‘राष्ट्रपति से मिलने’ की आस

बसंत पंडो कहते हैं, मैंने जीवन में बहुत कुछ देखा… लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की वह गोद, वह प्यार—सबसे बड़ा अनुभव है। अब जब द्रौपदी मुर्मू जी आ रही हैं, मन में वही पुरानी याद ताज़ा हो गई है। उनसे मिलकर वह क्षण साझा करना चाहता हूं।

राष्ट्रपति मुर्मू के कार्यक्रम में जनजातीय समाज के प्रमुखों से मुलाकात भी प्रस्तावित है। इसी के चलते बसंत पंडो उम्मीद से भरे हुए हैं। उनका कहना है, मैं चाहूंगा कि राष्ट्रपति जी को बताउं, कि एक छोटे बच्चे की जिंदगी कैसे राष्ट्रपति के एक स्पर्श से बदल गई थी।

पंडो समाज की उम्मीदें भी बंधीं

बसंत पंडो सिर्फ अपनी भावनाएं नहीं, बल्कि अपने समुदाय की आवाज भी लेकर राष्ट्रपति से मिलना चाहते हैं। पंडो समाज को विश्वास है कि उनकी यह मुलाकात समाज के लिए नए अवसरों का प्रारंभ बन सकती है।

सूरजपुर के ‘राष्ट्रपति भवन’ में रुके थे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद

सूरजपुर का वह स्थान, जहां 1952 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ठहरे थे, आज भी ‘राष्ट्रपति भवन’ के नाम से जाना जाता है। इस जगह का नाम, इतिहास और यादें आज फिर नए रंगों में खिल उठी हैं क्योंकि उसी इतिहास को छूने जा रही हैं द्रौपदी मुर्मू।

73 साल बाद भी एक बालक की यादें जिंदा हैं, एक राष्ट्रपति की मुस्कान, गोद में उठाने की गर्माहट और एक नया नाम देने की दुलार। अब बसंत पंडो को इंतजार है उस क्षण का जब वे अपने जीवन की सबसे अनमोल स्मृति स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सामने रखेंगे। उनकी आंखों में चमक है, इतनी ही चमक जैसी 1952 में 6 वर्षीय गोलू की थी।

बहरहाल, यह सिर्फ एक मुलाकात की कहानी नहीं…यह समय, परंपरा और सम्मान का ऐसा मिलन है जो इतिहास में फिर एक नई पंक्ति जोड़ने जा रहा है।

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