बस्तर दशहरा का ऐतिहासिक पर्व…शुक्रवार की रात कांटों के झूले पर झूलकर ‘देवी’ की अनुमति के बाद हुआ शुरू…
610 सालों का इतिहास
करीब 610 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता के अनुसार बेल के कांटो के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है। बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछन देवी और रैला देवी की पूजा होती है। शुक्रवार रात काछन देवी के रूप में मिर्घान जाति की कुंआरी कन्या अनुराधा ने बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति दी है।
अनुमति है आवश्यक
यह भी मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछन देवी की अनुमति आवश्यक है। इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटो से बने झूले पर लेटाया जाता है। इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है। हर वर्ष पितृमोक्ष की अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर बस्तर राजपरिवार यह अनुमति प्राप्त करता है। इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में इस अनुठी परंपरा को देखने काछन गुडी पहुंचते हैं।