संक्रमण के जोखिम को कम करने में मददगार टेलीमेडिसिन, अस्पताल की भीड़ को कम करने और वायरस से बचाव के लिए जारी हुआ विशेष दिशा-निर्देश
रायपुर. 2 जून 2020 । कोरोना काल में टेलीमेडिसिन मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा है। खासकर उनके लिए जो अस्पताल जाने की स्थिति में नहीं है या वह जो संक्रमण के डर से जाना नहीं चाहते हैं। संक्रमण की स्थिति को भांपते हुए ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने नीति आयोग के साथ मिलकर टेलीमेडिसिन को लेकर 25 मार्च को ही एक गाइडलाइन जारी की थी, जिसके मुताबिक टेलीमेडिसिन के जरिए सिर्फ रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर को मरीजों का उपचार करने की अनुमती दी गयी थी। संचार के विभिन्न साधनों जैसे मोबाइल फोन टैक्स्ट मैसेज, वाट्सऐप, ईमेल आदि के जरिए मनोरोगियों को इलाज परामर्श प्रदान करने की भी सिफारिश की गई थी।
महामारी से लॉकडाउन की इस अवधि में रोगियों को अस्पताल पहुंचने और दवा खरीदने में भी कठिनाई हो रही है। समय पर इलाज और दवा नहीं मिलने के कारण उनके शारीरिक विकार के बढ़ने या ठीक होने की गति रूकने की संभावना है। इस समय टेलीमे़डिसीन चिकित्सीय परामर्श अनुकूल और सार्थक पहल रही है, जिसमें रजिस्टर्ड चिकित्सक रोगियों को वायरस संक्रमण से बचाकर उनका मूल्यांकन कर उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परामर्श प्रदान कर रहे हैं।
इसी कड़ी में 14 मई को सरकार ने भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 में इसे शामिल करते हुए राजपत्र में दिशा-निर्देश प्रकाशित किए जिसके अनुसार, एक पंजीकृत डॉक्टर या चिकित्सा व्यवसायी (आरएमपी) टेलीमेडिसिन के माध्यम से परामर्श दे सकते हैं। इससे पहले भारत में टेलीमे़डिसिन को मान्यता प्राप्त नहीं थी। लॉकडाउन की स्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी टेलीमेडिसिन की सलाह दी है ताकि अस्पताल में लोग कम-से-कम पहुंचें।
डॉ . मल्लिकार्जुन राव , सेंदरी मानसिक स्वास्थ्य अस्पताल के मनो चिकित्सक का कहना है हाल ही में उन्होंने एक नशे के आदि व्यक्ति का उपचार कोरिया के जिला अस्पताल में टेलीमेडिसिन द्वारा किया । नियमित परामर्श से उसमें काफी सुधार हुआ और वह अब बिलकुल ठीक हो चुका है। उनके कुछ मरीजों को कोरबा और मुंगेली के जिला अस्पताल में ही टेलीमेडिसिन द्वारा परामर्श मिला और उनको सेंदरी नहीं आना पड़ा ।
अभी तक उनके पास जिला अस्पतालों, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थय केन्द्रों से ही रोगी टेलीमेडिसिन द्वारा लाभान्वित हो रहे हैं । बहुत कम रोगी हेल्पलाइन द्वारा या खुद से यह सुविधा ले रहे हैं ।
डॉ राव का यह भी कहना है टेलीमेडिसिन की पद्धति के बारे में और जागरूकता बढ़ाने की ज़रुरत है । कई लोगों, यहाँ तक की डॉक्टरों को तो अभी भी मालूम नहीं है कि टेलीसाईंकिएट्री को अब कानूनी वैद्यता मिली है।
दिशा निर्देश इस तरह-
रोगी की सहमति है महत्वपूर्ण – दिशानिर्देशों के अनुसार टेलीमेडिसिन परामर्श गुमनाम नहीं यानि बिना रोगी की पहचान के नहीं होगा। डॉक्टर को मरीज के मूल विवरण जैसे नाम, आयु, संपर्क विवरण, पता आदि की पुष्टि के बाद ही परामर्श प्रदान किया जाएगा। रोगी को डॉक्टर की साख और बुनियादी संपर्क जानकारी भी प्रदान की जानी चाहिए। दूसरे शब्दों में, रोगी और आरएमपी दोनों को एक दूसरे की पहचान जानना आवश्यक है।
ई-प्रिस्क्रिप्शन – सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार टेली चिकित्सकीय परामर्श के बाद वाट्सऐप या ईमेल के जरिए रोगियों को ई-प्रिस्क्रिप्शन दिया जाएगा। ई-प्रिस्क्रिप्शन में रोगी की पहचान का विवरण (नाम, यूएचआईडी और पूर्ण पता), समय, दिनांक और वह स्थान जहां से टेली चिकित्सा दी गई, परामर्श और ऑडियो या वीडियो कॉल का समय, वीडियो कॉल कर मरीज की पहचान (फोटो), पहले से चल रही दवाओं, वर्तमान उपचार और शारीरिक स्थिति परिक्षण की जानकारी अंकित होगी। डॉक्टर सामान्य चिकित्सीय शुल्क भी ले सकता है पर उसकी रसीद भी मरीज को देनी होगी।
ऐसी व्यवस्था– रोगियों की चिकित्सा के लिए डॉक्टरों की तैनाती करने के साथ मेडिकल स्टाफ, एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मी की मौजूदगी में रोगियों की आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए। मोबाइल फोन से वीडियो या ऑडियो द्वारा, सामान्य टेक्सट संदेशों और ईमेल के जरिए मरीजों को परामर्श प्रदान होगा। सरकारी टेलीमेडिसीन प्रैक्टिस गाइडलाइन के अनुसार दिए मरीजों को मैसेज भेजकर चिकित्सकीय सेवा लेना होगा, जिसमें उनका नाम, एप्वाइंटमेंट की तारीख और यूएचआई़डी नंबर देना अनिवार्य होगा। इसके बाद चिकित्सक ऑडियो या वीडियो कॉल द्वारा पंजीकृत या अन्य मरीजों को परामर्श देंगे। चिकित्सक दवाएं लेने और अन्य परामर्श डिजीटल पर्ची वाट्सऐप के माध्यम से मरीजों को भेजेंगे। आपातकाल लगा तो रोगियों को नजदीकी चिकित्सा अस्पताल में जाने या अन्य अस्पताल में रेफर करने की सलाह दी जाती है।
लागू नहीं – अधिसूचना में यह भी कहा गया है यह दिशा-निर्देश डिजिटल तकनीक के उपयोग के लिए सर्जिकल या इनवेसिव प्रक्रिया को दूरस्थ रूप से लागू करने के लिए लागू नहीं हैं। सरकारी अधिसूचना में दवाओं की लिस्ट भी शामिल है जो टेलीमेडिसिन के दौरान दी या नहीं दी जा सकती हैं। कोरोना काल में टेलीमेडिसिन की सुविधा काउंसलिंग में बहुत लाभदायक रही है।
1970 में पहली बार हुआ था इस्तेमाल – विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक पहली बार 1970 में टेलीमेडिसिन यानी दूर से इलाज शब्द का इस्तेमाल हुआ था। उस दौरान फोन पर लक्षण के आधार पर बीमारी की पहचान और इलाज करने की शुरुआत हुई थी। टेलीमेडिसिन में वीडियो कॉलिंग के जरिए भी मरीज को देखा जाता है और ब्लड प्रेशर मॉनिटर के डाटा के आधार दवा दी जाती है। आजकल टेक्नोलॉजी के विस्तार से मोबाइल फ़ोन, विडियो कॉल, ईमेल और अन्य तरीकों से यह किया जा सकता है।