छत्तीसगढ़ में महिला आयोग के सामने क्या और कितनी चुनौतियां थीं…कैसे सामना करेंगे…अगली रणनीति क्या होगी…? कई ऐसे सवालों के अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक ने दिया बेबाकी से जवाब…पढ़िए उनका इंटरव्यू
रायपुर, 17 दिसंबर। डॉ. किरणमयी नायक को छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किए लगभग तीन साल हो चुके हैं। इस दौरान उनके सामने कई चुनौतियां भी आई हैं तो कई उपलब्धियों का ताज उनके सिर पर रखा गया।
महिलाओं के उत्पीडऩ से लेकर पुरुष प्रताडि़त संघ के गठन को लेकर सीनियर रिपोर्टर शुभ्रा नंदी ने उनके साथ चर्चा की। प्रस्तुत है चर्चा के प्रमुख अंश….
प्रश्न : छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में आपको कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर : माना जाए तो बहुत बड़ी चुनौतियां है और नहीं मानों तो सब चीजें आसान तरीके से निपट जाती है। हमने इसे बहुत बड़ी चुनौती के रूप में नहीं सोचा, क्योंकि काम यदि करना शुरू किया जाए तो चुनौतिया स्वमेव ही समाप्त हो जाती है।
प्रश्न : जब आपने कार्यभार संभाला था उस समय और आज की स्थिति में क्या अंतर है?
उत्तर : जब मैं कार्यभार संभाली थी तब आयोग के पास 582 केस पेंडिंग थे। आयोग की सुनवाई नियमित रूप से नहीं हो रही थी, क्योंकि अध्यक्ष नहीं थे, सदस्य भी एक ही बचे थे, ऐसे में सब काम मंत्री ही देख रही थीं। मैंने देखा बड़ी संख्या में पेंडिंग केस है तो केस के ट्रायल को पहले प्रीडॉप किया और उसमें हमने फ़ोकस किया कि आयोग की सुनवाई ज्यादा से ज्यादा हो। उस समय सबसे बड़ी चुनौती तो कोविड महामारी का था, लिहाजा सभी को सुरक्षित रखकर कैसे काम किया जाए, इसके लिए हमने जन सुनवाई पर फोकस किया। इसकी शुरूआत रायपुर से की और सबसेे अधिक सुनवाई यही हुई। उसके बाद धीरे-धीरे सभी जिलों में विस्तार किया गया। इसके फायदे यह था कि एक तो हम महिलाओं की समस्याओं को सुनकर उसका हल निकाला जाता था साथ ही कोविड प्रोटोकाल का पालन भी हो जाता था। इसका नतीजा यह रहा कि 31 जनवरी 2021 में हमने एक रिकॉर्ड जनसुनवाइयां कर चुके है। जिसकी चर्चा भी हुई।
प्रश्न : आप महापौर भी रह चुकी हैं, आज आप छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष हैं… किस पद पर ज्यादा चुनौतियां हैं?
उत्तर : हर पद की जिम्मेदारी और चुनौतियां अलग-अलग है। महापौर का मतलब रायपुर का एक क्षेत्र है और रायपुर शहर की जनता। दिसंबर 2009 में जब मैंने महापौर का कार्यभार संभाला था तो यहां लगभग 8-10 लाख का जनसंख्या थी और कार्यभार छोड़ते तक 12-13 लाख की जनसंख्या हो चुकी थी। परंतु आज पूरा छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग मतलब पूरे छत्तीसगढ़ अगर पौने 3 करोड़ की जनसंख्या है तो उसकी आधी आबादी डेढ़ करोड़ से अधिक जो महिलाएं है उनके लिए मैं जिम्मेदार हूं। दोनों क्षेत्र बिल्कुल अलग है। कार्यस्तर अलग-अलग है और दोनों की चुनौतियां भी अलग-अलग।
प्रश्न : राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में आप महिलाओं से संबंधित किन चुनौतियों का सबसे अधिक सामना करती हैं?
उत्तर : कोई एक वर्ग को विभाजित नहीं किया जा सकता है। तीन वर्षों की जनसुनवायी में महिलाओं से संबंधित हर प्रकार के प्रकरण हमारे पास आए हैं। महिलाओं की शादी में प्रॉब्लम, दूसरी शादी, तलाक, मेनटेंनस, बच्चों की कस्टडी, हत्या, मारपीट, बलात्कार के अलावा महिला उत्पीडऩ के प्रत्येक मामलों पर आयोग का हस्तक्षेप रहता है। मेजर केसेस के रूप में दूसरे विवाह, पत्नी को छोड़ देना, तलाक देना, भरण-पोषण जैसे मामले अधिक रहते हैं।
प्रश्न : आपने किस विषय में पीएचडी की है…
उत्तर : मैंने एलएलएम किया। मास्टर ऑफ लॉ और उसके बाद लॉ में ही पीएचडी की है। मेरा विषय ‘दहेज प्रताडऩा से संबंधित कानूनों का आलोचनात्मक अध्ययन’, क्योंकि उस समय 498 (ए) के प्रावधान ऐसे थे कि यदि महिला थाने गई तो तुरंत अरेस्ट हो जाते थे, तो इससे फेमली ब्रेकप बहुत हो रहा था…इसलिए इस विषय को मैंने अपने पीएचडी के लिए चुना। 2011 में मैंने पीएचडी आवार्ड मेयर के रूप में ग्रहण किया।
प्रश्न : तो क्या ये माने कि आपकी शिक्षा के मुताबिक आपको पद मिला है?
उत्तर : हां यह हम मान सकते है, क्योंकि वकालत का एक लंबा अनुभव रहा है। नि:संदेह उस अनुभव का लाभ पीडि़त महिलाओं को मिल सके। यह सीएम भूपेश की दूरदर्शिता है। यही कारण है कि मैं आज अपनी शिक्षा और वकालत के अनुभव का लाभ महिलाओं को देने में सक्षम हूं।
प्रश्न : महिला उत्पीडऩ के मामले में हम छत्तीसगढ़ को अन्य राज्यों की तुलना में किस स्थिति में पाते हैं?
उत्तर : अन्य राज्यों में महिलाओं के ऊपर अपराध होते है तो मुख्यमंत्री तक इनिशेट नहीं लेते है और अपराध दर्ज भी नहीं होते हैं। पर आप छत्तीसगढ़ में देखें तो कोई घटना सुनने में नहीं आ रही है कि कहीं कोई महिला अपराध के बाद थाने में गई हो और एफ आईआर दर्ज नहीं हुई हो। मैं दावे के साथ कहती हूं कि अन्य राज्यों के मुकाबले छत्तीसगढ़ में महिलाओं की स्थिति बेहतर है और अगर कोई अपराध हो भी जाए तो पुलिस तत्काल संज्ञान लेती है। और अगर कहीं कुछ आनाकानी या सुनवाई न हो रही है तो वह जिम्मेदारी महिला आयोग स्वयं ले लेती है और स्वयं मोटो केस रजिस्टर करते हंै।
प्रश्न : पढ़ी-लिखी महिलाएं भी उत्पीडऩ की शिकार हो रही है…सुनवाई के दौरान महिलाओं को कानून के बारे में कितना ज्ञान है या उनमें जागरूकता देखी जाती है?
उत्तर : कानून की जानकारी तो ऐसा प्रावधान है कि हमारे भारत में जो भी कानून बनते हैं, या माना जाता है कि जिस दिन कानून बनता है, प्रत्येक व्यक्ति को जानकारी हो जाती है। उससे उनका मतलब हो या न हो लेकिन वे जानते जरूर हैं। कानून की जानकार कितना वे है, इससे अधिक इंपोर्टेंट पीडि़त महिला की परिस्थितियों में उसके प्रताडऩा की स्थिति में… वह उस कानून का यूज करने के लिए केपेबल है या नहीं है… बहुत सारी चीजों पर डिपेंड करता है। जैसे उसकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षेणिक स्थिति, उसके रहन-सहन, संस्कार और उसके आसपास का परिवेश… बहुत सारी चीजे काऊंट होती है। कुछ हमारे सामाजिक परंपराएं है, जिसकी वजह से महिलाएं सारी चीजों को सहती और बर्दाश्त करती हैं। ये चीजे अमूमन देखा ही जाता है। कानून का नॉलेज हो जाने से उसका सही उपयोग करना नहीं आता और जब वे उपयोग करने के लिए निकलती है तो पुलिस थाने, कोर्ट जाती है और अब आयोग के पास आती है।
प्रश्न : आयोग किस तरह के सुनवाई पर फ़ोकस करती है…क्या सिर्फ महिलाओं की सुनवायी होती है या पुरुष भी कर सकते हैं?
उत्तर : महिला आयोग में आवेदन हम महिलाओं का ले सकते है परंतु कभी कोई महिला यदि आवेदन नहीं करती है, तो पुरुष भी उसका आवेदन कर सकते हैं। हालांकि पुरुषों का आवेदन नहीं लेते है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम सुनवायी नहीं करते। क्योंकि जब कोई महिला आवेदन करती है, तो सामने वाला पक्ष पुरुष होता है। 90 फीसदी केस में विपक्ष पुरुषों ही होता है। बहुत कम ऐसे मुद्देे आए है जिसमें महिला ही महिलाओं के खिलाफ आवेदन की हो। ऐसे में जहां पर पुरुष होते हैं, तो वहां पर भी हम पुरुषों को बराबर अवसर देते है, उनकी बातों को समानता से सुनते है और हल निकालते है। आयोग की कोशिश होती है कि दोनों पक्षों की बातों को सुनकर समझाइश दिया जाए। और यदि समझाइश के बाद मानने को तैयार नहीं होते है तो आगे पुलिस को मामला सौंपते है।
प्रश्न : क्या आपके पास पुरुष प्रताडऩा की कोई शिकायत अब तक आई है?
उत्तर : जब मैं आयोग की अध्यक्ष बनी तो पुुरूष के आवेदन मुझे बहुत मिलने लगे थे। पर हमारी महिला आयोग के प्रावधान में नहीं है कि हम पुरुषों का आवेदन लें, इसलिए उन्हें कई बार मुझे बोलना पड़ा। तब पुरुषों ने कहा कि मेडम हमारे लिए एक पुरुष आयोग गठन करवा दीजिए.. तब मुझे उन्हें बोलना पड़ा कि इसके लिए आपको मुख्यमंत्री से बात करनी पड़ेगी। पर अब यह है कि उन लोगों में विश्वास है कि महिला आयोग पुरुषों के साथ कोई अन्याय या अत्याचार न करते है और न होने देते है।
प्रश्न : …तो क्या पुरुष प्रताडि़त नहीं होते?
उत्तर : मैं यह नहीं कहती कि पुरुष प्रताडि़त नहीं होती है, सिर्फ महिलाएं ही होती है, लेकिन यह मेरा विषय नहीं है। मेरा रिसर्च बिल्कुल विपरित है।
प्रश्न : कई बार महिलाएं अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती है, इससे किस तरह सुलझाते है?
उत्तर : यहां पर भी हम अगर देखते है कि कोई महिला अनावश्यक व झूठा केस लगाती है तो हम उस केसेज को खारिज कर देते हैं। इसके अलावा बहुत केसेस है जहां अधिकारों का दुरुपयोग करते है, परंतु हम ये क्यों कहे कि महिलाएं कानून का मिसयूज करती है। कोई भी महिला अपना घर-परिवार तोडऩा नहीं चाहती है। हर महिला चाहती है कि उसका घर आबाद रहे।
प्रश्न : महिलाओं के खिलाफ अपराध पहले के मुकाबले बढ़े हैं, इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
उत्तर : यह बहुत बड़ा टेक्निकल प्रश्न है। वजह यह है कि बचपन में मां सिखाती है कि लड़कियां घर का काम करें और लड़के को बाहर आवारागर्दी पर रोक नहीं होती है। आज भी पढ़ी लिखी लड़कियों पर पांबधियां है, शाम 5 बजे तक घर आ जाओ लेकिन 14-15 साल का लड़का रात 11 बजे तक घर नहीं आए तो माता-पिता को लगता है लड़का है, उसे सब छूट है। लड़कों पर रोक-टोक लगाने वाले पेरेंट्स बहुत कम है। जब परवरिश में भेदभाव होता है तो अपराध की शुरुवात होने का ग्राउंड वहां से बननी शुरू हो जाती है। इसके लिए जिम्मेदार एक महिलाएं ही रहती है। देखिए जब कोई विवाहिता अपने ससुराल के खिलाफ शिकायत करती है तो वे सिर्फ अपने पति के खिलाफ नहीं आती बल्कि उसके साथ सास, ननद, भाभी, देवरानी-जेठानी होती है। तो हमको सभी को देखना पड़ता है। सभी को सुनवायी का मौका देते है। ऐसे में कई मामले आते है जो गलत मामले भी लगाती है, जिसे नस्तिबद किए जाते।
प्रश्न : आज भी कई महिलाओं को अपने पति से पीटना अच्छा लगता है…इस पर क्या बोलना चाहेंगी?
उत्तर : आज मैं एक रिपोर्ट में पढ़ी कि 30 फीसदी महिलाओं को पुरुषों से पीटना अच्छा लगता है। मुझे ये देखकर बहुत दुख हुआ। लेकिन साथ ही 70 फीसदी महिलाएं इसे गलत मानती हैं । इस सोच को हमें बदलना होगा। बचपन में पेरेंट्स की घुट्टी में जो संस्कार देते है कि अबला नारी तेरी यही कहानी … इस लाइन को परवरिश में बदलाव करने की जरूरत है। संस्कार की घुट्टी सिर्फ लड़कियों के लिए नहीं होना चाहिए बल्कि लड़कों के लिए भी वहीं पाठ होना चाहिए, तब महिलाओं पर अपराध कम हो सकते हैं।
प्रश्न : महिलाओं के अपराध को रोकने के लिए समाज की क्या जिम्मेदारी है?
उत्तर : समाज में आमूलचूल परिवर्तन सोच में आना चाहिए। बेटी को पढ़ाओ और बेटी को बचाओ पॉसिबल नहीं है, क्योंकि बेटी को पढ़ा तो रहे हैं, लेकिन संस्कार रूपी घुट्टी में वहीं अबला नारी बना रहे हैं। उसे बाहर लडऩे की शिक्षा हम नहीं दे रहे। अपने आप को बचाने की शिक्षा नहीं दे रहे और उसके बाद पढ लिख गई बेटी तो फिर एक रिश्ता ढूढ़कर शादी करवा दो और अपनी बला टाल दो। इस सोच से निकलना होगा।
प्रश्न : आपने जैसा कहा कि- संस्कार की घुट्टी… क्या इस तरह की सोच शहरी क्षेत्रों के लोगों में है या सिर्फ ग्रामीणों में देखे गए?
उत्तर : गांव-शहर दोनों जगह इस तरह की सोच दिखते है। बल्कि कई बार तो गांव के लोग ज्यादा प्रगतिवादी होते है, क्योंकि उनका मानना होता है कि हम कम पढ़े लिखे है इसलिए कोई गलतियां न हो।