छत्तीसगढ

Utkal Diwas : 1 अप्रैल को उत्कल दिवस मधुसुदन चैक में उत्कल गौरव डाॅ. मधु बाबु के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर मनाया जाएगा उत्कल दिवस- पुरन्दर मिश्रा

रायपुर, 29 मार्च। Utkal Diwas : उत्कल दिवस प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव, संगठन महामंत्री पवन साय ,सांसद बृजमोहन अग्रवाल विधायक राजेश मुणत, मोतीलाल साहू, सुनील सोनी, महापौर मिनल चौबे, सभापति सूर्यकांत राठौर सहित संगठन के पदाधीकारी निगम के समस्त पार्षदगण उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न होगा

देश के उड़ीसा प्रान्त को 01 अप्रैल 1936 में पृथक राज्य के रूप में मान्यता मिली। तब आज के छत्तीसगढ़ का एक बड़ा भू-भाग उड़ीसा से पृथक हो गया और ये उड़िया भाषा-भाषी के लोग जिसमें विभिन्न जाति के लोगों का समावेश है, छत्तीसगढ़ में ही रह गए और आज की स्थिति में पूरे छत्तीसगढ़ में उड़िया समुदाय की बात करें तो इनकी कुल जनसंख्या 35 लाख से भी ज्यादा है, जो राज्य की सबसे बड़ी ओबीसी जाति साहू, जिसकी संख्या 30,05,661 है से भी ज्यादा है। इस तरह इन उत्कल वासियों की राजनीतिक महत्ता को भी स्थापित करने की जरूरत थी। हालांकि इसकी शुरुआत 90 के दशक से ही शुरू हो गई थी और छत्तीसगढ़ में पहली बार 1994 में 01 अप्रैल को उत्कल दिवस मनाया गया। तब पुरन्दर मिश्रा महज 30-32 साल के थे और इन्कम टैक्स की प्रैक्टिस किया करते थे। यहीं से उन्होंने उड़िया समाज के लोगों को एक जुट करने का प्रयास किया। नतीजन आज वे उसी समाज का प्रतिनिधित्व करते प्रदेश की राजधानी उत्तर विधानसभा से विधायक हैं।

हर साल 1 अप्रैल को उत्कल दिवस मनाया जाता है जिसे ओडिशा दिवस के नाम से भी जाना जाता हैै। क्योंकि इस दिन 1936 को बिहार और उड़ीसा प्रांत से अलग होकर ओडिशा राज्य का गठन हुआ था यह दिन ओडिशा की संस्कृति और इतिहास के जश्न का दिन है।
यह ओडिशा की समृद्ध संस्कृति, कला, साहित्य और इतिहास का जश्न मनाने का अवसर है। स्वतंत्र राज्य के लिए संघर्ष की याद में उत्कल दिवस ओडिशा के लोगों की एकता और गौरव की भावना को मजबूत करता है। यह दिन ओडिशा के लोगों द्वारा एक अलग राज्य के लिए किए गए संघर्ष और बलिदान को याद करने का भी एक अवसर है। लोगों को ओडिशा की संस्कृति और इतिहास के बारे में जागरूक करने और उसे बढ़ावा देने में भी इस दिन का महत्व अधिक है। इस लिए आइये हम सब मिलकर समस्त उत्कल भाई इस गौरवमयी दिवस को जश्न और हर्षोउल्लास के साथ मनाये।

वैसे तो छत्तीसगढ़ का कोई कोना नहीं जहां इस समाज के लोग निवासरत नहीं करते। बावजूद सबसे ज्यादा जिन क्षेत्रों में इनकी आबादी सबसे ज्यादा है उनमें रायपुर, रायगढ़, जगदलपुर, कांकेर, कोंडागांव, दंतेवाड़ा, सारंगढ़, सरायपाली, बसना, पिथौरा, खल्लारी, महासमुंद, गरियाबंद, भिलाई, दुर्ग के अलावा जशपुर, कुनकुरी, लैलूंगा, तनाखार, पुसौर, सरिया, बरमकेला, सरगुजा, बिलासपुर सहित अन्य क्षेत्र शामिल है। बता दें कि 35 लाख से भी ज्यादा उड़िया समाज के लोगों में आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों के साथ-साथ कमजोर तबके के लोगों का भरमार है और इस समाज के अंतर्गत 18 से भी ज्यादा विभिन्न जाति के लोग सम्मिलित हैं।

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