कोरोना का कहर: इन बड़े शहरों के अस्पतालों में डिहाइड्रेशन और बुखार के एक भी केस नहीं
चिलचिलाती धूप और गर्म हवाओं ने दिल्ली में 18 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। हर साल गर्मी और लू की वजह से हीटस्ट्रोक जैसी परेशानियों के साथ मरीजों की भीड़ देखने को मिलती थी, लेकिन पहली बार दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों में रिकॉर्ड गर्मी होने के बाद भी अब तक एक भी केस सामने नहीं आया है।
हालांकि, हर साल इन मरीजों का उपचार करने वाले डॉक्टरों का मानना है कि इस बार कोरोना के चलते लॉकडाउन और देरी से तापमान बढ़ने के कारण मरीज नहीं आ रहे हैं। कुछ का यहां तक मानना है कि गर्मी का सबसे बुरा असर प्रवासी मजदूरों पर है। गंगाराम अस्पताल, दिल्ली एम्स, मैक्स और सफदरजंग अस्पताल में अब तक केस नहीं आए हैं।
मैक्स साकेत अस्पताल के डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि ऑफिस शुरू जरूर हो चुके हैं, लेकिन वहां स्टाफ भी बेहद कम है। जिनके पास चार पहिया वाहन हैं, वे कोरोना के चलते सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। दिल के मरीजों को विशेष ध्यान रखते हुए डिहाइड्रेशन से दूर रहना है।
भारत सरकार के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2001 से 2010 तक दुनिया में भीष्ण गर्मी से 3.70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जिसमें से 1.36 लाख की मौत लू के चलते दर्ज हुई थीं। 1991 से 2000 के बीच छह हजार लोगों की मौत हुई थी। साल 2015 में देश में ढाई हजार लोगों की मौत हुई थी।
दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों से एकत्रित आंकड़ों पर गौर करें तो हर वर्ष मई से लेकर जुलाई तक ओपीडी में औसतन 30 से 40 फीसदी केस गर्मी और लू से ही जुड़े होते हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं शामिल हैं। दिल्ली में हर साल बेघरों की गर्मी के चलते मौत होती है। इस बार एक भी केस सामने नहीं आया है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मी की वजह से मरीज भी रहे हों तो भी अस्पतालों में अब तक कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है। कोरोना के चलते लोग अस्पताल जाने से भी कतरा रहे हैं।
गंगाराम अस्पताल
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के डॉ. अतुल गोगिया का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से लोग घरों से कम निकल रहे हैं। भविष्य को देखते हुए जिस प्रकार गर्मी बढ़ रही है, यह बहुत ही चिंता की बात है। इस स्तर पर गर्मी के बाद तो घर से निकलने वालों के लिए और परेशानी हो जाएगी।
मैक्स अस्पताल
मैक्स के इंटरनल मेडिसिन के डॉक्टर रोमेल टिक्कू ने कहा कि अभी तक गर्मी से संबंधित बीमारी नहीं हो रही है। आम दिनों में इतनी गर्मी के बाद तो लोग इलाज के लिए पहुंचने लगते थे। घर का माहौल ठंडा होता है और लोग लगातार इस दौर से गुजर रहे हैं, वो लगातार घरों में है। इसलिए उन्हें गर्मी से संबंधित बीमारी नहीं हो रही है।
घरों में रहने से बच रही जान : एम्स
एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि हर साल एम्स की ओपीडी और आईपीडी में गर्मी और लू की वजह से मरीजों की काफी संख्या रहती थी, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से मरीज नहीं आए हैं। घरों में रहने से जहां कोरोना का संकट दूर है वहीं गर्मी से बचाव भी हो रहा है।
अभी आ सकते हैं केस
सफदरजंग अस्पताल के डॉ. महेश का कहना है कि इस बार तापमान का उच्च स्तर काफी देर बाद दिखाई दिया है। लॉकडाउन की वजह से जहां गर्मी का एहसास चौथे चरण में हुआ है वहीं तापमान को बढ़े अभी एक ही सप्ताह हुआ है। ऐसे में उन्हें आशंका है कि कुछ दिन बाद सन स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, बुखार इत्यादि के केस आ सकते हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
-एनडीएमए की ही एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, 2002 में भारत में सर्वाधिक 1030 मौतें मध्य प्रदेश में दर्ज की गई थीं। इसके बाद 2003 में आंध्र प्रदेश में 1210 लोगों की गर्मी से मौत हुई थी।
-मई 2019 में आई भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) की अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2020 से गर्म हवाओं की आवृत्ति लगातार बढ़ने वाली है। 1961 से 2005 तक देश में 54 बार गर्म हवाएं दर्ज की गईं। वर्ष 2020 से 2064 तक 138 बार गर्म हवाएं दर्ज की जा सकती हैं।
-अक्तूबर 2019 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की आई अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2100 तक भारत में भीष्ण गर्मी से 15 लाख लोगों की मौत हो सकती है। साथ ही अनुमान जताया कि उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य में 64 फीसदी मौतें दर्ज हो सकती हैं।