Anti-Naxal Operations: A major breach in the Naxalite network's command structure...! These effective government weapons have become milestones...see the sequence hereAnti-Naxal Operations

सुकमा, 18 नवंबर। Anti-Naxal Operations : आंध्र प्रदेश पुलिस के ग्रेहाउंड्स ने मारेदुमिल्ली इलाके में एक सर्च ऑपरेशन के दौरान यह मुठभेड़ की। मुठभेड़ में कुल 6 नक्सली ढेर हुए, जिसमें माडवी हिडमा और उनकी पत्नी राजे भी शामिल हैं। इसके साथ ही 2 एके 47, 1 रिवॉल्वर, 1 पिस्टल बरामद की गई।

हिडमा पर कई बड़े हमलों का आरोप था, जिसमें 2013 का दरभा घाटी नरसंहार और 2017 का सुकमा हमला शामिल हैं। हिडमा PLGA बटालियन नंबर 1 का प्रमुख और CPI (माओवादी) की केंद्रीय समिति का आदिवासी सदस्य था। उस पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था।

इस सफलता के बाद सुरक्षा बलों ने नक्सली नेटवर्क को गंभीर झटका दिया है। आंध्र प्रदेश पुलिस और ग्रेहाउंड्स का अभियान अभी भी जारी है।

पिछले नक्सल विरोधी अभियानों का विश्लेषण सरल, तथ्यपरक और समझने, हिडमा जैसे बड़े कमांडर की मौत नक्सली नेटवर्क को किस तरह प्रभावित करती है।

नक्सल विरोधी अभियानों का विश्लेषण

भारत में नक्सलवाद को नियंत्रित करने के लिए पिछले दो दशकों में कई बड़े, रणनीतिक और लगातार चलने वाले अभियान चलाए गए हैं। इनका प्रभाव धीरे-धीरे नक्सलियों के नेटवर्क, नेतृत्व, संख्या और संचालन क्षमता पर बड़ा असर डालता गया।

प्रमुख नक्सली अभियान (2000–2024)

1. ऑपरेशन ग्रीन हंट (2009–2014)

  • पहला बड़ा समन्वित अभियान
  • CRPF, COBRA, राज्य पुलिस की संयुक्त कार्रवाई
  • नक्सलियों के कोर एरिया में दबाव बढ़ा
  • लेकिन कई बड़े हमलों (दंतेवाड़ा 2010, झारखंड 2011) में सुरक्षाबलों को नुकसान हुआ।

2. ग्रेहाउंड ऑपरेशन्स (आंध्र प्रदेश पुलिस की सफलता का मॉडल)

  • तेज, अत्यधिक मोबाइल, जंगल युद्ध में दक्ष
  • आंध्र–ओडिशा सीमा (AOB) में नक्सलियों की रीढ़ तोड़ी
  • कई टॉप कमांडर मारे गए, इस मॉडल को बाद में अन्य राज्यों ने भी अपनाया।

3. ऑपरेशन प्रहार (छत्तीसगढ़)

  • बस्तर में गहराई तक पैठ बनाना
  • लगातार सर्च ऑपरेशन
  • 2020 के बाद नक्सलियों की पकड़ कमजोर हुई
  • कई बड़े कैडर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हुए।

4. ऑपरेशन जंगल वारियर/ऑपरेशन शकुंतला

  • महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की संयुक्त कार्रवाई
  • गढ़चिरौली और कोरियर इलाके में बड़े एन्काउंटर
  • नक्सलियों की मेडिकल यूनिट, कैंप, हथियार फैक्ट्रियों को खत्म किया गया।

5. हालिया बड़े ऑपरेशन (2021–2024)

  • बस्तर, सुकमा, बीजापुर में बड़ी सफलताएँ
  • 2021: मिनपा हमले के बाद 22 जवान शहीद—इसके बाद लगातार आक्रामक रुख
  • 2024: टेक्नॉलॉजी आधारित ऑपरेशन, ड्रोन, डाटा एनालिसिस, लोकेशन ट्रैकिंग
  • नक्सलियों के 150+ गिरोह खत्म, 70+ टॉप कमांडर या तो मारे गए या आत्मसमर्पण।

नक्सलियों की संरचना पर पिछले अभियानों का प्रभाव

1. टॉप लीडरशिप कमजोर हुई
  • किशनजी, रमन्ना, हरीभूषण, माधवी, सोनू, और अब हिडमा जैसे बड़े नाम समाप्त
  • नेतृत्व की कमी से संगठन की ताकत घटी।
2. कोर कमांड फूटने लगा
  • PLGA बटालियन 1, 2, 4 की क्षमता कमजोर
  • टेक्नॉलॉजी की कमी
  • नए भर्ती लगभग बंद।
3. वित्तीय स्रोतों पर प्रहार
  • वसूली चेन कमजोर
  • ठेकेदारों की सुरक्षा बढ़ने से उगाही पर रोक
  • कई राज्य सरकारों ने सुरक्षा–विकास को साथ लेकर मॉडल बनाया।
4. जमीनी कैडर की संख्या में भारी गिरावट
  • 2009 में अनुमानित 12–14 हजार
  • 2024 में लगभग 3–4 हजार—वह भी बिखरे और कमजोर।

हिडमा के मारे जाने का प्रभाव

1. PLGA बटालियन नंबर 1 का ढहना

यह बटालियन नक्सलियों की सबसे घातक यूनिट थी। हिडमा इसकी रीढ़ था। उसके मारे जाने से, कमांड खाली, मनोबल टूटना और ऑपरेशन क्षमता लगभग आधी हो जाएगी।

2. दरभा, मिनपा, किस्टाराम जैसी जगहों पर हमले करने की क्षमता समाप्त

ये इलाके हिडमा की पकड़ में थे। अब यह नेटवर्क बिना नेतृत्व बिखर सकता है।

3. भर्ती रुकने की संभावना

हिडमा आदिवासी युवाओं को जोड़ने में कुशल था। उसके जाने से भर्ती लगभग रुक सकती है।

4. माओवादी केंद्रीय समिति पर असर

हिडमा केंद्रीय समिति का एकमात्र बस्तर का आदिवासी सदस्य था, इसलिए स्थानी समर्थन घटेगा। पिछले 15–20 वर्षों में नक्सल विरोधी अभियान धीरे-धीरे आक्रामक, रणनीतिक और तकनीकी रूप से अधिक मजबूत हुए हैं। हिडमा जैसे शीर्ष कमांडर का मारा जाना नक्सली आंदोलन की रीढ़ पर सीधा प्रहार है और आने वाले वर्षों में माओवादी संगठन को इससे उबरना बेहद मुश्किल होगा।

About The Author