छत्तीसगढ

गड़ेगोंडी, हल्बी और धुर्वा बोली के साथ हिंदी भाषा में दे रहे हैं कोरोना से बचने की उपाय…कहा और कौन बता रहे है?

जगदलपुर, 30 अक्टूबर। बस्तर के ग्रामीण अंचलों में कोरोना महामारी से बचाव और रोकथाम के लिए अब छोटे-छोटे स्कूली बच्चों ने प्रचार की कमान संभाल ली है। लगभग 10 से 11 साल की बच्चियां बस्तर के ग्रामीण अंचलों में जाकर ग्रामीणों को उन्हीं की बोली और भाषा में कोरोना से बचाव के लिए संदेश दे रही हैं

स्थानीय बोली में कर रही हैं जागरूक

जिस तरह से कोरोना महामारी की चपेट में शहरवासियों के साथ-साथ ग्रामीण भी आ रहे हैं, ऐसे में यह नन्हीं बच्चियां बस्तर के ग्रामीण अंचलों में बस्तरिया वेशभूषा में ग्रामीणों के बीच पहुंचकर स्थानीय गोंडी, हल्बी और धुरवा बोली के साथ हिंदी भाषा में कोरोना से बचने की उपाय बता रही हैं। बस्तर दशहरा के दौरान जब शहर में सैकड़ों की संख्या में शहरी और ग्रामीण अंचलों से लोगों की भीड़ पहुंचती थी। ऐसे में यह बच्चियां दशहरा के दौरान इस महामारी से बचाव के लिए संदेश देते दिखाई देती थीं।

girls are making people aware of Corona

कोरोना के प्रति जागरूक कर रहीं ये बच्चियां

ग्रामीण वेशभूषा में देती हैं संदेश

इन बच्चियों को शिक्षक कोटेश्वर नायडू ने करोना से बचाव के लिए इन्हें जानकारी दी है। जिसे ये बच्चियां अपनी-अपनी बोलियों में गांव-गांव में जाकर ग्रामीणों को कोरोना से बचाव के लिए संदेश देती हैं। बच्चियां बकायदा अपने चेहरे पर मास्क लगाकर कोरोना से बचाव के लिए और सावधानी बरतने के लिए संदेश देती हैं। बच्चे स्थानीय बोली में अपने संदेश में ग्रामीणों को बताते हैं कि इस महामारी से बचने के लिए बार-बार साबुन से हाथ धोने चाहिए। घर से बाहर निकलने पर मास्क का उपयोग करना चाहिए। साथ ही बुखार, खांसी या सिर दर्द होने पर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर दिखाना चाहिए। ये सभी बच्चियां दरभा के कवारास गांव की हैं। इस वायरस से बचने के प्रचार के लिए लगभग 10 बच्चियां अपने आस-पास के गांव में ग्रामीण वेशभूषा में प्रचार करते हैं।

मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित

शिक्षक कोटेश्वर नायडू ने बताया कि जिस तरह से शहर के साथ-साथ अब ग्रामीण अंचलों में भी कोरोना महामारी फैल रही है और ऐसे में कई बार स्थानीय ग्रामीणों को हिंदी भाषा समझ में नहीं आती ऐसे में इन बच्चियों को हिंदी में जो भी कोरोना से बचने के लिए संदेश लिखकर दिया जाता है, वह ये बड़ी ही खूबसूरती से अपने स्थानीय बोली में गांव-गांव में ग्रामीणों के बीच जाकर इस महामारी से बचाव और सावधानी बरतने का संदेश देती हैं। शिक्षक ने बताया कि सभी बच्चियां नक्सल प्रभावित गांव से आती हैं। 6वीं से 8वीं में पढ़ने वाली यह सभी बच्चियां दशहरा पर्व में भी पहुंचकर दशहरा की रस्मों के दौरान सभी को कोरोना से बचने के लिए गोंडी, हल्बी और धुरवा बोली में उपाय बता रही हैं। बच्चियों के इस नेक कार्य की जानकारी जब बुधवार को बस्तर पहुंचे मुख्यमंत्री को लगी तो उन्होंने इन बच्चों को प्रमाण पत्र देकर इनके नेक कार्य के लिए इन्हें सम्मानित भी किया।

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