छत्तीसगढ

ऐतिहासिक किसान आंदोलन का अपनी जीत के साथ घर वापस : तेजराम विद्रोही

रायपुर, 9 दिसंबर। केन्द्र सरकार द्वारा लायी गयी किसान , कृषि और आम उपभोक्ता विरोधी तथा बड़े पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली कानूनों के खिलाफ दिल्ली सीमाओं पर ऐतिहासिक किसान आंदोलन पिछले एक साल और 14 दिनों तक चली जो दिल्ली की ओर जाने वाले राजमार्गों पर मोर्चा लगाया हुआ था।

अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा पूरे देश के किसानों और किसान संगठनों तथा सभी समर्थकों को बधाई देती है।

अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव और छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के संचालक मंडल सदस्य तेजराम विद्रोही ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने वर्तमान मोर्चों को समाप्त कर 11 दिसम्बर को जश्न के साथ वापस जाने का निर्णय लिया है। आंदोलन की मूल्यांकन और अगली रणनीति के लिए 15 जनवरी 2022 को दिल्ली में बैठक होगी।

अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा उन सभी लोकतांत्रिक ताकतों और जन संगठनों को बधाई देता है जिन्होंने इस संघर्ष के दौरान बहुमूल्य समर्थन दिया, उन सभी लोगों के प्रति भी अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हैं, जिन्होंने आंदोलन के दौरान भोजन, चिकित्सा शिविर और अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान किए।

आज केंद्र सरकार का पत्र प्राप्त होने के बाद, जिसमें उसने एसकेएम द्वारा उठाए गए संदेहों को स्पष्ट किया है, अपनी बैठक में एसकेएम ने दिल्ली के आसपास के मौजूदा मोर्चों को वापस लेने का निर्णय लिया।

केंद्र सरकार की ओर से इन मुद्दों पर बनी सहमति

1. 3 कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया है।

2. सरकार एमएसपी में मांग को पूरा करने के लिए एक समिति का गठन करेगी जिसमें एसकेएम के प्रतिनिधि भी सदस्य होंगे। समिति का कार्य यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी किसानों को एमएसपी का आश्वासन कैसे दिया जा सकता है। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि राज्यों में एमएसपी पर फसलों की सरकारी खरीद को, जो खरीद की जा रही है, उससे कम नहीं किया जाएगा।

3. सरकार के पत्र में कहा गया है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली सहित केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र सरकार के विभागों द्वारा आंदोलन के दौरान दर्ज सभी केसों को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाएगा।

4. राज्य सरकारें इस आंदोलन में शहीद हुए सभी लोगों के परिवारों को मुआवजा प्रदान करेंगे, जिसके लिए हरियाणा और यूपी ने अपनी सहमति दे दी है और पंजाब ने पहले ही अपनी घोषणा कर दी है।

5. बिजली विधेयक पर एसकेएम सहित सभी हितधारकों के साथ चर्चा करने के बाद ही संसद में चर्चा की जाएगी।

6. पराली जलाने से संबंधित अधिनियम की धारा 14 और 15 के प्रावधानों से किसानों पर आपराधिक दायित्व को हटाया जाएगा।

इस आंदोलन ने न केवल भारतीय कृषि और किसानों पर कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा इस नव उदारवादी फासीवादी हमले को निर्णायक रूप से पीछे धकेल दिया है, इसने किसान पक्षधर सुधारों के लिए राष्ट्रीय एजेंडे में एमएसपी के मुद्दे को भी लाया है।

सरकार ने समिति के एजेंडे के रूप में सभी किसानों को एमएसपी की गारंटी देने की अवधारणा को स्वीकार कर लिया है। एमएसपी को सी 2 फार्मूला के आधार पर समग्र लागत के अनुसार पारदर्शी रूप से गणना की जाए और प्लस 50% पर घोषित किया जाए, सरकार द्वारा ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसमे घोषित एमएसपी पर सभी फसलों की सरकारी खरीद की गारंटी की जाए।

इस जीत ने न केवल एमएसपी के मुद्दे पर पूरे भारत के किसानों में जागरूकता पैदा की है, बल्कि इस मांग के लिए भारत के नागरिकों के बीच व्यापक सहानुभूति और समर्थन पैदा किया है। यदि समिति परिणाम नहीं देती है, तो अब हमारा काम है कि हम इस मुद्दे पर एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष का निर्माण करें, जो उतना ही दृढ़ हो, जैसा कि हमने अभी जीता है।

हम इस बात पर प्रकाश डालना चाहते हैं कि इस आंदोलन ने अपनी अन्य उपलब्धियों के साथ-साथ आरएसएस के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के सांप्रदायिक और फासीवादी हमले को पीछे धकेल दिया है। इसमें पंजाब द्वारा कोरोना लॉकडाउन 1, हरियाणा में कोरोना लॉकडाउन 2 और 28 जनवरी को गाजीपुर में आरएसएस और पुलिस के हमले के खिलाफ बहादुरी और दृढ़ संकल्प का विशेष महत्व है।

इस आंदोलन ने पूरे भारत में किसानों और उनके संगठनों को एकजुट और गोलबंद करके भारतीय किसानों की कई समस्याओं पर एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष के लिए बेहतर परिस्थितियों पैदा की है। इसने एकमात्र उपाय के रूप में चुनावी विकल्प के विरोध में संघर्ष की जमीन को मजबूत किया है। इसने लोकतांत्रिक ताकतों और लोगों के लिए आवाज उठाने के लिए जगह बनाई है। इसने किसानों के खिलाफ आरएसएस, सरकार और गोदी मीडिया के शरारती प्रचार का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया है, उनके द्वारा किसानो को राष्ट्र विरोधी के रूप में चित्रित करने के प्रयास विफल किए हैं।

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