छत्तीसगढ

शशिरत्न पाराशर की कलम से: कोरोना से जंग में कोटवारों की अहम भूमिका…महिला कोटवार भी कंधे से कंधा मिलाकर कर रही काम..गर्व है इनपर..

नारायणपुर। सोचता हूँ ..कि यह काम छोड़ दूं लेकिन देश के मौजूदा हालात को देखकर हिम्मत नहीं होती और फिर काम में लग जाता हूँ। मौजूदा दौर में काम या रण छोड़ना देशहित में है, नहीं बिल्कुल नहीं मन से आवाज आयी। जिस तरह देश के वीर जवान मातृभूमि की सेवा करते है। वैसे ही हमारा काम भी इन भोले-भाले, देहाती लोगों की सेवा करना है। देश के असली चौकीदार तो हम है। जब देश आजाद नहीं हुआ तब से हम यह काम कर रहे है। यह सोच उन गांव के कोटवारों की है। जिनसे में कुछ हफ्ते पहले इत्फाक से मिला। कोराना वायरस के संक्रमण के खिलाफ इस लड़ाई में हर कोई लड़ रहा है। कोटवार भी इस जंगीबेड़ा में शामिल है। वे इस जंग में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। सरकारी न होकर भी सरकारी फर्ज निभा रहे है। इस लड़ाई में महिला कोटवाररो की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। चाहें वह ग्राम माहका की दशरी हो या धौड़ाई गांव के श्री धानसिंह कश्यप हो, भाटपाल के कोटवार पिलादास या फिर सुलेंगा के संपतराम क्यों न हो। गर्व की बात यह है कि गांववासी इन पर पूरा विश्वास करते है। गांव में या आस पास घटित अपराधिक घटनाओं या कोई भी जानकारी थाने में देने की बजाय कोटवारो को देना सुविधाजनक मानते है। जिले में 60 कोटवार है। जिनमें सात महिला कोटवार भी इस विषम कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में पुरूष कोटवारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बेहतर काम-मुनादी कर लोगों को कोराना वायरस से बचाव की तरीके बता रही है। माहका गाँव की महिला कोटवार दशरी लॉकडाउन से संबंधी सरकारी आदेश या जारी गाइडलाइन की मुनादी कर लोगों को बताती है। उनके पास बेट्री चालित माइक है जिसकी दूर तलक तक आवाज़ लोगों तक पहुँचती है। दशरी का जनहितकारी काम पूरा हो जाता है। वह गाँव के लोगों को ज़रूरी नही होने ओर घर से बाहर नही निकालने की समझाईस भी दे रही है। अन्य पुरुष कोटवार भी अपने-अपने इलाक़ों में लोगों कोअच्छे से हाथ धोकर ही खाना या कुछ खाने की बात की मुनादी कर रहे। जारी सरकारी आदेशों की मुनादी कर भी समझा रहे है।

मालूम हो कि अंग्रेज शासन काल में हर गांव में एक चौकदार की व्यवस्था की गई थी। छत्तीसगढ़ में इन्हें कोटवार कहा जाता है। ग्रामीणों को जागरूक करने व शासन-प्रशासन की महत्वपूर्ण सूचना पहुंचाने की जिम्मेदारी कोटवार सदियों से निभाते आ रहे है। यह इनके काम में शामिल है। इसके साथ ही ग्रामीणों को प्राकृतिक आपदा या विपत्ति पूर्व अनुमान होने की सूचना से वाकिफ और सर्तक करना इनका सबसे महत्वूर्ण कार्य है। मौजूदा हालत में यह काम यह दिन-रात निभा रहे है। अपने इलाके के गांववासियों को मुनादी कर कोरोना से वायरस से सावधान रहने, ग्रामीणों को जागरूक और इसके रोकथाम, नियंत्रण और बचाव तारीकों के बारें में रह-रहकर बता रहे हैं। ये हाथ में लाउड स्पीकर के जरिए ग्रामीणों को घर से न निकलने और बाहरी व्यक्तियों के गांव में प्रवेश से पहले शासन को सूचित करने की बात अपने रोचक ओर स्थानीय भाषाशैली में बता रहे है। इनमें सात महिला कोटवार भी शामिल है। गौर करने वाली बात यह है कि यह काम सरकार की गाइड लाइन का पालन करते हुए कर रहे है। सोशल डिस्टेन्सिंग, मुंह पर मास्क लगाना आदि का भी ध्यान रख रहे है।
हम जानते है, लेकिन शायद नई पीढ़ी के नौजवान इस बात से वाकिफ न हो कि कोटवार ग्रामीण क्षेत्रों में जनता व प्रशाासन के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी होता है। इसके साथ ही वह राजस्व मामलों में महत्वपूर्ण व विश्वसनीय गवाह भी होता है।

नई पीढ़ी के नौजवानों को भी यह बात जानना और समझना जरूरी है। बतादें कि नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर में 67 कोटवारों के पद है। इनमें 60 पद भरे हुए है। इनमें 54 पुरूष और 7 महिला कोटवार है अपना काम बखूवी से निभा रहे है।
राज्य शासन भी इनका ध्यान रख रहा हैं। कोटवारों के जीवकोपार्जन के लिए सेवा भूमि का भी रकबा बढ़ा दिया है। इसे सात से बढ़ाकर 10 एकड़ तक कर दिया गया है। अब राज्य शासन एक एकड़ से 10 एकड़ तक सेवा भूमि भी उपलब्ध कराती है। कुछ वर्ष पहले ही इनके पारिश्रमिक में वृ़िद्ध की गई है । जिनके पास सेवा जमीन है उनके पारिश्रमिक में भी बढ़ोत्तरी हुई थी। नारायणपुर जिले में 17 ऐसे कोटवार है जिनके पास सेवा भूमि नहीं है। उन्हें 4500 रूपये प्रति माह दिया जाता है। एक एकड़ से तीन एकड़ तक भूमि सेवा वाले 7 कोटवार है। तीन एकड़ से अधिक 7.50 एकड़ से कम वाले 8 कोटवार है। और साढे सात एकड़ से 10 एकड़ एवं अधिक वाले 35 कोटवार है। इनको भी नियमानुसार पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। इनमें से वर्तमान में सात पद अभी रिक्त है। कोटवार की मृृत्यु होने पर राज्य शासन द्वारा उनके परिजनों को डेढ़ लाख रूपए की आर्थिक सहायता राशि भी मुहैया कराती है। इनके सेवानिवृत्ति की कोई आयु सीमा नहीं जब तक जान है, तब तक नौकरी है।

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