छत्तीसगढ

राज्य की ओर से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि बंद होने से गुस्साए राइस मिलर्स एसोसिएशन, मांग पूरी नहीं होने पर तालाबंदी की दी चेतावनी

रायपुर। सरकार ने नई नीति में कस्टम मिलिंग पर दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि बंद करने के फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेश राईस मिलर्स एसोसिएशन खासे नाराज है। इस मुद्दों को लेकर जुलाई से लेकर अब तक क्रमश: हर महीने विभागीय नेता-मंत्रियों के साथ बैठकें हुई, बावजूद शासन-प्रशासन की ओर से कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। राईस मिलर्स एसोसिएशन में अब गहरा आक्रोश है, जिसके चलते आगामी दिनों वे कड़े तेवर अपनाएंगे। छत्तीसगढ़ राईस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश रूंगटा, कोषाध्यक्ष नरेश सोमानी, उपाध्यक्ष दिलीप वाफना व सुरेश केडिया ने गुुरुवार को संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस लेकर उक्त मंशा जाहिर किया, साथ ही उन्होंने कहा कि आगामी एक-दो दिन में उनकी बैैठक प्रदेश का मुखिया भूपेश बघेल के साथ है। एसोसिएशन को उम्मीद है कि cm उनकी बातों को गम्भीरता से लेंगे, लेकिन अगर वहां बात नहीं बनी तो राइस मिलर्स एकजुुट होकर मिलों के विद्युत कनेक्शन विच्छेद करना सहित तालाबंदी पर भी फैसला ले सकते हैं। एसोसिएशन का कहना है कि 1 दिसंबर से धान खरीदी होनी है और यदि इस समस्या का समाधान जल्द नहीं निकला तो धान के उठाव में दिक्कत आ सकती है।

मिलरों को होगा बड़ा नुकसान

अध्यक्ष कैलाश रूंगटा ने कहा कि 1800 से ज्यादा मिलरों के एसोसिएशन है। प्रदेश सरकार ने फैसला कर लिया है कि अब इस साल के कस्टम मिलिंग में राइस मिलरों को केवल केंद्र की ओर से आई प्रोत्साहन राशि ही दी जाएगी। राज्य की तरफ  से प्रोत्साहन के लिए कोई राशि नहीं मिलेगी। केंद्र सरकार अभी तक अरवा चावल में 10 और उसना चावल में 20 रुपए प्रति क्विंटल कस्टम मिलिंग करने पर प्रोत्साहन राशि देती है। राज्य सरकार इसी रकम को मिलाकर चार महीने तक अरवा चावल की कस्टम मिलिंग करने वालों को 40 और उसके बाद दो महीने तक और मिलिंग करने वालों को 50 रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि देती थी। इसी तरह उसना चावल की कस्टम मिलिंग करने पर 20 और दो महीने के बाद और मिलिंग करने पर 30 रुपए प्रति क्विंटल राशि दी जाती थी। इसमें राज्य ने अपना हिस्सा रोक दिया है। यानी मिलर्स को केवल 10 और 20 रुपए प्रति क्विंटल ही दिए जाएंगे। इससे मिलरों को तगड़े नुकसान का अंदेशा है।

ताले लगने की नौबत आएगी

राईस मिलर्स एसोसिएशन का कहना है कि राज्य सरकार ने पहले ही बारदाना और ट्रांसपोर्ट में रकम कम कर दी है। ऐसे में प्रोत्साहन राशि भी बंद की जाती है तो कस्टम मिलिंग करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि राइस मिलर्स मंडियों से 12 महीने धा खरीदी कर चावल तैयार करते हैं। राइस मिल में मुख्य उत्पाद चावल के अलावा अन्य बायप्रोडक्ट का भी उत्पादन होता है। जिससे आश्रित कई उद्योग प्रदेश में संचालित होते है। जिसमें पॉवर प्लांट, सॉल्वेंट प्लांट, ईंट भट्ठा, कुक्कुट और पशु आहार प्रमुख है। राइस मिल के के बायप्रोडक्ट्स का उपयोग शराब उद्योग में भी किया जाता है। इस तरह चावल प्रमुख उद्योग में से है। एसोसिएशन का कहना है कि अब इस तरह के फैसलों से एक भी मिल चलाना मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी मिलरों की आर्थिक स्थिति पहले ही खराब है यह फैसला लागू किया जाता है तो मिलों में तालाबंदी की नौबत आ जाएगी।

पूर्व में हड़ताल को कांग्रेसी ने दिया था समर्थन

मिलर्स एसोसिएशन का कहना है कि शासन की ओर से मिलने वाले 30 से 40 रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि के माध्यम से अपने पारिश्रमिक का समायोजन करते रहे हैं। इस राशि में खर्चों के अनुरूप बढ़ोतरी की भी मांग मिलर्स एसोसिएशन 2016 में राइस मिलर्स ने अपना काम बंद कर हड़ताल भी रखी। उस समय पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी हड़ताल को जायज ठहराते हुए समर्थन दिया था। उस दौरान राइस मिलर्स यह मांग भी करते रहे हैं कि चावल उद्योग पूूर्णत कृषि आधारित हैै और जिस तरह कृषि के प्रोत्साहन के लिए किसानों को विद्युत दर में छूट सहित अन्य सुविधाएं समय-समय पर दी जाती हैं, उसी तरह राइस मिलर्स को भी दिया जाए। मिलर्स एसोसिएशन ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद उम्मीद  कर रहे थे कि उनका रवैया हमारे प्रति सहानुभूति पूर्वक होगा, लेकिन लगातार मुद्दों को सामने रखने के बाद भी शासन की ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं किया जा रहा है। एसोसिएशन प्रमुखों ने मीडिया के जरिए सरकार से प्रक्रिया में सरलीकरण और विशेष रूप से प्रोत्साहन राशि में बढ़ोतरी का अनुरोध किया।

इसलिए है नारज मिलर्स

मिलर्स एसोसिएशन ने बताया कि कस्टम मिलिंग नीति में केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित अरवा मिलिंग का मिलिंग चार्ज 10 रुपए के अलावा प्रदेश सरकार 30 रुपए प्रोत्साहन स्वरूप देती थी। दरअसल प्रदेश में अरवा चावल बनाने में कनकी का 35-40 प्रतिशत आता है। 25 प्रतिशत की कनकी का चावल स्वीकार किया जाता है। इस अंतर को दूर करने के लिए 30 रुपए प्रोत्साहन स्वरूप दिया जाता था। मिल प्रांगण में संग्रहण करने में लगने वाली अतिरिक्त हमाली व परिवहन व्यय आदि के रूप में भी प्रोत्साहन दिया जाता था। जिसे इस साल कम कर दिया गया है। इससे मिलर्स नाराज हैं।

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