राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के साथ आदिवासी साहित्यकार सम्मेलन की भी शुरुआत, आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और भविष्य की योजनाओं पर होगी चर्चा
रायुपर। आज से राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की भव्य शुरुआत हो गई है। तीन दिनों तक चलने वाले इस नृत्य महोत्सव में 23 राज्यों, 03 केन्द्र शासित प्रदेशों और 06 बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैण्ड, युगांड़ा, मालदीप और बेलारूस के लगभग 1800 कलाकार प्रस्तुति देंगे। छत्तीसगढ़ के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने बताया कि वे बचपन से लेकर अब तक आदिवासी संस्कृति और पंरपरा को करीब से देखते आये हैं। जल, जंगल और जमीन के संरक्षण के लिए आदिवासी समुदाय की परंपराओं का बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि इन्हें पर्यावरण की फिक्र होती है। अमरजीत भगत के मुताबिक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन सिर्फ एक कदम नहीं है बल्कि इसके आगे की भी रुपरेखा तय की गई है। जिस तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग हो रहा है, उससे ग्लोबल वार्मिग का खतरा सम्पूर्ण विश्व पर मंडरा रहा है। श्री भगत ने बताया कि आदिवासियों का सम्पूर्ण जीवन भौतिक संसाधनों के बजाये जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक वातावरणों पर निर्भर होता है। इसलिये यही आदिवासी प्रकृति के असली संरक्षक साबित हुए है। अमरजीत भगत ने आगे बताया कि इस तीन दिवसीय आयोजन के दौरान प्रकृति को संरक्षित रखने के उपायों पर भी चर्चा की जाएगी। साइंस कॉलेज पर आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव पर केंद्रित आदिवासी समाज के साहित्यकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों की तीन दिवसीय संगोष्ठी न्यू सर्किट हाउस में आज से आरंभ हो गई है। इसमें भारत के आदिवासियों की संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज एवं साहित्य के जानकार शोधार्थियों, बुद्धिजीवियों, प्रोफेसर्स और सामाजिक कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया है। इस समय छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव सिर्फ़ प्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय है। छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा और भव्य आदिवासी नृत्य महोत्सव है। इस आयोजन में देश के तीन शोधार्थियों के शोधपत्र पढ़े जाएंगे। ये शोधार्थी देशभर के विश्वविद्यालयों के 183 शोधार्थियों में से चयनित हैं, जिन्होंने आदिवासी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर रिसर्च करके शोधपत्र प्रकाशित किया है। इन शोधपत्रों को संकलित कर किताबों को रूप दिया जाएगा ताकि आगे लोग जनजातीय संस्कृति को जान सकें। इससे न केवल आदिवासियों संस्कृति के प्रति नई पीढ़ी को जानकारी मिलेगी बल्कि इसे संरक्षित भी किया जा सकेगा।