छत्तीसगढ

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष पर अंजुला चौरसिया ने कैसे प्रेरित किया जीवन है अनमोल के महत्व को, सुने उनकी जुबानी

महासमुंद। किसी कार्य में आने वाली चुनौतियों से घबराना नहीं चाहिए। चुनौतियां ही सफलता दिलाती है। यह कहना है महासमुंद जिले की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अंजुला चौरसिया का। अंजुला का मानना है सामान्य लोगों को समझाना तो आसान है परंतु मानसिक रोगी या अवसादग्रस्त व्यक्ति को समझाना और आत्महत्या का विचार त्यागकर जीने की राह पर उन्हें लाना बहुत ही कठिन कार्य है।
अंजुला कहती हैं समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए “जिंदगी अनमोल है इसे गंवाना नहीं बल्कि संवारना है” ऐसी सोच के साथ चुनौतियों से लड़ते हुए आज लोगों को जीवन जीने के लिए प्रेरित कर मैं बहुत खुश हूं।
समाज के हर व्यक्ति की भलाई और तरक्की की चाहत रखते हुए 2007 से अंजुला आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रही हैं। इन्होंने अपने आंगनबाड़ी केन्द्र के माध्यम से समुदाय में कई बदलाव करने की कोशिश की है। सबसे बड़ा बदलाव तो उन्होंने लोगों में आत्मविश्वास जगाकर जीवन जीने के प्रति ललक जगाकर किया है।
आत्महत्या करने वाले को समझाकर उनमें जीवन जीने के लिए प्रेरित कर अंजुला ने समुदाय में एक विशिष्ट पहचान कायम की है। इनका यह क्रम निरंतर जारी है। उनके इस उत्कृष्ट कार्य के लिए जिला प्रशासन की पहल “नवजीवन कार्यक्रम “के तहत महासमुंद जिले में “नवजीवन सखी” के रूप में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को सम्मानित किया जाएगा।
अंजुला कहती हैं तनाव या अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की प्रबल इच्छा आत्महत्या करने की होती है। क्योंकि वह अपनी आर्थिक, पारिवारिक और सामाजिक परेशानियों में इतना घिर जाता है कि उसके मन में सिर्फ मरने का ख्याल ही आता है। ऐसा ही कुछ ख्याल महासमुंद निवासी देव सिंह (परिवर्तित नाम) और प्रीती (परिवर्तित नाम) को आता था। उन्हें समझाईश देकर आत्महत्या से रोकना मेरे लिए बड़ी चुनौति थी। हालांकि इस कार्य में जिला अस्पताल की स्पर्श क्लीनिक और मनोरोग विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता की मदद ने सफलता दिलाई। अंजुला बताती हैं “तब मुझे इस बात का यकीन हुआ मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। इसका एहसास मुझे मेरे उत्कृष्ट कार्य के लिए जिला प्रशासन द्वारा नवजीवन अभियान के तहत सम्मान के लिए चयनित किए जाने पर हुआ है,”।
अंजुला की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गांव बसना , महासमुंद के स्कूल में हुई और उन्होंने एम ए इकोनॉमिक्स में किया। वैसे उनके गाँव में लड़कियों को पढ़ाई के लिए बाहर नहीं भेजा करते थे लेकिन उनके पिताजी इस रूढ़िवादी विचार से सहमत नहीं थे, इसीलिए उन्होने अंजुला को आगे पढ़ने दिया। पिता के समाजिक कार्य से प्रभावित होकर उसने सामाजिक कार्य कर समुदाय में बदलाव लाने का मन बना लिया। गृहस्थी की तमाम जद्दोजहद के बावजूद भी अंजुला ने समाजिक चेतना जगाने की अपनी इच्छा शक्ति नहीं छोड़ी। 2007 में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भर्तियाँ हो रही थी। उनके घरवालों ने भी उन्हें आवेदन करने को कहा और उनका चयन हो गया।
वह बताती हैं “तब से आज तक लोगों को आर्थिक सुदृढ़ता दिलाने के लिए प्रयासरत रहना, स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता लोगों में जगाने के साथ-साथ समाज से रूढ़िवाद विचार को मिटाने के लिए तत्पर हैं”।
इन्हें आत्महत्या से बचाकर दिलाई नई जिंदगी-

1. परेशानी समझकर दिखाई सकारात्मक जिंदगी की राह-
आर्थिक तंगी की वजह से शारीरिक अस्वस्था और तनावग्रस्त 63 वर्षिय देव सिंह (परिवर्तित नाम) जो मानसिक बीमारी के शिकार हो गए थे। आत्महत्या का विचार उनके मन में कई बार आता रहता था, एक बार तो बस अपना जीवन समाप्त करने वाले ही थे कि अंजुला चौरसिया का समझाना उन पर असर कर गया। परिवार वालों को समझाया और मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता की मदद से अंजुला देव को जिला अस्पताल के स्पर्श क्लीनिक उनका इलाज कराने पहुंची। देव ने आत्महत्या करने की सोच त्याग दिया है और आज उनका तनाव और अवसात रोग का उपचार चल रहा है।
2. नवजीवन के प्रशिक्षण ने बचाई जिंदगी- महासमुंद निवासी प्रीती (परिवर्तित नाम) का परिवार काफी बड़ा है। होटल में काम करके भी उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हो रही थी। इसलिए प्रीती मरने का विचार रखती थी, परंतु अंजुला को आत्महत्या रोकथाम के तहत नवजीवन का प्रशिक्षण मिला था। प्रशिक्षण की वजह से अंजुला ने प्रीती को बार-बार उसके घर जाकर समझाया और जिला अस्पताल मानसिक रोग के इलाज कराने पहुंची। अभी प्रीती पहले से ठीक है और निरंतर दवाएं ले रही है।
अंजली का आह्वान “ जिंदगी को यूं बर्बाद ना करें, तनाव को त्यागें, लोगों को अपनी परेशानियां बताएं और आत्महत्या की सोच त्यागें जीवन का आनंद लें।“

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button