डीईआईसी सेंटर: फोन पर दिया जा रहा चिकित्सकीय परामर्श, बीते 4 वर्षों में 2100 ने लिया उपचार व परामर्श
– चिकित्सकीय परामर्श के लिए विशेष बच्चों को सेंटर से परामर्श दे रहे विशेषज्ञ
रायपुर। कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी संक्रमण के दौरान संपूर्ण देश में चौथे चरण का लॉकडाउन है। ऐसे समय में सभी प्रकार की दिव्यांगता वाले बच्चों का इलाज करना कठिन है। मुश्किल की इस घड़ी में रायपुर के जिला अस्पताल शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र (डिस्ट्रिक्ट अर्ली इन्तेर्वेंशन सेंटर/डीईआईसी सेंटर) के विशेषज्ञों द्वारा फोन के माध्यम से ऐसे बच्चों को आवश्यक चिकित्सकीय परामर्श प्रदान किया जा रहा है। साथ ही उनके अभिभावकों को भी उनकी फीजिकल एक्टिविटी के तरीके बताए जा रहे हैं।
हालांकि लॉकडाउन में ढील हुई है और अस्पताल में कई आवश्यक सेवाएं भी शुरू कर दी गई हैं। परंतु उक्त सेंटर में नए मरीज नहीं आ रहे हैं। महामारी संक्रमणकाल के पूर्व डीईआईसी सेंटर में बच्चों का इलाज जारी था। लॉकडाउन की वजह से उन बच्चों को घर पर ही नियमित देखभाल करने, फिजियोथैरेपी आदि करते रहने की सलाह दी गई थी। लॉकडाउन के दौरान भी विशेषज्ञ फोन पर ही उन बच्चों को चिकित्सकीय सलाह दे रहे हैं। शिशु रोग विशेषज्ञ एवं इंचार्ज शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र (डीईआईसी सेंटर) रायपुर डॉ. निलय मोझारकर का कहना है मानसिक विकार, ऑटिज्म एक दिव्यांगता है। जिसमें दिमाग के सूचनाएं एवं शब्द सही से प्रोसेस नहीं हो पाते हैं। बच्चे को समझने, हाव-भाव दिखाने और बोलने में तकलीफ होती है। विशेषकर छोटे बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। पहले के मुकाबले लोगों में जागरूकता बढ़ी है इसलिए सेंटर में ऐेसे केसेस पंजीकृत होने लगे हैं। ऐसे बच्चों को फिजीयोथैरेपी, स्पीच थैरेपी, मनोचिकित्सकीय परामर्श की जरूरत रहती है। ज्यादा दिन तक उन एक्टीविटी को बंद नहीं किया जा सकता इसलिए ऐसे बच्चों को पुनः सेंटर अब आना चाहिए। वैसे लॉकडाउन में भी नियमित रूप से फोन से बच्चों की देखभाल का परामर्श दिया जा रहा ।
चार साल से संचालन- बच्चों के मानसिक विकास में विलंबता, मानसिक विकार, ऑटिज्म या दिव्यांगता के विशेष इलाज के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र (डीईआईसी सेंटर) खोला गया है। रायपुर के जिला अस्पताल में उक्त केन्द्र बीते चार साल से ऐेसे बच्चों को विशेष उपचार और परामर्श प्रदान कर रहा है अब तक केन्द्र में सभी प्रकार की दिव्यांगता के लगभग 2100 बच्चों का पंजीयन हुआ है। इनमें ऑटिज्म के बच्चे भी शामिल हैं। डीईआईसी सेंटर में ऐसे असामान्य व्यवहार वाले बच्चों की विशेष देखभाल होती है। बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों, केयर टेकर की काउंसिलिंग होती है ताकि घर में अच्छा वातावरण इन बच्चों को मिले। सेंटर में विशेष तौर पर विशेषज्ञ डॉक्टरों के अलावा बहु विषयक टीम, साइकोलॉजिस्ट, स्पेशल एजुकेटर, सोशल वर्कर, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट तथा फिजियोथेरेपिस्ट की देखरेख में ऐेसे बच्चों का उपचार किया जाता है।
दिखे ये लक्षण तो हो जाएं सतर्क- विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चे में यदि आवाज लगाने पर भी बच्चा अनसुनी कर दे, बच्चा अकेले और गुमसुम रहने लगे, सामान्य बच्चों की बजाए विकास धीमा होना, आंखों में आंखे डालकर बात करने से बच्चा घबराए, बच्चा अपने आप में खोया रहे, अपने आप को सामाजिक रूप से अलग रखे आदि लक्षण दिखे तो अभिभावकों को सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसे में फौरन चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए। मानसिक बीमारी संभावित है। इसलिए इसका इलाज जितनी जल्दी शुरू कर दी जाए उतने अच्छे परिणाम मिलते हैं।