महापौर के चुनाव प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
रायपुर। कांग्रेस प्रवक्ता आर.पी.सिंह ने जानकारी देते हुये बातया कि ज्ञात हो कि शासन की महापौर के चुनाव के लिये जारी अध्यादेश को चुनौती देते हुये याचिकाकर्ता अशोक विधानी, अशोक चावलानी एवं अन्य द्वारा याचिका दायर की थी, जिसमें यह कहा गया था कि शासन द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से महापौर का चुनाव करवाया जा रहा है जो कि विपरीत है तथा यह मांग की थी कि यह अध्यादेश आगामी चुनाव तक स्थगित किया जाये। इसके पूर्व में इन सभी याचिकाओं में महापौर के अप्रत्यक्ष अगामी चुनाव को स्थगित करने की प्रार्थना याचिकाकर्ता द्वारा की गई थी और यह अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव को नियम विरूद्ध बताने का प्रयास याचिकाकर्ता द्वारा किया गया था। पूर्व में भी याचिकाकर्ता अशोक विधानी, अशोक चावलानी ने अपना पक्ष रखते हुये मानीनय न्यायालय को यह बताया था कि चुनाव असंवैधानिक प्रक्रिया के तहत हो रहा है ओर तब भी माननीय उच्च न्यायालय ने शासन के तर्क को स्वीकार करते हुये किसी तरह की स्थगन याचिका से इंकार किया था। माननीय उच्च न्यायालय ने संबंधित समस्त याचिकाओं को समाप्त कर दिया है।
पदोन्नति में आरक्षण का मामला
कांग्रेस प्रवक्ता आर.पी.सिंह ने जानकारी देते हुये बातया कि माननीय उच्च न्यायालय में शासन के विरूद्ध शासन की पदोन्नति में आरक्षण की नीति को चुनौति करते हुये याचिका दायर की थी। उक्त याचिका में याचिकाकर्ता विष्णु प्रसाद तिवारी द्वारा यह कहकर याचिका दायर की थी कि शासन द्वारा जारी किये गये पदोन्नति में आरक्षण अधिनियम, 2019 माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित न्याय सिद्धांत के विपरीत हैं। जिसमें माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर द्वारा दिनांक 09.12.2019 को आदेष पारित करते हुये अधिनियम 2019 को स्थगन कर दिया था तथा शासन को यह अनुमति दी थी कि वह नियमित पदोन्नति कर सकते है। इस आदेश को चुनौती देते हुये अन्य हस्तक्षेपकर्ता द्वारा हस्तक्षेप याचिका प्रस्तुत की गई, जिसमें यह कहा गया कि शासन द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 09.12.2019 के विरूद्ध पदोन्नति की जा रही है तथा केवल अनारक्षित वर्गो के लोगो को ही पदोन्नत किया जा रहा है। हस्तक्षेपकर्ता द्वारा यह कहा गया कि शासन केवल अनारक्षित वर्गो को ही पदोन्नत कर रही है तथा इस पदोन्नति के विरूद्ध यह मांग की गई कि जब तक कि प्रकरण उच्चतम न्यायालय में लंबित है तब तक माननीय उच्च न्यायालय द्वारा तथा स्थिति का आदेश पारित किया जाये। माननीय उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेपकर्ता की मांग को अस्वीकार करते हुये शासन को यह आदेश दिया वह नियमित पदोन्नति कर सकती है। इस फैसले से राज्य शासन को बड़ी राहत मिली है। तथा आगामी समय में जो पदोन्नति रूकी हुई थी वह अब शासन द्वारा नियमित रूप से नियमों के अनुरूप किये जायेंगे।