गल चुकी पैर की हड्डी को इलिजारो विधि ने बनाया चलने लायक, आर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने दी महिला को नई जिंदगी
रायपुर। डेढ़ वर्ष पूर्व सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल महिला मरीज को क्रमबद्ध उपचार के बाद उनके खो चुके आत्मविश्वास को लौटाया। दरअसल, ये काम डॉ. भीमराव अम्बेडकर हॉस्पिटल के अस्थि रोग विभाग के डॉक्टरों के अथक परिश्रम का नतीजा है, जो उस महिला को अपने पैरों पर चलने के काबिल बनाया।
क्षत विक्षत अवस्था में पहुंची थी अस्पताल
अभनपुर की निवासी 27 वर्षीय महिला मोटरसाइकिल से गिरकर क्षत विक्षत अवस्था में अस्पताल पहुंची थी। दुर्घटना में बहुत सारी चोटें अलग-अलग स्थानों पर लगी थीं, इसलिए उपचार के पहले चरण में पांच यूनिट रक्त चढ़ाकर
सबसे पहले मरीज की स्थिति को स्टेबल किया। डॉक्टरों का कहना है कि इस अवस्था को चिकित्सकीय भाषा में ‘इनफेक्टेड गेप नॉन यूनियन फ्रेक्चर टिबिया फिबुला विद मल्टीपल इंजरी’ कहते हैं। दुर्घटना में महिला मरीज के कूल्हे की हड्डी, जांघ की हड्डी और पैर की हड्डी बुरी तरीके से क्षतिग्रस्त हो गई थी। उसमें धीरे-धीरे मवाद आना शुरू हो गया। कूल्हे व जांघ के फे्रक्चर का इलाज किया। उसके बाद घुटने की हड्डी टूट गई थी, उसको रॉड लगाकर ठीक किया।
घाव से मवाद आने की चुनौती को स्वीकारा
इस दौरान डॉक्टरों के सामने सबसे ज्यादा चुनौती थी कि पैर के घाव से निरंतर मवाद आना। ऐसे में किसी और विधि से हड्डी को जोडऩा मुनासिब नहीं लग रहा था इसलिए ‘इलिजारो’ तकनीक को अपनाया। इस तकनीक से उपचार के लिए मरीज का सहयोग भी जरूरी होता है क्योंकि प्रतिदिन फिक्सेशन के स्कू्र को एक तय पैमाने के अनुसार ऊपर-नीचे करना होता है।
तिल-तिल करके नई हड्डी का किया जाता निर्माण
ये सारी प्रक्रिया अस्थि रोग विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एस. एन. फूलझेले के मार्गदर्शन में डॉक्टरों की टीम ने करीब डेढ़ साल तक थोड़ा-थोड़ा कर नई हड्डी का निर्माण किया। उपचार के दौरान सबसे पहले डॉक्टरों ने जांघ की हड्डी को जोड़ा फिर कमर की हड्डी को और सबसे अंत में पैर की हड्डी को ‘इलिजारो’ तकनीक से जोड़ा। इस विधि में प्रतिदिन एक-एक मिलीमीटर हड्डी को इलिजारो उपकरण के जरिये बढ़ाते गया। कई महीनों के अथक प्रयास के बाद औसतन 8 से 9 सेमी हड्डी बढ़ाकर मवाद के कारण गली हुई हड्डी के स्थान पर नई बनी हड्डी को जोड़ा।
समझे इलिजारो पद्धति को
इलिजारो सिस्टम आर्थोपेडिक सर्जरी में उपयोग की जाने वाली बाहरी फिक्सेशन का एक प्रकार है, जो हड्डियों को लंबा या पुनव्र्यवस्थित करती है। इलिजारो तकनीक का उपयोग आमतौर पर जटिल और खुले हुए हड्डियों के फ्रेक्चर या हड्डियों के टूटने पर किया जाता है। इसका नाम सोवियत संघ के आर्थोपेडिक सर्जन ‘गैवरिल अब्रामोविच इलिजारोवÓ के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इस तकनीक को आगे बढ़ाया। इसमें एक बाह्य फिक्सेटर होता है जिसमें स्टेनलेस स्टील या टाइटेनियम के छल्लों या रिंग से हड्डी को फिक्स किया जाता है। ये छल्ले आपस में एडजेस्टेबल नट के माध्यम से छड़ों से जुड़े रहते हैं। एडजेस्टेबल यानी अपनी सहूलियत के अनुसार इन्हें एडजेस्ट किया जा सकता है। इलिजारो तकनीक से उपचार करने वाले डॉक्टर व स्पोट्र्स इंजरी विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र अहिरे बताते हैं कि हड्डी और नरम उत्तक शरीर में दुबारा निर्मित हो सकते हैं। उपचार की इस विधि में कुछ समय बाद हड्डियों की लंबाई बढऩे लगती है। हड्डियों के बढऩे के कारण जहां पर हड्डी टूट गई है वहां की हड्डी को लंबा कर सकते हैं। इसमें मनुष्य के स्वयं के शरीर की हड्डी को कट करके ट्रांसपोर्ट करके वहां नई हड्डी को बनाकर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह तनाव के सिद्धांत पर कार्य करती है। अस्पताल में आथ्र्रोस्कोपी से इलाज की बेहतर सुविधा उपलब्ध है। बेस्ट विशेषज्ञों के नेतृत्व में मेकाहारा में बच्चों में क्लब फुट व सीमा पर तैनात घायल जवानों के घुटने तथा लिगामेंट के सफल उपचार भी किया जा रहा है। यहां हड्डियों के ट्यूमर का ऑपरेशन होने के साथ, आथ्र्रोस्कोपी के जरिये विशेष प्रक्रिया से हड्डियों की बीच स्थित लिगामेंट का पुनर्निमाण कर जोड़ों की समस्याओं से मरीजों को राहत मिलते देखा जा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में पॉलीट्रामा, नेगलेक्टेड ट्रामा, आथ्र्रोस्कोपिक रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी हिप तथा नी रिप्लेसमेंट सर्जरी (कूल्हे तथा घुटने के जोड़), कैंसर ट्यूमर का ऑपरेशन, बच्चों में जन्मजात विकृति क्लब फुट जैसे गंभीर बीमारियों के इलाज भी संभव हो रहा है।
विशेषज्ञों की टीम
अस्थि रोग विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एस. एन. फूलझेले, एनेस्थेसिया विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा जैन शाह, डॉ. राजेन्द्र अहिरे, डॉ. सौरभ जिंदल, डॉ. गौतम कश्यप तथा डॉ. अभिषेक तिवारी, डॉ. विनीत जैन, डॉ. नीतिन वले, डॉ. प्रणय श्रीवास्तव व डॉ. संजय नाहर की मुख्य भूमिका रही।