छत्तीसगढ

संकटग्रस्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने ‘नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी’ योजना ‘मील का पत्थर’

रायपुर। नई सरकार की अत्यंंत महत्वाकांक्षी योजना ‘नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी’ नि:संदेह आज परेशान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने ‘मील का पत्थर’ साबित हो रही है। भले ही ये शैन: शैन: आगे बढ़ रहा है, लेकिन अगर ये यूं बढ़ता हैै तो निश्चत रूप से ‘छत्तीसगढ़’ जरूर एक रोल मॉडल के रूप में उभरेगा। हालांकि इस प्रयोग की चर्चा आज विदेशों में भी हो रही। वैसे भी जब दो प्रमुख पार्टियां (कांग्रेस-बीजेपी) राजनीतिक द्वंद में आमने-सामने होते हैं तो, वे एक-दूसरे को मात देते ही नजर आते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ‘नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी’ प्रोजक्ट की भूरीभूरी प्रशंसा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी करते दिखे।

क्यूं जरूरत पड़ी

राज्य बने 19 वर्ष बीत चुका है। इस दौरान छत्तीसगढ़ कई ऊंचाइयों को छुआ है। लंबी-चौड़ी सड़कों का जाल, ऊंची बिल्डिंग, चमचमाती फ्लाईओवर, सहित बड़े-बड़े निर्माण, खनन जैसे क्षेत्रों में काफी विस्तार किया हैै, लेकिन ‘छत्तीसगढ़’ का मूल निवासी, यानि यहां की ग्रामीण व्यवस्था, जहां एक तिहाई लोग आज भी खेती-बाड़ी और किसानी से जुड़े हैं, वहीं उनके  रोजगार का स्रोत भी है और साधन भी, बावजूद उन्हें कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। क्योंकि धान की खेती के लिए ‘पानी’ की आवश्यकता जो लगातार भू-जल का स्तर गिरने विकट संकट का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा खेती में लागत की बढ़ोत्तरी, गाय-मवेशी के लिए चारा संकट, महंगाई जैसे कई मुद्दों ने ग्रामीणोंं की स्थिति को भयावह बना दिया था। संभवत: नई सरकार  यानि भूपेश बघेल की सरकार ने प्रदेश की इस रिक्तता को महसूस किया और प्रदेश की सत्ता संभालते ही उन्होंने नारा दिया- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा-गरवा-घुरवा अउ बाड़ी एला बचाना हे संगवारी। बहुत हद तक भूपेश सरकार के इस प्रोजक्ट को लांच करने के पीछे की मंशा, वे स्वयं एक किसान का बेटा होना है। जहां एक किसान कर्ज के बोझ तले इतना दब चुका है कि उन्हें ‘आत्महत्या’ ही विकल्प दिखता है। इस दर्द को महसूस किया भूपेश सरकार ने। एक ओर प्रगति तो दूसरी ओर भारी असंतुलन के बीच ‘नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी’ आगे बढ़ने की राह में फलता-फूलता दिख रहा है। राज्य सरकार का मानना है कि इस योजना के माध्यम से भूजल रिचार्ज, सिंचाई और आर्गेनिक खेती में मदद, किसान को दोहरी फसल लेने में आसानी, पशुओं को उचित देखभाल सुनिश्चित हो सकेगी। परंपरागत किचन गार्डन एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती आएगी तथा पोषण स्तर में सुधार आएगा।

चारों ओर से बढ़े मदद के लिए हाथ

चूंकि यह योजना पूरे प्रदेशभर में लागू है अत: जिला कलेक्टर को विशेष निर्देश है कि योजना की सफलता सुनिश्चित करें। बाड़ी लगाने के लिए मनरेगा से सहायता दी जा रही है तो वहीं स्वयं सहायता समूहों को महिला एवं समाज कल्याण के ओर से मदद दी जा रही है। ग्रामीण खुद ही आगे बढ़कर मदद कर रहे हैं। गांवों में आवारा मवेशी की समस्या कम हो रही है, इसलिए किसान दूसरी एवं तीसरी फसल लगाने को लेकर भी उत्साहित है। ज्यादा से ज्यादा लोगों की इस योजना में भागीदारी हो, इसके लिए मुख्यमंत्री स्वयं इस योजना की मॉनिटरिंग करते आ रहे हैं। वहीं, छत्तीसगढ़ के तेज तर्रार एडिशनल चीफ  सेक्रेटरी आर.पी. मंडल को इस योजना की कमान सौंपी गई है।

नरवा को किया पुर्नजीवित

सरकार की सुराजी योजना नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी में से एक जिले मेें स्थित नरवा को पुर्नजीवित किये जाने के लिए गठित क्रियान्वयन समिति की बैठक हुई। कलेक्टर डॉ. भारतीदासन ने कहा कि लगातार गिरते भू-जल स्तर में कमी लाने के लिए भू-जल संवर्धन एवं संरक्षण का कार्य किया जाना है। सतही जल स्त्रोतों का संरक्षण, संवर्धन तथा नदी नालों को पुर्नजीवित कर ग्रीष्म ऋतु तक जल बहाव की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है। इसके लिए जिले के छोटे-बड़े नालों के उद्गम स्थल के नीचे जहां नदी मिलती है। इस अधारना पर भौगोलिक क्षेत्रों की आवश्यकतानुसार वाटर रिचार्जिग हेतु जल संरक्षण एवं सवर्धन संरचना का निर्माण किया जाना है। निर्मित वाटर रिचार्जिग संरचनाओं के संरक्षण द्वारा क्षेत्र के भू-जल संवर्धन को बढ़ावा मिलेगा। प्रारंभ में जिले के छ नालों को चयनित किया गया है। बैठक मेें बताया गया कि ऐसे नालों का चयन किया गया हैए जो छोटे एवं मध्यम आकार के महानदी, खारून एवं कोल्हान नाले में मिलते है। चयनित नालों के ट्रीटमेंट का कार्य नालों के उदगम स्थल से नीचे की ओर नदी संगम तक प्रस्तावित किया गया है। नाला चयन का संदर्भ बिन्दु नदी से नाले का संगम स्थान है। संगम बिन्दु के आधार पर जल ग्रहण क्षेत्र का निर्धारण किया गया है। नालों को पुर्नजीवन देने के लिए न्युनतम 13 वर्ग किमी तथा अधिकतम 261 वर्ग किमी तक कुल 29 वाटरशेड चिन्हांकित किये गये है। उन क्षेत्रों के नालों को प्राथमिकता दी गई है, जहां पेयजल और सिंचाई में कमी हुई है।

रायपुर संभाग में बने 336 गौठान

आयुक्त एलएस केन की अध्यक्षता में गत दिवस कमिश्नर कार्यालय में संभाग स्तरीय अधिकारियों की बैठक आयोजित की गई थी। जिसमें उन्होंने कहा कि रायपुर जिले का बनचरौदा पूरे राज्य के लिए एक मॉडल गौठान के रूप में कार्य कर रहा है। यहां महिला स्व-सहायत समूहों के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट बनाने, गोबर से दीया सहित विविध उत्पाद बनाने, चारागाह, पोल्ट्री, मछली पालन करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किये जा रहे है। संभाग में 336 गौठान बनाएं गये है। इनमें से 91 गौठान रायपुर, 65 महासमुन्द, 65 धमतरी, 48 गरियाबंद और 72 बलौदाबाजार जिले में संचालित है। इनके माध्यम से पशुओं को 4 लाख 4 हजार टीका लगाये गये है।

स्कूल परिसरों में किचन गार्डन को बढ़ावा

नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के तहत बाड़ी कार्यक्रम के माध्यम से रायपुर संभाग मेें कुल 1721 नई बाडिय़ों की स्थापना की गई है। इसके अलावा 1323 नये बाडिय़ों बनाने का कार्य प्रगति पर है। विभाग द्वारा सभी को पौधे और बीज उपलब्ध कराये गये है। 4821 पुराने बाडिय़ों को भी बढ़ावा और तकनीकि मार्गदर्शन दिया गया है। स्कूल परिसरों में किचन गार्डन को बढ़ावा दिया गया है। रायपुर जिले में 206, बलौदा बाजार में 298, महासमुन्द में 159, गरियाबंद 57 और धमतरी में 201 शालाओं में किचन गार्डन संचालित है।

नरवा

इसके तहत आवश्यकतानुसार नालों तथा नालों में एवं नहरों में चेक डेम का निर्माण किया जा रहा है। ताकि बारिश का पानी का संरक्षण हो सके और वाटर रिचार्ज से गिरते भू-जल स्तर पर रोक लग सके। इससे खेती में आसानी होगी।

गरवा

इसके तहत गांवों में जो भी पशु धन है उन्हें एक ऐसा डे-केयर सेंटर उपलब्ध करवाना है जिसमें वे आसानी रह सके और उन्हें चारा, पानी उपलब्ध हो। इसके लिए उसके लिए गोठान निर्माण से लेकर आवश्यक संसाधन, जमीन आदि प्रदान किए जा रहे हैं।

घुरवा

यह एक गढ्डा होता है, जिसमें मवेशियों को गोबर एवं मलमूत्र का संग्रहण किया जाता है। जिससे कि गोबर गैस एवं खाद बनाई जा सके।

बाड़ी

यह घर से लगा एक बगीचा है, जिसमें पोषण हेतु फल-फूल उगाई जा सके।

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