Religious discourse: If birth and death are predetermined, why is suicide considered a sin? Premananda Maharaj gave a simple yet profound answer... Listen to the video.Religious discourse

प्रयागराज, 4 अक्टूबर। Dharmik Pravachan : हाल ही में आयोजित एक धार्मिक प्रवचन कार्यक्रम में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज से एक श्रोता ने एक जिज्ञासा भरा प्रश्न पूछा- अगर हमारी जन्म और मृत्यु पहले से ही तय है, तो फिर आत्महत्या को पाप क्यों कहा जाता है? इस पर प्रेमानंद महाराज ने बड़े ही सहज लेकिन गूढ़ तरीके से उत्तर दिया, जो वहां उपस्थित सैकड़ों श्रद्धालुओं को सोचने पर मजबूर कर गया।

आत्महत्या ईश्वर की व्यवस्था में हस्तक्षेप है

आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने कहा, जन्म और मृत्यु का समय ईश्वर द्वारा तय होता है, लेकिन आत्महत्या उस तय समय से पहले शरीर को छोड़ने का प्रयास है। यह वैसा ही है जैसे परीक्षा की अवधि खत्म होने से पहले उत्तर पुस्तिका खाली छोड़कर बाहर निकल जाना। ना सिर्फ आपका नुकसान होता है, बल्कि आप ईश्वर की दी गई जिम्मेदारी और जीवन-पाठ को अधूरा छोड़ देते हैं।

प्रेमानंद जी ने समझाया कि जीवन एक परीक्षा है, जिसमें हर कष्ट, हर संघर्ष एक प्रश्न है। इनका उत्तर देने के लिए ही आत्मा को मानव जन्म मिला है। अगर कोई आत्महत्या करता है, तो वो उन सवालों से भागता है, उनका समाधान नहीं करता। यही वजह है कि शास्त्रों में आत्महत्या को पाप कहा गया है।

जीवन ईश्वर की अमानत है

उन्होंने आगे कहा, हमारा शरीर और जीवन हमारी संपत्ति नहीं, बल्कि परमात्मा की दी हुई अमानत है। जब तक उसकी इच्छा न हो, तब तक उसे छोड़ना अधर्म और अनुचित है।

प्रेमानंद महाराज ने आत्महत्या को एक प्रकार का कर्तव्य विमुखता और ईश्वर की अवज्ञा बताया। उन्होंने कहा कि व्यक्ति चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति में हो, उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि हर अंधेरी रात के बाद सूरज जरूर निकलता है।

समाज को संदेश

प्रवचन के अंत में उन्होंने युवाओं और समाज से अपील की कि मानसिक तनाव और समस्याओं से भागने के बजाय, आध्यात्मिक मार्ग पर चलें, ध्यान और सेवा को अपनाएं। उन्होंने कहा कि संघर्ष जीवन का हिस्सा है, समाधान भी उसी जीवन में छुपा है — आत्महत्या नहीं।

बातों का सार

  • जन्म और मृत्यु तय है, लेकिन आत्महत्या उस नियम का उल्लंघन है
  • आत्महत्या ईश्वर की परीक्षा अधूरी छोड़ने जैसा है
  • यह कर्तव्य से पलायन और आध्यात्मिक अपराध है
  • जीवन की कठिनाइयों से लड़ना ही धर्म है
  • मानसिक तनाव के समय आध्यात्मिकता, सेवा और सत्संग का सहारा लें

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