छत्तीसगढ
समर्पित दो नक्सलियों की वोटिंग पर DGP ने माना “लाल आतंक पर भारी लोकतंत्र”
सवाल – डीजीपी से जब पूछा गया कि नक्सली जंगल में रहते हैं, ऐसे में दो दिन पूर्व आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली का मतदाता परिचय पत्र कैसे बन गया क्या नक्सली शहर आए थे। यदि नक्सलियों ने शहर में आकर मतदाता परिचय पत्र बनवाया है, तो इसकी भनक पुलिस को क्यों नहीं लगी।
जवाब – पुलिस को सारी जानकारी है और लगातार 4 साल से नक्सल अभियान चला रही है। पुलिस के लिए इस प्रकार से टिप्पणी करना उचित नहीं है।
कौन है ये सरेंडर नक्सली
- बता दें कि दंतेवाड़ा उपचुनाव में दो नक्सलियों ने मतदान किया है. गुमियापाला गांव में 2 दिन पहले सरकार की पुनर्वास नीति से जुड़े नक्सली कांछा भीमा ने मतदान किया है.
- इसके साथ ही सहयोगी नीलू ने भी आत्मसमर्पण कर मतदान किया है. इतना ही नहीं इस नक्सली ने आम लोगों से भी मतदान करने की अपील की है.
तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे
- नक्सलियों का मतदाता परिचय पत्र बनाए जाने को लेकर चर्चा जोरों पर है. ये चर्चा इस लिए है कि नक्सली ने लगभग 10 साल बाद मतदान किया है.
- ऐसे में यह समझ से परे है कि यदि नक्सली गांव या शहर में नहीं रहते थे, तो उनका मतदाता परिचय पत्र से नाम क्यों नहीं काटा गया.
- इससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि जंगल में रहने वाले और भी नक्सलियों के मतदाता परिचय पत्र बने होंगे. साथ ही नक्सली शासन की ओर से संचालित समस्त योजनाओं का लाभ भी ले रहे होंगे.