रायपुर, 9 दिसम्बर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से CM हाउस में छत्तीसगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अमर परवानी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सराफा एवं दाल पोहा एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सौजन्य मुलाकात की। पदाधिकारियों ने अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन मुख्यमंत्री श्री बघेल को सौंपा।
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स के महामंत्री अजय भसीन सहित छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष उत्तम गोलछा, मदन जैन, सुनील जैन, पवन बड़जात्या मगेलाल मालू, मोहम्मद हिरानी और छत्तीसगढ़ दाल पोहा एसोसिएशन से राम मंधानी, किशोर भाई, कार्यकारी अध्यक्ष राजेन्द्र जग्गी, विक्रम सिंहदेव, राम मंधान, मनमोहन अग्रवाल, उपाध्यक्ष नरेन्द्र हरचंदानी, मंत्री नीलेश मूंधड़ा, राजेन्द्र खटवानी, जवाहर थौरानी, छत्तीसगढ़ पोहा मुरमुरा उत्पादक महासंघ के अध्यक्ष कमलेश कुकरेजा, राजेश थारानी, पोहा मुरमुरा संघ भाटापारा के संरक्षक अध्यक्ष रंजीत दावानी, राकेेश मंधान, अजय मंधानी, रवि मंधानी, अनिल रोचलानी, नरेन्द्र, हरीश निहलानी, नितिश लोहिया, विकास अग्रवाल, नरेश आर्य उपस्थित थे।
छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के प्रदेश अध्यक्ष अमर पारवानी ने कहा कि, शुल्क में वृद्धि का असर पोहा, दलहन उद्योग व किराना व्यवसाय पर पड़ेगा। यहां के व्यापारी दूसरे राज्यों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे, इसलिए CM से मिलकर कृषि उपज मंडी शुल्क एवं कृषक कल्याण शुल्क वापस लेने का आग्रह किया है।
आपको बता दें कि, मंडियों में पहले व्यापारियों से दो रुपए तक शुल्क लिया जाता था। एक दिसंबर से लागू नए नियम के बाद मंडी शुल्क की राशि एक रुपए बढ़ाकर 3 रुपए कर दी गई। इसके अलावा कृषक कल्याण के नाम पर दो रुपए का अतिरिक्त शुल्क भी लगा है।
इस तरह, 100 में अचानक पांच रुपए बढ़े तो व्यापारियों ने कई मंडियों में धान का रेट 14 -15 सौ घटाकर 12-13 सौ रुपए कर दिया है। धान के रेट में इतनी बड़ी कमी से खलबली मच गई है। इस मुद्दे पर राजिम, अभनपुर और कुरुद मंडियों किसानों और व्यापारियों में विवाद हो चुका है और कई जगह तनाव के हालात हैं। दरअसल पिछले साल दिसंबर में विधानसभा सत्र के दौरान मंडी शुल्क में संशोधन किया गया था। इससे पहले 100 रुपए पर न्यूनतम 50 पैसे और अधिकतम दो रुपए तक शुल्क लिए जाते थे।
नए नियम के मुताबिक अब व्यापारियों को 100 रुपए पर कुल पांच रुपए का भार पड़ेगा। धान के अलावा बाकी फसलों पर डेढ़ रुपये शुल्क तय किया गया है। यह शुल्क राज्य में आने या राज्य से बाहर जाने वाले सभी उत्पादों पर लागू होगा।
प्रदेश में कृषि उपज मंडी 1969-70 से अस्तित्व में आया है। पहले इसका संचालन नगर पालिका या नगर पंचायतों के माध्यम से होता था। तब किसानों और व्यापारियों दोनों से ही आधा-आधा मंडी शुल्क लिया जाता था। लेकिन मंडी अधिनियम लागू होने के बाद 1970-71 से किसानों मंडी शुल्क लेना बंद कर दिया गया। तब से यह शुल्क सिर्फ व्यापारियों से ही लिया जाता है।
अतिरिक्त रुपए यह है शुल्क का गणित
धान पर मंडी शुल्क पहले 2% था। जिसे 1% बढ़ाकर अब 3% कर दिया गया है। वहीं इस बार कृषक कल्याण के नाम से 2% अतिरिक्त शुल्क भी लिया है। यानी अब खरीदी करने वालों को 100 रुपए में 5 रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा। इसी तह उन्हारी यानी चना लाखड़ी में यह शुल्क 1% था जिसमें कृषक कल्याण में 50 पैसा जोड़ा गया है।
धान बच न जाए इसलिए मंडी में विक्रय
धान खरीदी केन्द्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार किसानों से प्रति एकड़ 15 क्विंटल की दर से धान खरीदती है। राज्य के कई क्षेत्रों में प्रति एकड़ औसतन 18 से 20 क्विंटल उत्पादन भी होता है। इसलिए कई किसानों के पास एक एकड़ पीछे 15 क्विंटल बेचने के बाद भी 5-6 क्विंटल तक धान बच जाता है। इसे ही मंडियों में बेचा जाता है, जहां खुला बाजार है।
कई जिलों में मंडी शुल्क 500 करोड़ रुपए बकाया
कृषि उपज मंडी द्वारा वसूला जाने वाला मंडी शुल्क पांच सौ करोड़ से ज्यादा का बकाया है। सबसे ज्यादा बिलासपुर संभाग में चार सौ करोड़ से अधिक का है। जबकि सरगुजा में 48.99 करोड़ रुपए, रायपुर में 13.52 करोड़ रुपए तथा बस्तर में 6.82 करोड़ रुपए का टैक्स बकाया है। यह एफसीआई, मार्कफेड और सहकारी समितियों के साथ व्यापारियों से वसूला जाना है।