छत्तीसगढ

कुपोषित बच्चों की देखरेख कर दिया जीवन दान, मितानिन के अथक प्रयास से बिन मां के नवजात को मिला नया जीवन

महासमुंद, 6 अक्टूबर। समाज के हर व्यक्ति की भलाई और तरक्की की चाहत रखते हुए 2013 से आरती डडसेना मितानिन सुपरवाइजर के रूप में ग्राम पंचायत गनेकेरा, बसना में कार्य कर रही हैं। इन्होंने मितानिन कार्यक्रम के माध्यम से समुदाय में कई बदलाव करने की कोशिश की है। परंतु नवजात कुपोषित बच्चे की देखरेख कर, उसको नया जीवन दिलाकर समुदाय में अपनी खास पहचान बनाई है।

इतना ही नहीं नवजात के परिवार को भी आर्थिक सहारा देकर बच्चे के लालन-पालन में उनकी मदद की है। वर्ष 2013 से अब तक मितानिन आरती के अथक प्रयास और सराहनीय कार्य की वजह से गांव में जहां संस्थागत प्रसव, किशोरी स्वास्थ्य एवं माहवारी स्वच्छता के प्रति लोगों की मानसिकता बदली है परंतु जो नहीं बदला वह है मानसिक रोगियों के प्रति धारणाएँ और उपेक्षा। परंतु इस क्षेत्र में भी मितानिन अग्रसर हैं। बच्चों के प्रति उसका प्यार और लोगों की सेवा के प्रति उसकी रूचि ने उसे ये काम करने के लिए प्रेरित किया । चेहरे पर मुस्कान के साथ वो कहती है “मैं हमेशा से लोगों की मदद करना चाहती थी और एक मितानिन के रूप में मैं बच्चों और महिलाओं तक पहुंचती हूँ। ” महिलाओं और बच्चों के पोषण स्तर में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए कोविड – 19 महामारी के दौरान गर्भवती स्तनपान कराने वाली महिलाओं को मदद और सलाह देने में वह सक्रिय हैं।

कहते हैं लाभार्थी-

1.मिला नया जीवन- ग्राम पिताईपाली के रहने वाले शिव कुमार कहते हैं आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए ईंटभट्टा में काम कर रहे थे। उनकी पत्नी स्वर्गीय पुष्पा भी साथ में कार्य कर रही थी। वहीं वह गर्भवती हुई और बेटा भी पैदा हुआ। मगर जन्म देने के कुछ समय पश्चात ही पुष्पा की मौत हो गई इसके बाद वह बच्चे को लेकर गांव लौट आया। “नवजात जन्म के वक्त काफी कमजोर था, उसका बचना मुश्किल सा था। परंतु मितानिन दीदी की देखरेख और मार्गदर्शन ने मेरे बेटे अनमोल को नई जिंदगी दी है। अनमोल तीन माह का हो गया है और उसका वजन जो पहले 2.7 किलोग्राम था वह बढ़कर 6.2 हो गया है।“

2. नवजात की देखरेख सिखाया- परसकोल पंचायत धनापाली की सविता कहती हैं नवजात की देखभाल कैसे करनी है,यह मुझे नहीं मालूम था। मगर मितानिन दीदी ने हमें देखभाल करना सिखाया। साथ ही स्तनपान कराने, पौष्टिक आहार खाने ताकि बच्चे को पर्याप्त दूध मिल सके इसकी जानकारी भी दी। बच्चा काफी कमजोर हुआ था इसलिए उसको उठाने और तेल-मालिश करने, स्तनपान कराने में परेशानी होती थी, तब मितानिन दीदी ने ही एक मां की तरह बच्चे की देखभाल की और बच्चे के लालन-पालन का पाठ भी पढ़ाया। आज मेरा बेटा भी लगभग साढ़े तीन माह का हो गया है। उसका वजन जो पहले 1.6 किलोग्राम था साढ़े तीन माह बाद 5.4 किलोग्राम हो गया है।

बिना मां के बच्चे को ऐसे बचाया- नवजात के लिए 6 माह तक मां का दूध बेहद जरूरी है क्योंकि बाल्यकाल में होने वाली निमोनिया बीमारी को रोकने में यह महत्वपूर्ण योगदान देता है। माँ के दूध में सभी तरह के जरूरी पोषक तत्व और ऐसे आक्सीडेंट पूर्ण रूप से मौजूद होते हैं, जो नवजात शिशु के बेहतर विकास और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। बच्चों को अनेक प्रकार के रोगों से विशेषकर निमोनिया से लड़ने की क्षमता मां के दूध से मिलती है। लेकिन अनमोल इससे वंचित था। मितानिन आरती डडसेना ने डिब्बा बंद दूध बच्चे को पिलाने, दूध कैसे तैयार करें, इसकी जानकारी बच्चे की दादी को बताया । बच्चे की निगरानी करने मितानिन दीदी बच्चे के घर घर जाकर बच्चे के स्वास्थ्य का खयाल रखा। बच्चे के दूध के लिए मितानिन ने आर्थिक मदद भी दी। मितानिन की समझाइश और बच्चे की दादी के प्रयास से अनमोल को नई जिंदगी मिली।

नवजात की देखरेख में हाथ धुलाई का महत्व- 80 प्रतिशत बीमारियां दूषित पानी एवं स्वच्छता की कमी के कारण होती हैं। जीवाणु, विषाणु और परजीवी से डायरिया, मलेरिया, हैजा आदि बीमारियां होती हैं। मात्र साबुन से हाथ धोने से ही इस तरह की बीमारियों में 40 प्रतिशत से अधिक एवं श्वसन संक्रमणों में 30 प्रतिशत से अधिक की कमी हो सकती है। बच्चे जल्द बीमारियों के शिकार होते हैं। इसलिए बच्चे की देखरेख करते वक्त स्वच्छता का ध्यान जरूरी है। कोरोना के चलते हाथ धुलाई का महत्व और बढ़ गया है।

नवजात के लिए मालिश है जरूरी- नवजात बच्चे बहुत ही नाजुक होते हैं। बच्चे की मालिश उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी है। मालिश से बच्चे की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और शरीर में रक्त संचार भी सुचारू रहता है। मालिश से मौसमी बीमारियां भी दूर रहती हैं, बच्चों की थकावट दूर होती है और उन्हें अच्छी नींद आती है। साथ ही बच्चे के शरीक का विकास तेजी से होता है।

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