छत्तीसगढ

विश्व स्वास्थ्य दिवस : कोरोना को हराने हमें रिस्क तो लेना ही होगा: सिस्टर मसीह

0 इस वर्ष की थीम – नर्सें और दाई स्वस्थ्य और सुखद दुनिया में रहने में हमारी मदद करती हैं

रायपुर। कोरोनावायरस (कोविड-19)  संक्रमण को रोकने में जहां डॉक्टर पूरी मुस्तैदी  रोगियों की सेवा कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर नर्सें एवं एएनएम पूरी तरह से इस संक्रमण को रोकने के लिए समुदाय को जागरूक करने का कार्य कर रही हैं। इस मुश्किल घड़ी में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर खुद को और समाज को सुरक्षित रखने की अपील करने वाली कालीबाड़ी अस्पताल रायपुर की सीनियर सिस्टर सुमन सुषमा मसीह कहती हैं “कोरोना को हराने हमें रिस्क तो लेना ही होगा।”

सिस्टर मसीह का कहना है “परिवार और सगे संबंधियों की मदद करने का मौका तो अक्सर मिल जाता है, परंतु विपत्ति के समय लोगों की सेवा कर देश के साथ खड़े होने का मौका कम ही मिलता है। मुझे कोरेंटाइन किए हुए मरीजों की सेवा करने का अवसर तो नहीं मिला है, बावजूद इसके अस्पताल पहुंचने वाली गर्भवती महिलाओं और उनके परिवार वालों को कोरोनावायरस के खतरे से आगाह कर उन्हें सुरक्षित रखने की जानकारी देना मेरी जिम्मेदारी है।”

“देश को हमारी जरूरत है, हमें अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कार्य करना है और हम करेंगे।“ सिस्टर का सीधा सामना कोरोना संदिग्धों या फिर पॉजिटिव मरीजों से नहीं हैं परंतु कालीबाड़ी चिकित्सालय की आपात चिकित्सा, डिलीवरी, शिशु वार्ड की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। यहां पहुंचने वाले मरीजों और उनके परिवारों से बातचीत कर उनकी पूरी जानकारी ले रही हैं और उन्हें कोरोना के खतरों के प्रति जानकारी दे रही हैं। मरीजों से जानकारी लेकर वह संतुष्ट होना चाहती हैं कि वहां पहुंचने वाला मरीज या उनका सगा संबंधी कोरोना संदिग्ध तो नहीं। जब अपने सवालों से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद  ही सिस्टर मसीह मरीजों एवं अन्य लोगों को कोरोना और साधारण फ्लू के लक्षण बताते हुए उनसे बचने उन्हें घर पर रहने की अपील भी कर रही हैं।

37 वर्षों से नर्स की बागडोर संभालने वाली सिस्टर मसीह को उनकी मां से इस पेशे में आने की प्रेरणा मिली। जबलपुर में शिक्षा ग्रहण करने के बाद उनका परिवार रायपुर शिफ्ट हुआ और उन्होंने  पुराने डीके अस्पताल में नर्स की ट्रेनिंग ली। वह बताती हैं नर्स की ट्रेनिंग उन्हें सहज ही मिल गई क्योंकि इस पेशे में लोग उस जमाने में नहीं आना चाहते हैं। परंतु मन में करूणा और सेवा भावना के चलते उन्होंने ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद उनकी पहली पोस्टिंग जबलपुर ( अविभाजित मध्यप्रदेश) में हुई ,परंतु भाई बहनों की जिम्मेदारी होने की वजह से वह सेवा ज्वाइन नहीं कर सकीं। इसके बाद फिर उन्हें साढ़े तीन माह की विशेष ट्रेनिंग के बाद बिलासपुर में पदस्थापना मिली। उन्होंने कुछ दिनों बाद रायपुर में ट्रांसफर करवा लिया और सितंबर सन् 1981 में रायपुर पॉली क्लीनिक में नर्स की कमान संभाली। इसके बाद से जिला अस्पताल में वे निरंतर सेवाएं दे रही हैं। उनके अथक सेवा भावना और कार्य के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें शिशु वार्ड, जच्चा बच्चा वार्ड, पोषण पुनर्वास केन्द्र, टीकाकरण और किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम इंचार्ज की जिम्मेदारी दी गई। वह अपनी जिम्मेदारी पूरे लगन और मेहनत से निभा रही हैं। सिस्टर मसीह कहती हैं “दो वर्ष बाद मैं सेवानिवृत्त हो जाऊंगी, अस्पताल तो आना नहीं हो सकेगा मगर समाज के उन्नत स्वास्थ्य के लिए अथक प्रयास करती रहूंगी।“

विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम “nurses and midwives”– help us live in a happier, healthieir world. Take a minute to say Thank You” है। स्वास्थ्य-सेवा के पेशे में नर्सों के बगैर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैय्या कराना काफी कठिन है। स्वास्थ्य सेवा में इनका स्थान अहम है। कोरोनावायरस के संक्रमण के इन दिनों में नर्सें सबकुछ भूलकर पूरी मुस्तैदी से लोगों को वायरस से बचने के उपाय सुझा रही हैं। वर्तमान  परिस्थिति कोरोना महामारी के दौरान निःसंकोच  मरीजों के हितों को ध्यान में रखकर डियूटी कर रही हैं, उनके लिए धन्यवाद कहना तो बनता ही है।

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