छत्तीसगढ

दाया पैर की नस को बायें पैर की खून के नस से जोड़ कर महिला के पैर कटने से बचा लिया

दाया पैर की नस को बायें पैर की खून के नस से जोड़ कर महिला के पैर कटने से बचा लिया

0 एसीआई के कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी के डॉक्टरों ने की मरीज की सफल सर्जरी
रायपुर। पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से संबद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर (सीटीवीएस) सर्जरी विभाग द्वारा एक्स्ट्रा एनाटामिक इलियो फिमोरल क्रॉस ओवर बायपास सर्जरी ( extra anatomical ilio-femoral crossover bypass surgery ) के जरिये दायें पैर के खून की नस को कृत्रिम नस (artificial graft) द्वारा बायें पैर की खून की नस को जोड़ कर विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं उनकी टीम के द्वारा पूरा पैर (जांघ) कटने से बचा लिया गया।
इस बीमारी में मरीज के बायें पैर की मुख्य नस जिसको इलायक आर्टरी ( iliac artery) एवं पिंडली की नस जिसको पॉप्लीटियल आर्टरी ( popliteal artery ) कहते हैं, उसमें ब्लॉकेज होने के कारण बायें पैर में रक्त प्रवाह ( Blood Supply ) नहीं हो पा रहा था जिसके कारण बायें पैर का पंजा पूरी तरह से सड़ गया था और यह बड़ी तेजी से पूरे पैरों को अपनी चपेट में ले रहा था यदि यह ऑपरेशन नहीं करते तो मरीज के पैर को जंघे से काटना पड़ता। ऑपरेषन के बाद बायें पैर में भी रक्त प्रवाह प्रारंभ हो जाने से मरीज की स्थिति सामान्य हो गई है। चूंकि पैर का पंजा पूरी तरह से सड़ गया था और शरीर में गैंगरीन का जहर ( toxemia) फैल रहा था इसलिए पांव को पैर से अलग करना पड़ा। घाव भरने के बाद मरीज नकली पैर की सहायता से अपना सामान्य जीवन जी सकता है।

सड़ने लगा था पैर

कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि इस ऑपरेशन की प्रक्रिया में दायें पैर की धमनी को जिसको इलायक आर्टरी ( iliac artery ) कहते हैं, को कृत्रिम नस के द्वारा, बायें पैर की नस फीमोरल आर्टरी ( femoral artery ) से जोड़ दिया जाता है। इस बीमारी को चिकित्सकीय भाषा में युनीलैटरल एओर्टो इलायक ( unilateral aortoiliac ) एवं पॉपलिटियल आर्टरी ब्लॉकेज ( popliteal artery blockage ) कहा जाता है। सामान्य भाषा में इसे पेरीफेरल आर्टेरियल डिसीज ( peripheral arterial disease PAD ) कहा जाता है। इस बीमारी में हृदय से निकलने वाली मुख्य नस जिसको महाधमनी (एओर्टा) कहा जाता है, जो पेट में जाकर दो भागों में बंट जाता है और दोनों अलग-अलग पैरों में रक्त की सप्लाई करते हैं।। इस खून की नस के बंद होने के कारण पैर काला पड़कर सड़ना प्रारंभ हो जाता है जिसको गैंगरीन कहा जाता है। जैसा कि इस केस में हुआ था। प्रारंभ में जब खून की नस में रूकावट कम होता है तो पैरों में खून का दौरा सामान्य से कम होता है। इस स्थिति में मरीज को थोड़ा दूर चलने के बाद पैरों में खासकर पिंडलियों में दर्द होना प्रारंभ हो जाता है। जिसको क्लाडिकेसन ( claudication ) कहा जाता है एवं जैसे-जैसे नसों में ब्लॉक बढ़ जता है तो मरीज के पैरों में लगातार दर्द बना रहता है जिसको रेस्ट पेन ( Resting Pain ) कहा जाता है एवं नसों की रूकावट और बढ़ने पर (पूरी तरह से बंद होने पर) पैर काला होकर सड़ना प्रारंभ कर देता है। ऐसी स्थिति में पैर काटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता। यह बीमारी ठंड के सीजन में और बढ़ जाती है।

ब्लॉकेज होने के कारण

धूम्रपान, तंबाकु, गुड़ाखू, अनियंत्रित मधुमेह, हाई कोलेस्टराल एवं वैस्कुलाइटिस ( vasculitis )। यह ठीक उसी तरह है होता है जिस प्रकार हृदय की नसों में रूकावट होता है जिसको कोरोनरी आर्टरी डिजीस ( CAD ) कहते हैं। पूर्व में इस बीमारी का एक ही इलाज होता था जिसमें पैर को काट दिया जाता था परंतु आज बहुत सारी नयी तकनीक आने के कारण नसों में रूकावट की स्थिति जान ली जाती है एवं उसके अनुसार इलाज किया जाता है। यह बीमारी इतनी सामान्य है कि प्रत्येक ओपीडी में कम से दो या तीन मरीज इस बीमारी ( peripheral arterial disease PAD ) से ग्रसित होता है।

चोट लगने से प्रारंभ हुई समस्या

70 वर्षीय महिला को 3 महीना पहले खेत में काम करते समय अंगुलियों के बीच केंदुआ (एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन ) हो गया था। यह चोट धीरे-धीरे फटे पंजे को चपेट में ले लिया एवं बायां पैर का पूरा पांव काला होकर सड़ गया था एवं शरीर में जहर फैलना प्रारंभ हो गया था। पहले लोकल डॉक्टरों से इलाज के नाम पर केवल एंटीबायोटिक एवं दर्द निवारक गोली लेते रही परंतु इसके बाद भी कोई लाभ नहीं मिला। फिर समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी मिली कि एसीआई में खून की नसों की बीमारी का इलाज होता है। इस महिला में बीमारी का कारण वैस्कुलाइटिस (एओर्टा आर्टराइटिस) था क्योंकि यह धूम्रपान, गुड़ाखू का सेवन नहीं करती थी एवं उसको मधुमेह भी नहीं था।

ऐसे हुआ ऑपरेशन

सबसे पहले मरीज के पैर का कलर डॉप्लर करवाया गया एवं उसके बाद पेट एवं पैर की खून की नसों का सी. टी. एंजियोग्राफी करायी गयी जिससे पता चला कि उसके पेट के अंदर बायीं मुख्य धमनी जिसको इलायक आर्टरी कहते हैं एवं घुटने एवं पिंडली की नस में ब्लाकेज था। इस ऑपरेशन में मरीज के दायें पैर की नस जिसको इलायक आर्टरी कहते हैं, को बायें पैर की फीमोरल आर्टरी (जंघें की खून की नस) से एक कृत्रिम नस जिसको पी. टी. एफ. ई. ( PTFE ) ग्रॉफ्ट कहा जाता है, से जोड़ दिया गया एवं पिंडलियों एवं घुटने की नस को खोल कर कोलेस्ट्राल प्लॉक को निकाला गया एवं नस की साइज बढ़ाने के लिए पी. टी. एफ. ई. पैच लगाया गया। ऑपरेशन के बाद पैर में पुनः रक्त का प्रवाह प्रारंभ हो गया, एवं सड़े हुए पांव को काट कर अलग कर दिया गया। इसमें 7 एम.एम. की रिंग एन्फोर्सड ग्रॉफ्ट ( ring enforced graft) का प्रयोग किया गया था जिसको मुम्बई से मंगाया गया था।
इस ऑपरेशन को एक्स्ट्रा एनाटामिकल इलियोफीमोरल क्रॉस ओवर बायपास एवं पॉप्लीटियल आर्टरी एण्डआरटेरेक्टॉमी एवं पैच प्लास्टी ( extra anatomical ilio femoral crossover bypass and popliteal artery PTFE patch plasty) कहा जाता है। यह ऑपरेशन साढ़े तीन घंटे तक चला एवं 2 यूनिट रक्त उपयोग में लाया गया।

विशेषज्ञों की टीम

कार्डियोवैस्कुलर सर्जन – डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष), डॉ. निशांत चंदेल, डॉ. नीरज (रेसीडेंट), डॉ. नन्दु (रेसीडेंट)
एनेस्थेटिस्ट – डॉ. ओ. पी. सुंदरानी, डॉ. सौम्या (रेसीडेंट)
नर्सिंग स्टॉफ – चोवाराम, मुनेस।

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