
रायपुर, 1 मई। Bore Basi ka Jalwa : एक बात बहुत प्रचलित है, जो अपनी चीजों का सम्मान खुद करता है, हर कोई उसका सम्मान करता है, चाहे वह गाय का गोबर हो या बासी बोरे। छत्तीसगढ़ का छत्तीसगढियां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस बात को बखूबी समझा दिया।
मुख्यमंत्री की पहल हुई ग्लोबल
श्रम वीरों को बोरे बासी खाकर सम्मान देने की पहल ने ग्लोबल रूप ले लिया है। प्रदेश नहीं देश नहीं बल्कि विदेशों में बसे छत्तीसगढ़ के लोगों ने आज बोरे बासी खाकर अपनी महान संस्कृति का जश्न मनाया। अमरीका न्यूयार्क से विभाश्री साहू, एलिकॉट सिटी मेरीलैंड से सुमन साहू, लंदन से सौम्या अग्रवाल, दोहा-कतर से कामता प्रसाद शर्मा, लक्समबर्ग यूरोप से डॉ राजीव आनंद साहू इस मुहिम में शामिल हुए।
आज मजदूर दिवस (Bore Basi ka Jalwa) पर जिस सोच के साथ उन्होंने बोरे बासी कॉन्सेप्ट को लोगों तक पहुंचाया, निस्संदेह उसका असर आगामी चुनावों में देखने को मिलेगा। कभी किसी ने नहीं सोचा होगा कि साधारण गाय का गोबर एक दिन राष्ट्रीय पहचान बनाएगा, लेकिन परिणाम आज सामने है उसी तरह बोरे बासी को ही देख लीजिए।
यह बात सही है कि ‘बोरे बासी’ को खास तौर पर ग्रामीण के मेहनत किसान मजदूर बखूबी उसका स्वाद जानते है, लेकिन आज 21वीं सदी में शहरी जीवनधारा में एक सामान्य व्यक्ति को छोड़िए कोई IPS, IAS जैसे पद में बैठा इंसान भी पानी वाला भात खा सकता है इसकी तो कोई कल्पना ही नहीं की होगी, लेकिन छत्तीसगढियां CM बघेल ने इसे कर दिखाया।
इसका मतलब है कि छत्तीसगढ़ में 70 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी है और किसान यानी कड़ी मेहनत। एक किसान जब अपने खेत जोतता या रोपाई, बुआई करता है तो उसके शरीर का पसीना टप-टप बहता है और तब वह किसान ‘बोरे बासी’ खाकर थकान को दूर कर नई ऊर्जा के साथ काम करता है।
CM बघेल ने उसी नब्ज (Bore Basi ka Jalwa) को पहचाना और श्रमिक दिवस के दिन बोरे बासी को देश दुनिया के सामने इस तरह सामने पेश की। वैसे यह सीएम भूपेश बघेल के लिए एक बहुत ही सकारात्मक इशारा है जो उन्हें अंत के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में मदद करेगा।