छत्तीसगढ

कोरोना क़हर के मध्य पत्रकारों का चुनौतीपूर्ण संघर्ष….युवा लेखक बलवंत सिंह खन्ना की कलम से

पत्रकार और पत्रकारिता दोनों ही समाज के बहुत अहम हिस्से हैं लेकिन अक्सर इनपर ज्यादा किसी का ध्यान नहीं जाता। कोरोना के इस संकट में जहां हर कोई डॉक्टर्स, पुलिस,नर्सिंग स्टाफ की तारीफ कर रहे हैं, उन्हें सम्मान दे रहे है वहीं पत्रकारों के भूमिका की बात कोई नहीं कर रहा। इस किलर कोरोना के दौर में पत्रकारिता और पत्रकार की अहम भूमिका है। इस महामारी की घड़ी में समाज को जागरूक और सचेत करने के लिए कई जरुरी खबर प्रकाशित हुई जिसका काफी प्रभाव भी देखने को मिला।

पत्रकार समाचार के संकलन और संप्रेषण के लिए महत्वपूर्ण हैं और पत्रकारों को भी कोरोना योद्धा माना जा सकता है। पत्रकारों के समाचार की वजह से जनता और सरकार दोनों ही प्रभावित होती हैं।भले ही बदलते वक़्त में पत्रकारिता और पत्रकार दोनों में बदलाव आये हों लेकिन अखबारों प्रकाशित हुए समाचारों एवं टी व्ही चैनलों में दिखाई गई खबरी की वज़ह से लोगों में जागरूकता भी बढ़ी है।
इस वैश्विक महामारी के दौर में एक पत्रकार की कार्यशैली बहुत ही कठिन और आत्मघाती के समान है। वर्तमान समय में कोरोना से लड़ाई में जितना कार्य प्रशासन का व्यक्ति कर रहा है उतना ही एक पत्रकार भी अपनी भूमिका निभा रहे है। खबर संकलन में चुनौती, बिना किसी विशेष किट के अस्पताल से जानकारी बटोरना, लॉक डाउन में पुलिस की डंडे समेत कई परेशानियों का सामना कर रहा है।
धरातल में उतरकर खबरे लाना लॉकडाउन के बाद भी काम जारी था, फ़ील्ड में काम करने के दौरान कई जगहों पर जाना होता है। ख़तरे में भी काम करना होता है। रोज़ाना कई लोगों से मिलते हैं, ये समझ पाना मुश्किल है कि कहाँ किसके संपर्क में आने से संक्रमित हो जायें।
संक्रमण के खतरो के बीच भी मीडियाकर्मियों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। पिछले दिनों कई मीडियाकर्मियों में भी कोरोना संक्रमण पाए गए। कई पत्रकार ऐसे भी थे जिनपर “इसका कोई लक्षण नहीं थे लेकिन उनका जांच रिपोर्ट पॉजिटिव पाया गया। पत्रकारों को कोरोना संबंधित ख़बरों को कवर करने के लिए अस्पतालों, कंटेन्मेंट जोन में भी जाना होता है। लोगों की समस्याएं कवर करना और सरकार के लागू प्रावधानों को भी कवर करना होता है। ऐसे में चाहिये कि इन योद्धाओं को बेहतर सुविधा मिलें। सुरक्षात्मक साधन उपलब्ध हो।
जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई तब अधिकतर अखबारों एवं चैनलों ने कार्यालयों मे ऐसे रिपोर्टरों को जो फ़ील्ड में काम करने वाले और कैमरामैन को दफ्तर में आने की अनुमति नहीं थीं। उन्हें कैमरा और दूसरे उपकरण घर ले जाने को कहा गया। ऐसा रोस्टर बनाया गया जिसमें उन्हें एक सप्ताह काम करने की इजाज़त मिली और दूसरे सप्ताह उनकी छुट्टी रखी गयी।
कुछ महिला पत्रकारओं को घर का काम भी संभालना होता है, उसके बाद फ़ील्ड में जाकर उन्हें काम करना होता है। इन लोगों की मुश्किलें काफ़ी बढ़ गई है। ऐसे मुश्किल समय में घर का काम और फील्ड में जाकर काम करना मुश्किल है।
बीते दिनो जब मीडियाकर्मी भी कोरोना संक्रमित पाए गए तब भी पत्रकारों में कोरोना का डर नही हुआ। क्योंकि पत्रकार समझते हैं अपनी जिम्मेदारी को एवं वर्तमान समय मे समाज के प्रति अपनी दायित्व को। भविष्य में जब इस समय को याद किया जायेगा तो कोरोना युद्धाओं में मीडियाकर्मियों को भी याद किया जाएगा। मौजूदा समय में अभूतपूर्व स्थिति है।ऐसे वक्त में लोगों को सूचनाओं की ज़रूरत है। पत्रकारों की दी गई सूचनाएं प्रशासन और ज़रूरतमंद लोगों के बीच में पुल की भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि कई पत्रकार खतरा उठाने से भी नही डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस समय मानवता को उनके काम की ज़रूरत है। इसके अलावा शायद यह चिंता भी है कि जिस वक्त पत्रकार घरों से काम करना शुरू कर देंगे, उन्हें छंटनी का डर सताने लगेगा, क्योंकि मीडिया इंडस्ट्री में छंटनी का दौर शुरू हो गया है। इसलिए पत्रकारों में यह डर दिखना स्वभाविक है कि अगर वे घरों से काम करना शुरू कर देंगे तो उनकी छंटनी हो सकती है। विश्वव्यापी कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था को बहुत अधिक ध्वस्त किया है । वर्तमान एवं आने वाले समय मे हर क्षेत्र में छटनी होगी। कुछ संस्थानों में तो होने भी लगी है।
चैनलों के रिपोर्टरों पर काफ़ी ज़्यादा दबाव होता है, सरकार जब तक दिशा निर्देश जारी नहीं करती तब तक ज़्यादातर संस्थान फ़ील्ड रिपोर्टिंग रोकना नहीं चाहते क्योंकि एक तो मीडिया संस्थानों को केवल कंटेंट की चिंता नहीं होती है, उन्हें लगता है कि कहीं ये माध्यम भी अप्रासंगिक नहीं हो जाए। ऐसी स्थिति का सामना प्रिंट मीडिया इन दिनों कर रहा है। इसलिए फ़ील्ड में लोगों के नहीं रहने से प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, इससे विज्ञापन से होने वाली कमाई पर भी असर पड़ेगा।
ब्रेकिंग न्यूज़ की प्रतिस्पर्धा के चलते रिपोर्टरों को फ़ील्ड में उतरना ही होता है। इस संकट के समय में भी हेड का उनके पास फोन आते हैं कि दूसरे चैनलों पर ये स्टोरी चल रही है, तुम्हारे पास क्यों नहीं है? कई मीडिया संस्थाओं ने घर से काम करने वालों और डेस्क पर काम करने वाले लोगों के लिए गाइडलाइंस जारी की है, लेकिन ज़्यादातर चैनलों ने फ़ील्ड में काम करने वाले रिपोर्टरों के लिए कोई गाइडलाइंस जारी नहीं की है।फ़ील्ड में काम करते हुए मीडियाकर्मी कोरोना संक्रमित हुए, लेकिन उन्हें अपने परिवार के बाकी सदस्यों की चिंता नहीं हुई कि उनका क्या होगा, उनकी मदद कौन करेग। काम पर नहीं जाना विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन किसी को तो इन चीज़ों को समझना होगा, जिम्मेदारी भी निभानी है और खुद को सुरक्षित भी रखनी है। मीडियाकर्मियों को भी कोरोना योद्धाओं का दर्जा देते हुए उन्हें बीमा मिलना चाहिये, संक्रमण से बचाव हेतु उचित सुरक्षात्मक किट मिलना चाहिये और अगर विशेष भत्ता नही दे सकते तो अगले 1 वर्ष तक मीडया संस्थानों में छटनी भी रुकनी चाहिये। साथ ही ऐसे मीडियाकर्मियों को जो कोरोनो काल मे अपनी जिम्मेदारी निभा ररहे हैं उन्हें यह भरोसा दिलाना चाहिये कि उनकी नौकरी नही छीनी जाएगी। कोरोना के सायें के नीचे हमे अनलॉक 1.0 तो मिला है लेकिन कोरोना से खतरा कम नही हुआ है अब तो सरकार भी मानो कह रही हो कि आप अपना बचाव ख़ुद करें और शायद यह उचित भी है हमे अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी जैसा कि हमेशा कहा जाता है कि “इलाज से बेहतर है सुरक्षा” हम खुद को सुरक्षित रखे ताकि न हम बीमार हों और न ही हमे इलाज की आवश्यकता पड़े।

(लेखक बलवंत सिंह खन्ना, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर के समाज कार्य विभाग के पूर्व छात्र एवं युवा सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ समसामयिक मुद्दो के विचारक हैं,सभी डाटा पिछले कुछ दिनों के अलग- अलग खबरों एवं मीडियाकर्मि साथियों के व्यक्तिगत अनुभव से लिया गया है। विचार लेखक के निजी है )

 

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