छत्तीसगढ

रायपुर रेल मंडल ने ट्रेनों के 375 कोचों में लगाए 1400 बायो टॉयलेट…यात्रियों से आग्रह…टॉयलेट में न डाले पाउच-बोलत-कप

रायपुर, 20 जुलाई। भारतीय रेल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रेल नेटवर्कों में से एक अपने नेटवर्क के माध्यम से अपने यात्रियों को विश्व स्तर की सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। अपने यात्रियों को स्वच्छ वातावरण और सुगम यात्रा का अनुभव प्रदान करने के लिए भारतीय रेल ने ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ रेल’ पहल के अंतर्गत विभिन्न कदम उठाए हैं। जिसमे से एक है बायो टॉयलेट भी शामिल हैं।

भारतीय रेल में सत्र 2019-20 के दौरान 14,916 रेल डिब्बों में 49,487 जैव-शौचालय (बायो टॉयलेट) लगाए गए। इसके साथ ही 100 फीसदी कवरेज के साथ 68,800 कोचों में लगाए गए जैव शौचालयों की संयुक्त संख्या 2,45,400 से अधिक हो गई है।

रायपुर रेल मंडल की बात करें तो रायपुर रेल मंडल ने अपनी लगभग 13 गाड़ियों दुर्ग -जम्मूतवी- दुर्ग, अजमेर -दुर्ग -अजमेर, दुर्ग-राजेंद्रनगर- दुर्ग, दुर्ग-अंबिकापुर- दुर्ग, दुर्ग-कानपुर-दुर्ग सहित सभी गाड़ियों में लगभग 375 कोचों में 1400 जैव शौचालय ( बायो टॉयलेट) लगाए हैं। जिससे पर्यावरण प्रदूषण नहीं होता एवं पटरियों पर वेस्ट प्रोडक्ट भी नहीं दिखता साथ ही बायो टॉयलेट में लगे बैक्टीरिया वेस्ट मटेरियल को डस्ट पाउडर के रूप में बदल देते है।

रेल यात्रियों से अपेक्षाएं है कि यात्रियों द्वारा बोतल, चाय के कप, कपडे, नेपकिन, पोलिथीनव गुटखा पाउच इत्यादि को टॉयलेट पैन में डालने के कारण बायो-टॉयलेट जाम हो जाता है और सुचारू रूप से कार्य नहीं करता है। अतः कृपया शौचालय में बोतल, चाय के कप, कपडे, नेपकिन, पोलिथीन व गुटखा पाउच इत्यादि ना डाले। हर बायो-टॉयलेट टैंक के कोच के टॉयलेट में एक डस्टबिन भी रखा गया है जिसमें कूड़े इत्यादि को डाला जा सकता है।

इस बायो-टॉयलेट स्टील टैंक की संरचना कुल 6 भागो में की गयी है। जिससे कि बायो डीग्रीषण सफलतापूर्वक हो। इस टैंक के निर्माण में स्टील की आधार प्लेट, अलग अलग खंड वाले प्लेट, बॉल वाल्व और पी ट्रैप का उपयोग किया गया है तथा टॉयलेट पैन को रबर ट्युब के साथ जोड़कर लगाया गया है। बायो-टॉयलेट टैंक को कोच के अंडर फ्रेम में लगाया गया है एवं इसी टैंक में बेक्टेरिया द्वारा मल-मूत्र को नष्ट करके हानिरहित पानी बाहर निकाला जाता है।
रेल यात्रियों द्वारा टॉयलेट के उपयोग के पश्चात् उत्सर्जित मल मूत्र पी ट्रैप पाइप के माध्यम से टैंक के अंदर जाता है तथा टैंक में पूर्ण रूप से भरे हुए बेक्ट्रिया कल्चर(इनोकुलुम) के द्वारा मल मूत्र को बायोलॉजिकल पद्धति के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। मल मूत्र को टैंक में ही साधारण पानी और गैस में परिवर्तित कर दिया जाता है। बायो टॉयलेट में उत्पन्न
गैस टैंक से बाहर निकल जाती है और हानिरहित पानी क्लोरिन चेम्बर से होकर बहार निकल जाता है।

बायो-टॉयलेट के टैंक से निकलने वाले एफलुयेंट की जाँच प्रत्येक तीन माह के अंतराल में किया जाता है और उससे यह सुनिश्चित किया जाता है की बेक्ट्रिया कल्चर (इनोकुलुम) ठीक तरह से कार्य कर रहा है।

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