छत्तीसगढ

झीरम हमले की जांच SIT से कराने की मांग को लेकर राजीव भवन पहुंचे दिग्गज कांगेसी, कहा- केंद के दबाव में किया सिर्फ खानापूर्ति

रायपुर, 22 जून। भाजपा नेताओं के माओवादियों से संबंध होने का आरोप कांग्रेस के कद्दावर मंत्री रविंद्र चौबे सहित कई कैबिनेट मंत्रियों ने लगाया। राजीव भवन में प्रेस कांफ्रेंस लेकर मंत्रियों ने आरोप लगाया कि एनआईए केंद सरकार के दबाव में सिर्फ खानापूर्ति कर रही है, इसलिए न सिर्फ कांग्रेस बल्कि पीड़ित परिवार भी चाहता है कि झीरम मामले की जांच एसआईटी से की जाए।

कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि, 25 मई वर्ष 2013 में झीरम हमले में प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल सहित प्रथम पंक्ति के 13 नेता सहित 29 लोग शहीद हुए जबकि दर्जनों घायल हुए। अब तक गुहगार कौन इससे सभी अनजान है लेकिन झीरम कांड पर राजनीति अभी भी हावी है। इसी जांच पर अब प्रदेश सरकार सही पीड़ित परिवार प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं । कांग्रेस का कहना है कि घटना की जांच एनआईए को सौंपी गई. जांच शुरु भी हुई. मार्च, 2014 में एनआईए ने नक्सलियों के शीर्ष नेताओं गणपति और रमन्ना को भगोड़ा घोषित करवाया, अख़बारों में विज्ञापन प्रकाशित करवाए और उनकी संपत्ति ज़ब्त करने की सूचना जारी की। मई, 2014 में केंद्र में यूपीए की जगह एनडीए की सरकार आ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालते ही जांच पटरी से उतरनी शुरु हुई और अगस्त आते आते तक जांच की दिशा बदल गई। सितंबर, 2014 में जब पहली चार्जशीट दाखिल हुई तो उसमें गणपति और रमन्ना के नाम ग़ायब थे। यानी देश के सबसे बड़े और घातक नक्सली हमले में नक्सलियों के शीर्ष नेताओं को बरी कर दिया गया और दंडकारण्य अंचल के नक्सली नेताओं के नाम ही षडयंत्रकारियों की तरह रखे गए।

PCC अध्यक्ष मोहन मरकाम का कहना है कि, भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में काले दिन की तरह दर्ज हुआ क्योंकि वह भारत का अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक नरसंहार था। 25 मई,2013 को बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर सुनियोजित हमला किया। क्यों रमन सिंह ने सीबीआई जांच न होने की सूचना दो साल तक छिपाई? क्या भाजपा को डर है कि झीरम में सुपारी किलिंग की कलई खुल जाएगी?

वन, आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि, एनआईए की वेबसाइट पर लगातार लिखा जाता रहा कि जांच पूरी हो गई है। यानी षडयंत्र किसने रचा? किसके कहने पर रचा? कुछ महीनों बाद होने वाले चुनाव में इससे किसको फ़ायदा होने वाला था? इन सबकी कोई जांच नहीं की गई। राज्य सरकार ने हमले के तीसरे दिन अपनी ओर से एक जांच आयोग बनाया था। जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग ने पिछले बरसों में अपनी ओर से बयान दर्ज किए हैं और अभी आयोग का कार्य जारी है, लेकिन यह आशचर्य का विषय है कि इस आयोग के लिए सरकार की ओर से जो ‘टर्म्स ऑफ़ रेफ़रेंस’ यानी कार्य सीमा तय की गई उसमें घटना के षडयंत्र की जांच नहीं थी।

नगरीय निकाय मंत्री डॉ. शिव डहरिया ने कहा, 6 साल में केंद्र में मोदी सरकार है। हमारे शीर्ष नेतृत्व को सुपारी किलिंग के ज़रिए खत्म किया गया। इस मामले पूर्ववर्ती डॉ रमन सिंह की सरकार संलिप्त नज़र आती है। भाजपा सरकार जानबूझकर जांच नही कराना चाहती क्योंकि वह खुद संलिप्त है। राज्य सरकार की SIT को भी जांच से रोका जा रहा है।

बाईट- डॉ. शिव डहरिया, नगरीय निकाय मंत्री

कांग्रेस की हड़बड़ाहट समझ से परे: धरमलाल कौशिक

झीरम कांड पर लगा ‘सुपारी किलिंग’ का आरोप कब तक साबित होगा ये तो हाशिये पर है। लेकिन अब एनआईए पर उठे सवाल से इस षड्यंत्र पर राजनीति हावी हो चुकी है। इधर कांग्रेस के आरोप के बाद भाजपा ने भी इस पर पलटवार किया है। नेताप्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है कि एनआईए और मिश्रा कमीशन की जांच हर बिंदु पर हुई है। साथ ही कौशिक का कहना है कि एसआईटी की जांच का अवचिट्य नही है क्योंकि देश के सबसे बड़ी जांच एजेंसी एनआईए द्वारा जांच किया गया है। अभी रेऊरत का इंतजार करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस के हड़बड़ाहट का कारण समझ से परे है। कौशिक ने कहा कि इस षड्यंत्र में लिप्त लोगों को सजा मिलनी चाहिए।

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