छत्तीसगढ

आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार करने के लिए बिजली क्षेत्र में सुधार जरूरीः नवीन जिन्दल

रायपुर, 29 सितंबर। कुरुक्षेत्र के पूर्व सांसद और जिन्दल स्टील एंड पावर (जेएसपीएल) के चेयरमैन श्री नवीन जिन्दल ने कोविड19 महामारी के चंगुल से निकलने और अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने के प्रयासों में जुटी सरकार को दो महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। उन्होंने कहा कि उद्योग-व्यवसाय के लिए सामान्य शर्तों के तहत न्यूनतम क्रॉस सब्सिडी के साथ सीधे एक्सचेंज से बिजली खरीद की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए और उपभोक्ताओं को भी रियल टाइम बिजली दरों का लाभ मिलना चाहिए।
श्री जिन्दल ने ये सुझाव अपने ब्लॉग https://medium.com/@naveen.jindal/unlock-the-power-sector-to-make-bharat-aatmanirbhar-e915752f69c5 में दिये हैं। श्री जिन्दल ने लिखा है कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस के साथ जीना सीख रही है क्योंकि अभी तक इसका कोई टीका नहीं बना है। सभी देश अपनी आर्थिक स्थिति संभालने में जुट गए हैं। भारत ने भी आत्मनिर्भर बनने और देश को अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांगों के अनुरूप विशाल निर्माण-हब में बदलने का सपना देखा है। ये सपना साकार हो सकता है लेकिन इसके लिए कुछ बुनियादी उपाय किये जाने की जरूरत है, खासकर बिजली क्षेत्र में क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। बिजली की दरें कम होंगी तो औद्योगिक उत्पादों की लागत कम होगी और तभी वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर पाएंगे।
ब्लॉग के अनुसार बिजली उत्पादक कंपनियों को औसतन प्रति यूनिट 2.50 रुपये मिलते हैं जबकि बिजली वितरण कंपनियां यही बिजली उद्योगों और व्यवसायियों को 6 से 9 रुपये प्रति यूनिट बेचती हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को सब्सिडी दी जाती है और उसका भार कई गुना अधिक शुल्क के रूप में औद्योगिक-वाणिज्यिक उपभोक्ताओं पर डाल दिया जाता है। इसे क्रॉस सब्सिडी कहते हैं जो बाजार में नकारात्मक असर डालता है क्योंकि भारी बिजली शुल्क से लागत बढ़ने के कारण उद्योग लाचार हो जाते हैं और उनकी उत्पादकता पर गंभीर असर पड़ता है। कुटीर, लघु और मध्यम उद्योग तो 4-4.50 रुपये प्रति यूनिट बिजली खरीदने की भी स्थिति में नहीं हैं। परिणाम यह होगा कि ये उद्योग भारी बिजली लागत के कारण बंद हो जाएंगे जिसका असर सीधे पावर प्लांट पर पड़ेगा जो मांग घटने के कारण मंदी और बंदी की चपेट में चले जाएंगे और परिणामस्वरूप पूरी अर्थव्यवस्था का कचूमर निकल जाएगा।
श्री जिन्दल ने लिखा है कि उद्योगों-व्यवसायों को सीधे एक्सचेंज से बिजली खरीदने की सुविधा देकर राहत पहुंचाई जा सकती है। एक सामान्य शर्त के तहत उनपर प्रति यूनिट 25 पैसे क्रॉस सब्सिडी का भार लादा जा सकता है। इसके बावजूद उन्हें औसतन 2.50 रुपये प्रति यूनिट बिजली पड़ेगी, जिससे वे न सिर्फ प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे बल्कि पूरे देश की आर्थिक तस्वीर भी बदल सकेंगे। हालांकि सरकार भी क्रॉस सब्सिडी कम करने के मुद्दे पर गंभीर है। सैद्धांतिक रूप से क्रॉस सब्सिडी हटाने पर सभी सहमत हैं। राष्ट्रीय शुल्क नीति-2016 में यह सीमा 20 फीसदी रखने की सिफारिश की गई है लेकिन कई राज्यों में 50 फीसदी से अधिक सब्सिडी है। नीति आयोग भी 20 फीसदी सीमा के पक्ष में है। नए विद्युत विधेयक के मसौदे में भी सिफारिश की गई है सब्सिडी हटाकर लागत आधार पर बिजली शुल्क तय किया जाए। नई शुल्क नीति पर मंत्री समूह ने भी सिफारिश की है कि क्रॉस सब्सिडी घटाई जाए। इससे उद्योगों के लिए प्रतिस्पर्धा का माहौल पैदा होगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो सकेगा।
श्री जिन्दल ने दूसरा सुझाव यह दिया है कि सभी उपभोक्ताओं को रियल टाइम दरों का लाभ मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक बिजली उत्पादक कंपनी को स्पॉट एक्सचेंज में दिन भर में कई दरें मिलती हैं लेकिन उपभोक्ताओं को फिक्स दर पर भुगतान करना पड़ता है इससे वे शुल्क में गिरावट का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। साथ ही साथ इससे मांग-आपूर्ति संतुलन भी प्रभावित होता है। सुखद यह है कि कुछ राज्यों ने टाइम ऑफ डे मीटरिंग के तहत औद्योगिक-व्यावसायिक उपभोक्ताओं को यह सुविधा देनी शुरू की है और कुछ राज्य इस पर प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह का जोर रियल टाइम दरों का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने पर है इसलिए स्मार्ट प्री-पेड मीटर को इससे जोड़ा गया है। स्वीडन, स्पेन, ग्रेट ब्रिटेन, डेनमार्क और नॉर्वे में रियल टाइम शुल्क व्यवस्था लागू है जिसका लाभ वहां के सभी वर्गों को मिल रहा है।
ब्लॉग में कहा गया है कि ये दोनों उपाय अपनाए गए तो न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र की समस्याएं खत्म होंगी बल्कि प्रति व्यक्ति बिजली खपत बढ़कर 3 किलोवाट से 5 किलोवाट हो जाएगी जो देश की आम जनता की जीवन शैली में बड़े बदलाव लाने और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का पुख्ता आधार प्रदान करेंगे।

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