छत्तीसगढ

मुबई के मुलुंड फोर्टिस हॉस्पिटल में लिवर का सफल ट्रांसप्लांट कर सिद्धार्थ लौटा अपने घर

रायपुर। बिलासपुर का 10 वर्षीय सिद्धार्थ यादव एक उत्साहपूर्ण स्कूली छात्र है, लेकिन जब उसे जुलाई 2019 में जॉन्डिस (पीलिया) हुआ तो उसे स्कूल छोड़ देना पड़ा। उसकी माँ, जो एक गृहिणी हैं, अपने बीमार बच्चे को एक स्थानीय डॉक्टर के पास उपचार के लिए ले गई, लेकिन खास फायदा नहीं हुआ। उसके बाद उसे स्थानीय चाईल्ड अस्पताल लाया गया जहाँ उसे एक समाह तक भर्ती रखा गया, लेकिन वहां भी उसकी स्थिति लगातार बिगड़ती गई। उसके बाद वो अपनी माँ और चाचा के साथ नागपुर आया जहां ओपीडी में उसका इलाज किया गया। जहां पर उसकी जाँच किए जाने पर उसे बिल्सन्स बीमारी होने का पता लगा। आपको बता दें कि यह एक आनुवंशिक विकृत डिसेज है, जिसमें
शरीर में बहुत ज्यादा मात्रा में तांबा (कॉपर) जमा हो जाता है। विशिष्ट रुप से लिवर, मस्तिष्क और ऑखों
में। डॉक्टरों ने उन्हें हैदराबाद के एक अस्पताल में उपचार कराने की सलाह दी। स्थानीय तौर पर कोई हल
नहीं होने के कारण परिवार को यहीं एकमात्र उम्मीद लगा और उन्होंने रायपुर जाकर डॉ. स्वप्निल शर्मा से मुलाकात की।
मुलुंड स्थित फोर्टिंस हॉस्पिटल के लिवर ट्रान्स्प्लांट और एचपीबी सर्जरी कन्सल्टेंट डॉ. शर्मा, जो छत्तीसगढ़
के पहले और एकमात्र लिवर ट्रान्स्प्लांट सर्जन हैं, ने परिवार के इलाज के लिए मुंबई आने की सलाह दी।
अस्पताल में जाँच किए जाने पर ये साफ हुआ कि उसके पेट में बड़े पैमाने पर तरल पदार्थ जमा हो गया है,
इसके साथ ही सलाह दी गई जिससे उसकी सेहत पर पूरी नज़र रखी जा सके। डॉक्टरों की देखरेख में सिद्धार्थ आज पूरी तरह सवस्थ है। इस बीमारी से लड़ने परिवार ने अपनी सारी जमा-पूंजी खर्च कर दी थी। रेड क्रॉस सहित स्थानीय लागों न सिद्धार्थ की सजरी के लिए छत्तीसगढ़ में निधि एकत्रित करने में मदद की। एनरजीओ, ट्रस्ट और क्राऊंड फॉ्डग
प्लटफाम्स ने मुंबई में और भी निधि जुटाने में सहायता की। सिद्धार्थ के साथ उसकी माँ, चाचा आर अन्य
रिश्तेदार भी आए। सिद्धार्थ बड़ा होकर डॉक्टर या पुलिसकर्मी बनना चाहता है।
मुंबई के मुलुंड स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के लिवर ट्रान्स्प्लांट और एचपीबी सर्जन डॉ. स्वप्रिल शर्मा ने
सिद्धार्थ के बारे में बात करते हुए कहा, “बीमारे के कारण बच्चों को स्कूल छोड़ते हुए देखना बहुत
निराशाजनक है। अब मुझे खुशी है कि सिद्धार्थ को समय पर मेडिकल सहायता मिली। सफल लिवर ट्रान्स्सप्लाट
सजेरी के बाद, जहाँ उसकी माँ ने उनके लिवर का एक भाग दान किया, सिद्धार्थ की हालत में तेज़ी से सुधार
ही रही है और कुछ ही महीनों में वो दुबारा स्कूल वापस जाना शुरु कर सकेगा। सिद्धार्थ और पीयूष जिनकी
फोरटिस हॉस्पिटल, मुलुंड में लिवर ट्रान्सप्लांट सर्जरी की गई, के केस का उदाहरण देते हुए मैं चाहता हूँ लोग
यह जानें कि पीडियाट्रिक लिवर ट्रान्स्प्लांट के लिए एनजीओ, ट्रस्ट इत्यादि से आर्थिक सहायता प्राप्त करना
सभव है। ऐसे बच्चे जिन्हें लिवर के उन्रत देखभाल की ज़रुरत हैं, उनके परिवारों को समय पर मेडिकल
सहायता प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।”
सिद्धार्थ के संघर्ष के बारे में बात करते हुए उसकी माँ, 30 वर्षीय पूर्णिमा यादव ने कहा, “हमारी प्रार्थनाएं
सुन ली गई। जब हम डॉ. स्वप्रिल शर्मा से मिले, हम कई अस्पतालों में गए लेकिन मेरे बेटे का स्वास्थ्य ठीक
नहीं हो रहा था। हमारे शुभचिंतकों और सामाजिक रुप से ज़िम्मेदार संस्थाओं ने मेरे बच्चे को जीवनदान दिया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button