छत्तीसगढ

अंबेडकर अस्पताल की एक और उपलब्धि, मायस्थेनिया ग्रेविस के मरीज का सफल ऑपरेशन, पहली बार प्लाज्मा फेरेरिस

रायपुर, 11 दिसंबर। पंडित जवाहरलाल नेहरु स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से संबद्ध डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जन एवं विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कांत साहू एवं उनकी टीम द्वारा 19 वर्षीय मायस्थेनिया ग्रेविस के मरीज का सफल ऑपरेशन करके मरीज को नया जीवनदान दिया। 2 माह पहले भी इसी प्रकार का ऑपरेशन किया गया था जिसमें मरीज को 42 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखना पड़ता था। परंतु इस बार प्लाज्मा फेरेरिस तकनीक का उपयोग ऑपरेशन के पहले किया गया जिससे मरीज को सिर्फ एक ही दिन वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। आज वह मरीज स्वस्थ होकर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो रही है एवं अगले सत्र में कॉलेज में प्रवेश लेकर बीकॉम की पढ़ाई करने वाली हैं।

भिलाई की रहने वाली 18 वर्षीय बबीता यादव जो कि 12वीं पास है एवं इस बीमारी के कारण पढ़ाई छोड़ना पड़ा था उसको 9 महीने से थकान ,कमजोरी एवं सांस फूलने की शिकायत हुई। धीरे धीरे यह बीमारी इतनी बढ़ गई कि उसको चलना तो दूर आंख खोलने, खाने पीने एवं सांस लेने में परेशानी होने लगी। कुछ दिनों तक यह बीमारी किसी स्थानीय चिकित्सकों को समझ में नहीं आ रही थी। फिर उन्होंने भिलाई के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ अनूप से परामर्श लिया। वहां पर पता चला की मरीज की छाती में हृदय के ऊपर एक ट्यूमर है ,जिसके कारण उसकी मांसपेशियों में कमजोरी आ गई है । इस बीमारी को मायस्थेनिया ग्रेविस कहते हैं। अब तक इस मरीज को दवा देकर उसके मांसपेशियों को सक्रिय रखने का प्रयास किया जा रहा था परंतु दवा की बहुत अधिक मात्र देने के बाद भी उस की मांसपेशियों की कमजोरी ठीक नहीं हो रही थी। उसके बाद मात्र एक ही उपाय बचता है की उसके हृदय के ऊपर स्थित कैंसर को ऑपरेशन करके बाहर निकाला जाए जिससे मरीज पूर्णता स्वस्थ हो जाए एवं दवाई लेने की आवश्यकता ना पड़े। इसके लिए मरीज को डॉक्टर कृष्ण कांत साहू विभागाध्यक्ष हॉर्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी मेडिकल कॉलेज रायपुर, रिफर किया गया जहां पर डॉ साहू ने ट्यूमर की बायोप्सी, कंट्रास्ट सीटी स्कैन एवं रिसेप्टर एंटीबॉडी की मात्रा का टेस्ट करवा कर बीमारी के स्टेज का पता लगाया एवं ऑपरेशन के लिए क्रमबद्ध योजना बनाई।

क्या होता है मायस्थेनिया ग्रेविस

इस बीमारी में मरीज की मांसपेशियां (muscle) खासकर आंख, सांस नली (trachea) फेफड़ा (lungs), डायफ़्राम (diaphragm), आहार नली एवं हाथ पैर की मांसपेशियां बहुत ही ज्यादा कमजोर हो जाती है, जिससे बीमारी के प्रारंभ में थकान, चलने में परेशानी एवं कमजोरी आती है एवं बीमारी बढ़ने पर आंख खोलने एवं सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह सब इसलिए होता है क्योंकि मरीज के शरीर में एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी बननी प्रारंभ हो जाती है , जो हमारे शरीर की मांसपेशियों को क्रियाशील रखने वाली न्यूरोट्रांसमीटर्स जिसको ऐसीटाइल कोलीन (acetylcholine)कहा जाता है, यह न्यूरोट्रांसमीटर (neurotransmitter)एक विशेष प्रकार के रिसेप्टर (receptor)से जुड़कर मांसपेशियों में संकुचन (contraction)पैदा करता है, उस रिसेप्टर को यह एंटीबॉडी नष्ट कर देता है जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। यह बीमारी थाइमस ग्रंथि के कैंसर वाले मरीजों में अक्सर होता है। यह बीमारी 100000 लोगों में से ०.3 लोगों में होता है।

इस तरह चरणबद्ध तरीके से हुआ मरीज का इलाज

2 माह पूर्व हुए ऑपरेशन में मरीज का ऑपरेशन के बाद 10 दिनों तक 5 साइकल प्लाज्मा फेरेरिस का किया गया था एवं मरीज को 42 दिनों तक वेंटिलेटर में रखना पड़ा था ।परंतु इस बार इस स्ट्रेटजी में परिवर्तन किया गया जिसमें मरीज को ऑपरेशन के 15 दिन पहले से ही पांच साइकल प्लाजमा फेरेरिस का दिया गया। इस प्लाज्माफरेसिस से मरीज के शरीर में स्थित एंटीबॉडी को छानकर शरीर से बाहर निकाल दिया गया, जिससे मरीज को ऑपरेशन के बाद मांसपेशियों में कमजोरी ना हो एवं वेंटिलेटर से जल्दी निकल जाए। यह प्रदेश में अपने तरह का अनूठा एवं प्रथम प्रयोग था और यह पूर्णतया सफल हुआ। यह प्लाज्माफरेसिस डीकेएस के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉक्टर आरके साहू के मार्गदर्शन में हुआ।
प्लाज्मा फेरेरिस के पांच चक्र समाप्त होने के 4 दिन बाद मरीज को ऑपरेशन में लिया गया। जिसमें मरीज के हृदय के ऊपर स्थित ट्यूमर को निकाला गया। यह एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन था क्योंकि यह ट्यूमर महाधमनी एवं फेफड़े की मुख्य धमनी और ह्रदय से चिपका हुआ था। मरीज की छाती की हड्डी को बीच से काटकर खोला गया एवं हृदय के ऊपर स्थित ट्यूमर को निकाला गया। 10*8*5 सेमी का यह ट्यूमर लगभग 500 ग्राम का था।

स्वास्थ्य सहायता योजना से हुआ निःशुल्क इलाज

चूंकि प्लाज्मा फेरेरिस एवं हृदय के ऊपर स्थित ट्यूमर को निकालने का ऑपरेशन एक बहुत ही खर्चीली प्रक्रिया है ,लेकिन इसका खर्चा खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत मुफ्त किया गया।
ऑपरेशन के 14 दिन बाद मरीज स्वस्थ होकर अपने घर जा रही है एवं उसे किसी प्रकार की दवाई की आवश्यकता नहीं पड़ रही है। यह लड़की फिर से अपना पढ़ाई प्रारंभ करने जा रही है जो कि उसने कक्षा 12वीं के बाद छोड़ दिया था।

ऑपरेशन टीम में शामिल डॉक्टर्स

सर्जन- डॉ कृष्ण कांत साहू ,(विभागाध्यक्ष हॉर्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी,डॉ निशांत सिंह चंदेल
एनैस्थीसिया एवं क्रिटिकल केयर -डॉ अरुनाभ एवं टीम
रेजिडेंट डॉक्टर- गरिमा एवं डॉ चंदन
नर्सिंग स्टाफ -राजेंद्र साहू, मुनेश एवं टीम

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