श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी रायपुर के द्वारा “भारत की सांस्कृतिक विरासत” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन
रायपुर, 24 जून। श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी रायपुर के द्वारा भारत की सांस्कृतिक विरासत ” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत प्रेरणास्रोत कुलाधिपति महोदय श्री रविशंकर जी महाराज जी के आशीर्वाद, एवं माँ सरस्वती के वंदन से किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता माननीय मोहम्मद आरिफ खान, राज्यपाल, केरल रहें ।अति विशिष्ट अतिथि के रूप में यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति परम विभूषित श्री रविशंकर जी महाराज (श्री रावतपुरा सरकार जी) उपस्थित रहें। विशिष्ट वक्ता के रूप में यूनिवर्सिटी के माननीय प्रति-कुलाधिपति श्री राजीव माथुर जी रहें एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता यूनिवर्सिटी के माननीय कुलपति प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार पाठक जी ने किया. वेब संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन कर रहे प्रो. (डॉ.) शोभना झा, अधिष्ठाता, कला संकाय ने सभी वक्ता एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के मुख्यवक्ता वक्ता माननीय मोहम्मद आरिफ खान जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता का देश है। भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य संवाद, धार्मिक संस्कार, मान्यताएं और मूल्य आदि हैं। भारतीय लोग आज भी अपनी परंपरा और मूल्यों को बनाए हुए हैं। विभिन्न संस्कृति और परंपरा के लोगों के बीच की घनिष्ठता ने देश भारत को बनाया है। जिसमें मानव जीवन के लिए भाव, राग और ताल समाहित है। इसलिए हम कह सकते है कि भारतीय संस्कृति वेद, तंत्र एवं योग की त्रिवेणी है। भारत का ज्ञान-विज्ञान युगों से प्रकृति के अनुकूल रहा है और इसी कारण भारत की जीवनशैली भी औरों से हमेशा श्रेष्ठ रही है। भारतीय ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं में ही वह सामर्थ्य है, जिससे भारत अकले नहीं बल्कि पूरे विश्व को शांति पथ पर ला सकता है। भारत को अपने मूल से जुड़े रहने की जरूरत है। भारत अपने ज्ञान को पुनर्जीवित कर दुनिया के बेहतर दिशा की ओर ले जाने में अपना योगदान दे सकता है। भारतीय ज्ञान परंपराएं मनुष्य की आंतरिक शांति और मन की भावनाओं के नियंत्रण में रख सकती हैं। माननीय राज्यपाल जी ने कहा कि भारतीयता को भारत के प्राचीन ज्ञान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। आधुनिक भारतीय को अपने ज्ञान को नहीं भूलना चाहिए।” संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है। भारत इस धरती पर एकमात्र देश है जो आधुनिक सुविधा, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को जोड़ सकता है। हमें धार्मिक विश्वास को छूने के बिना शिक्षा, प्रचीन भारतीय ज्ञान के आंतरिक मूल्यों को शामिल करना चाहिए। हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समूचे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है। उन्होंने कहा कि हमारे विचारकों की ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में गहरी आस्था रही है। ववस्तुतः शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही संस्कृति की कसौटी है। इस कसौटी पर भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से उतरती है।
यूनिवर्सिटी के माननीय प्रति-कुलाधिपति श्री राजीव माथुर जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति व सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति व सभ्यता है। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना जाता है। जीने की कला हो, विज्ञान हो या राजनीति का क्षेत्र भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं किंतु भारत की संस्कृति व सभ्यता आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है।
माननीय कुलपति प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार पाठक जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि ‘भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विशालता और उसकी महत्ता तो संपूर्ण मानव के साथ तादात्म्य संबंध स्थापित करने अर्थात् ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की पवित्र भावना में निहित है। उक्त राष्ट्रीय वेबिनार का संयोजन प्रो.(डॉ.) शोभना झा, अधिष्ठाता कला संकाय एवं सह-संयोजन सुश्री मोनिका मिश्रा, असिस्टेंट प्रोफेसर, विधि विभाग द्वारा किया गया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कप्तान सिंह, अधिष्ठाता, छात्र कल्याण ने किया। संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रांतों से लगभग 1000 से अधिक प्रतिभागी जुड़े हुए थे। यह वेब संगोष्ठी वेबेक्स ऐप के माध्यम से संचालित हुई।
इस संगोष्ठी का प्रसारण यूनिवर्सिटी के फेसबुक पेज एवं यूट्यूब पर भी किया गया। इस अवसर पर प्रदेश व अन्य राज्यों के महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं यूनिवर्सिटी परिवार के प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों की सक्रीय सहभागिता रहीं।