जिनकी सुबह ही होती थी ताली और गालियों से…भूपेश सरकार ने बदली वो सुरत…थर्ड जेंडरों की अभिभूत करने वाली साक्षात्कार

रायपुर, 17 दिसंबर। जिसकी सुबह की शुरुआत तालियों और गालियों से होती थी, आज वही हाथ ताली की बजाए पुलिस का डंडा थामे दूसरों की रक्षा करने में जुटी है तो दूसरी ओर समाज के पढ़े लिखे लोग उन्हें गालियां देते नहीं थकते थे, वही जुबां पर आज ढ़ेर सारा सम्मान लिए खड़े हैं।
किसी भी थर्ड जेंडर को फैमिली का सपोर्ट कम ही मिलता है। समाज तो कभी एक्सपेक्ट ही नहीं करता। नतीजन वे या तो ट्रेन में नजर आते हैं या नाचते-गाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ थर्ड जेंडर्स से रू-ब-रू करा रहे हैं, जिन्होंने विपरित परिस्थितियों से गुजरते हुए एक मुकाम हासिल किया।
छत्तीसगढ़ शासन ने आज उन्हें ऐसा पद दिया जिससे पाकर वे अभिभूत हैं, क्योंकि उन्हें सैल्यूट करने और लेने के सम्मान से जो नवाजा गया। तनुश्री साहू, शिवन्या पटेल, नीतू क्षत्रिय, कृषि तांडी, नैना शोरी, दिप्शा यादव, शबुरी, सोनिया जंघेल कहती है, कभी सोचा नहीं था, जो खाकी को देखकर भय या जद्दोजहद में पड़ जाते थे। आज वहीं वर्दी पहने न स्वयं की बल्कि दूसरो की रक्षा में खड़े नजर आते हंै। शबुरी कहती है, बहुत अच्छा लगता है, जब हम किसी के सम्मान में सैल्यूट करते हैं और कोई हमारे सम्मान में हाथ जोड़ते हैं। शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि ये सब हो पाया है विद्या राजपूत जैसे लोगों की वर्षों की कड़ी मेहनत और छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयास से।
आपको बता दे कि छत्तीसगढ़ में थर्ड जेंडर से 13 आरक्षक बने हैं, जिसमें 8 आरक्षक रायपुर से, 2 राजनांदगांव से तो वहीं बिलासपुर, अम्बिकापुर और धमतरी में क्रमश: एक-एक आरक्षक की पदास्थापना हुई। इन्हें ड्यूटी करते हुए करीब 6 महीने हो गए। इस दौरान उन्होंने अपने-अपने अनुभव सीनियर रिपोर्टर शुभ्रा नंदी से साझा किया।
इन प्रत्येक आरक्षकों की एक अपनी कहानी है। इनका एक स्ट्रगल कल भी था और आज भी है, लेकिन उसके बाद भी एक सुकून यह है कि आज वे स्वतंत्र हैं।
सपोर्ट से कार्यक्षेत्र में हुए सहज-सरल
तनुश्री, शिवन्या, नीतू, कृषि कहती हैं कि पुलिस विभाग में खासकर अधिनस्त साथियों का अपनत्व और बड़े अधिकारियों का सपोर्ट ही हमें अपने कार्यक्षेत्र में सहज-सरल होने में बहुत सहयोग देता है। हमारे जैसे जेंडर्स के लिए ऐसा अवसर हमारी जिंदगी को बदल दिया है। नैना, दिप्शा, शबुरी, सोनिया कहती हैं कि हमारे सहयोगी हमें कभी एहसास नहीं करवाया कि हमारा अलग जेंडर है। जीवन में कई ऐसे मौके आए जहां आम लड़कियां हंसी-मजाक करती थी तो हम सिर्फ देखते थे, कभी-कभी तो उलाहनें देते थे तो हम वहां से चले जाते थे।
आज ऐसी ही सैकड़ों आम लड़कियां और लड़के हमारे साथी है, जिनके बीच हमारा अधिकांश समय व्यतित होता है, लेकिन कभी एहसास नहीं हुआ कि हम उनसे अलग हैं। अधिकारियों का रवैया भी ठीक वैसा ही रहता है, जैसे बाकि सबके साथ होता है। कर्मक्षेत्र में हमारे साथ अभी तक कोई भी भेदभाव नहीं हुआ।
अभी भी नाखुश है घर-परिवार
आठ से दस घंटे की ड्यूटी के बाद कभी मन तो हमारा भी करता कि घर-परिवार से बात करें, लेकिन मन को मारना पड़ता है। ये दुख केवल एक का नहीं बल्कि सभी थर्ड जेंडर्स का है। इतना होने के बाद भी वे आज भी घर-परिवार से दूर हैं। हालांकि अभी तक पूरी तरह से समाज का आईना पूरी तरह से नहीं बदला है। तनुश्री, शिवन्या, नीतू, कृषि, नैना, दिप्शा, शबुरी, सोनिया कहती है, वर्षों से चली आ रही लोगों की धारणा यूं ही नहीं बदलेगा, इसके लिए थर्ड जेंडर्स को उस धारा से निकलकर समाज की मुख्यधारा की ओर आना होगा। उन्हें पढ़ाई-लिखाई करके अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा, तब जाकर समाज हमें स्वीकार करेगा।
कोई नहीं जाता अपने घर
पुलिस आरक्षक के रूप में भले ही वे आज लोगों की रक्षा कर रही हो, लेकिन इनके परिवार आज भी उन्हें कई प्रतिबंध में रखना चाहते है। थर्ड जेंडर्स का कहना है कि नौकरी लगने के बाद उनके पेरेंट्स थोड़ी बहुत बातचीत तो करती है, लेकिन जब घर आने की बात करती हूं, तो वे अनेक पाबंधियों का फरमान जारी कर देते हैं। जब अपनों के बीच में ही इतनी पाबंदियां हो तो उस घर से तो अच्छा हम जहां रह रहे हैं वही ठीक हैं।
सपोर्ट मिले तो बन सकती है उच्चाधिकारी
थर्ड जेंडर्स का कहना है कि हमें घर-परिवार से बिल्कुल सपोर्ट नहीं मिलता, इसलिए हमें घर छोडऩा पड़ता है। काम तो नहीं मिलता इसलिए भूख मिटाने भीख मांगनी पड़ती है। अगर इस परिस्थिति में पेरेंट्स का सपोर्ट मिले तो थर्ड जेंडर भी आईपीएस, आईएएस या कोई बड़ा अधिकारी बन सकता है। उनका मानना है कि आज समाज में जिस भी थर्ड जेंडर को उपलब्धि मिली है, वो उनके काबिलियत के बूते मिली, यानी हमारे अंदर भी प्रतिभा है, लेकिन परिवार, समाज का सपोर्ट नहीं मिलने के कारण हम बेघर हो जाते हैं। उस समय कइयों के साथ शारीरिक मानसिक शोषण होता है। सबसे बचने फिर हम अपने समुदाय में जाकर ट्रेनों में ताली बजाकर भीख मांगने पर मजबूर हो जाते है या किसी के शोषण का शिकार होते रहते है। कोई हमारे प्रतिभा को देखना ही नहीं चाहता, उन्हें सिर्फ थर्ड जेंडर ही लगता है।
पुलिस डिपार्टमेंट में इन राज्यों के थर्ड जेंडर शामिल
पहली बार तमिलनाडु में बतौर ट्रांसजेंडर पृथिका यशिनी को पुलिस विभाग का हिस्सा बनने का मौका मिला था।
राजस्थान के जालोर के रानीवाड़ा के जाखड़ी गांव की रहने वाली गंगा द्मद्दमारी बनी चुकी हैं पुलिस कांस्टेबल।
काम के प्रति गंभीर है : वैभव मिश्रा, IR
थर्ड जेंडर काम के प्रति गंभीर है। काम के लिए किसी तरह का बहानेबाजी नहीं करते। उन्हें सभी लोगों का सपोर्ट मिल रहा है। आगे बढऩे की ललक भी इनमें दिखाई पड़ रही है। ड्यूटी के साथ-साथ पढ़ाई भी कर रही है ताकि उच्च पदों पर जा सकें।