रायपुर, 21 नवंबर। Jnanpith Award : हिंदी के शीर्ष कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को आज उनके रायपुर स्थित निवास पर हिंदी का सर्वोच्च सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्रदान किया गया। ज्ञानपीठ के महाप्रबंधक आर.एन. तिवारी ने उन्हें सम्मान-पत्र, वाग्देवी की प्रतिमा और पुरस्कार का चेक सौंपा।
सम्मान ग्रहण करते हुए विनोद कुमार शुक्ल ने अपने पाठकों और शुभचिंतकों के प्रति आभार व्यक्त किया। भाषाओं के वर्तमान संकट पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा, जब हिन्दी भाषा सहित तमाम भाषाओं पर संकट की बात कही जा रही है, मुझे पूरी उम्मीद है नई पीढ़ी हर भाषा और हर विचारधारा का सम्मान करेगी। किसी अच्छे विचार या भाषा का नष्ट होना, मनुष्यता का नष्ट होना है।
उन्होंने कहा कि उन्हें बच्चों और युवाओं से विशेष उम्मीदें हैं। लेखन के महत्व पर उन्होंने कहा, हर मनुष्य को अपने जीवन में एक किताब लिखनी चाहिए। अच्छी किताब को समझने के लिए जूझना पड़ता है। शास्त्रीयता पाना है तो सबसे अच्छे साहित्य के पास जाना चाहिए।
आलोचना को लेकर उन्होंने रचनात्मक दृष्टि अपनाने की सलाह दी। उनके अनुसार, किसी अच्छे काम की आलोचना हो तो उसे अपनी ताकत बनाएं। कविता की सबसे अच्छी आलोचना है, उससे अच्छी एक और नई कविता लिख देना। उन्होंने यह भी कहा कि गलत आलोचनाओं ने साहित्य का अधिक नुकसान किया है।
जीवन और सृजन पर बोलते हुए उन्होंने कहा, असफलताएं और आलोचनाएं हर जगह मिलेंगी, लेकिन उनके बीच कहीं छिटका हुआ अच्छा भी मौजूद होता है जिसे देखने की दृष्टि हमें खुद विकसित करनी होती है। जब कहीं किसी का साथ न मिले, तब भी चलो अकेले चलो। उम्मीद जीवन की सबसे बड़ी ताकत है।
कार्यक्रम में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘सबके साथ’ का पाठ भी किया, जो भीड़, सामूहिकता और मनुष्य के साझा अस्तित्व की गहरी संवेदना को सामने रखती है।
उन्होंने इस कविता का किया पाठ
सबके साथ
सबके साथ हो गया हूँ
अपने पैरों से नहीं
सबके पैरों से चल रहा हूँ
अपनी आँखों से नहीं
सबकी आँखों से देख रहा हूँ
जागता हूँ तो सबकी नींद से
सोता हूँ तो सबकी नींद में
मैं अकेला नहीं
मुझमें लोगों की भीड़ इकट्ठी है
मुझे ढूँढो मत
मैं सब लोग हो चुका हूँ
मैं सबके मिल जाने के बाद
आख़िर में मिलूँगा
या नहीं मिल पाया तो
मेरे बदले किसी से मिल लेना.
विनोद कुमार शुक्ल : एक परिचय
1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के उन दुर्लभ रचनाकारों में हैं जिन्होंने साधारण जीवन के सबसे छोटे विवरणों में भी अद्भुत जादुई यथार्थ और संवेदना रची। उनकी भाषा न्यूनतम, कोमल और अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
उनका पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ (1971) से शुरू हुई साहित्यिक यात्रा आगे चलकर अनेक महत्वपूर्ण कविता-संग्रहों और उपन्यासों तक फैली। उनका उपन्यास ‘नौकर की कमीज़’ हिंदी कथा-साहित्य में मील का पत्थर माना जाता है, जिस पर मणि कौल ने फिल्म भी बनाई।
‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। उनकी कविताएं और कहानियां दुनिया की कई भाषाओं में अनूदित हुईं। ‘Blue Is Like Blue’ को मातृभूमि पुरस्कार और उन्हें 2023 में प्रख्यात पैन-नाबोकोव पुरस्कार भी मिला।
90 वर्ष की उम्र में भी उनका लेखन ठहरता नहीं संकोची, आंतरिक और बिना किसी आडंबर के हमारे भीतर एक नई खिड़की खोल देता है।

