राष्ट्रीय

देश के 16 पावर प्‍लांट्स को यदि फौरन नहीं हुई कोयले की आपूर्ति तो बिजली उत्‍पादन हो जाएगा ठप- सीईए

नई दिल्‍ली 7 अक्टूबर। देश के पावर प्‍लाटों में कोयले की कमी की आशंकाओं के बीच केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने बड़ा बयान दिया है। प्राधिकरण का कहना है कि देश में 90 से अधिक बिजली उत्‍पादन करने वाले प्‍लांटों में अधिकतम 4 दिनों का ही कोयला बचा हुआ है। ऐसे में देश के सामने बिजली संकट खड़ा हो सकता है। वहीं प्राधिकरण ने ये भी कहा है कि देश के 16 पावर प्‍लांट ऐसे भी हैं जहां यदि तुरंत कोयले की आपूर्ति नहीं की गई तो वो किसी भी वक्‍त ठप हो सकते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि यहां से होने वाली बिजली का उत्‍पादन कभी भी बंद हो सकता है।

सीईए ने तीन दिन पहले ही एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बिजली संयंत्रों के लिए मौजूद कोयले भंडार का जिक्र किया गया था। इसमें कहा गया है कि 25 पावर प्‍लांट्स के पास केवल एक दिन, 20 पावर प्‍लांट्स के पास दो दिन, 14 प्‍लांट्स के पास तीन दिन और 16 प्‍लांट्स के पास महज चार दिन, 8 प्‍लांट्स के पास पांच दिन, 8 प्‍लांट्स के पास छह दिन और एक पावर प्‍लांट्स के पास केवल सात दिनों का कोयला भंडार ही बचा हुआ है। ऐसे में यदि इन प्‍लांट्स को कोयले की आपूर्ति तुरंत नहीं की गई तो देश के सामने बिजली का गंभीर संकट हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो इससे देश को जबरदस्‍त आर्थिक चपत भी लगनी तय है।

इस रिपोर्ट से ये साफ हो गया है कि देश के किसी भी पावर प्‍लांट्स के पास आठ दिन के लिए भी कोयले का स्‍टाक नहीं बचा हुआ है। बुधवार को कोयला मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि तीन बातों पर गौर कर रहा है, जो प्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं। इनमें से पहला है संस्‍थागत संचालन व्‍यवस्‍था, समुदाय और पर्यावरण सुधार, न्‍यायसंगत बदलाव के सिद्धांत पर भूमि के दोबारा उपयोग के आधार पर खान को बंद करने की रूपरेखा।

मंत्रालय का ये भी कहना है कि देश में कोयले का उत्‍पादन बढ़ा है और देश की ऊर्जा की मांग को पूरा करने की हर संभव कोशिश की जा रही है। मंत्रालय के आंकड़े भी इस बात की तसदीक करते दिखाई दे रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष जुलाई में कोयले का उत्‍पादन पिछले वर्ष इसी माह की तुलना में करीब 19.33 फीसद तक बढ़ा है। हालांकि जानकार ये भी मानते हैं कि देश में कोयले का पर्याप्‍त भंडार मौजूद है। ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा का कहना है कि मौजूदा संकट की वजह बारिश का लंबे समय तक होना, कोयले का प्रबंधन, खनन में आधुनिकता की कमी रही है। हालांकि वो ये भी मानते हैं कि इस संकट से बचा जा सकता था।

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