छत्तीसगढ

…लीना न तो सुन सकती और न ही बोल सकती… हर अभिव्यक्ति उसकी अदम्य इच्छाशक्ति ही है…जरूर पढ़िए उसकी संघर्ष की दास्तां

नारायणपुर। कभी वह एक कोने में दुबकी-सहमी बैठने वाली लड़की थी, पर आज उसके बनाये गये रियूजेबल मॉस्क नारायणपुर जिले के हर कोने में रहने वाले जरूरतमंदों के काम आ रहे है। मॉस्क लोगों के कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने में अपनी अलग भूमिका निभा रहे है। लीना उस दिव्यांग लड़की का नाम है, जो जन्म से गूंगी-बहरी है। मां को आज भी तारीख 23 मई साल 1997 याद है। जब उसने एक बच्ची को जन्म दिया। उसे ये मालूम ना था, कि वह बच्ची बोल और सुन नहीं सकती। मां उसे रोज सुलाने के लिए लोरी सुनाती, नाम रखा लीना । इस से अन्जान कि वह बोल और सुन नहीं सकती है। यह बात छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन 300 किलोमीटर दूर और जिला नारायणपुर से 12 किलोमीटर दूर स्थित गांव नाउमुंजमेटा की है। हर कोई सामान्य व्यक्ति कुछ न कुछ काम करता है, पर इसकी बात अलग है। वह दुनिया की सभी बातों से अन्जान है। लीना न बोल सकती और न सुन सकती है। फिर उसे कैसे महसूस होता है कि दुनिया में कुछ गड़बड़ हुई है। यह सोचने -समझने की बात है ।
धीरे-धीरे समय बीता,बच्ची 6-7 माह की हुई तो मां को कुछ भय सताने लगा। तब लोगों कि सलाह परनजदीक के अस्पताल में दिखाया गया। मालूम चला की जन्म से ही उसके कान के पर्दे विकसित नहीं हुए। इस कारण बच्ची बोल और सुन नहीं पाती। साल-दर साल बीते मां ने नीम-हकीम और देवी-देवताओं से भी फरयाद की पर काम नहीं आयी। जब उसे किसी चीज की जरूरत महसूस होती तो, वो बेचैन हो उठती। उसे समझ नहीं आता कि वो कैसे अपनी जरूरतों के बारें में दूसरों को बतायें। एक उसकी मां ही थी, जो उसे और उसकी जरूरतों का समझती थी ।
मां के अलावा पिता, भाई और बहन भी है। मगर कोई उसके जज्बातों की परवाह नहीं करते। कहने के लिए घर में सब थे पर वो अकेली थी। क्या इस दिव्यांग गूंगी,बहरी लड़की को कुछ सिखाया जा सकता था। तो हां उसकी मां ने यह कर दिखाया। उसकी भाषा-जरूरत को महसूस किया। ज़िला पंचायत के मुख्य कार्य पालन अधिकारी श्री प्रेमकुमार पटेल ने उनकी मदद की । मां ने उसे शासन की योजनाओं के तहत सिलाई-कड़ाई का प्रशिक्षण दिला कर हुनरमंद बनाया। खाने आदि बनाने के लिए कुकिंग कोर्स करवाया। मां स्व सहायता समूह से जूड़ी है। लीना भी समूह के हर जरूरत के सामान बनाती है। लॉकडाउन के कारण मैं लीना से रू-ब-रू नहीं हो पाया, उसके ऐहसास को महसूस नहीं कर पाया, इसका अफसोस है। महिला समूह की श्रीमती दुर्गा से मोबाइल पर जानकारी दी तब पता चला कीं नक्सल प्रभावित जिले का हर तबका कोराना के खिलाफ जंग में शामिल है ।चुपचाप रहकर अपना बेहतर काम कर रहा है। जो कुछ नहीं कर रहे वे लॉकडाउन का ग़र बैठ कर सरकार के गाइडलाइन का पालन कर रहे है।
आज लीना 23 वर्ष की हो चुकी है, पर वह नहीं जानती कोरोना वायरस क्या है। बस सिर्फ उसे पता है, कि कुछ तो जिससे सब भयभीत है और उसके बचाव के लिए मुंह पर कपड़ा बाधें हुए है, पर वह दिखता नहीं। मां ने उसको उसकी भाषा में ही समझाया और वह समझ गयी। आज गूंगी-बहरी (दिव्यांग) होनहार लीना जरूरतमंदों के लिए रियूजेबल मास्क बना रही है। दिनभर में वह लगभग 75-80 मॉस्क बना लेती है। जो जिले के गांव-देहातों में जरूरतमंदों को दिए जा रहे है। कलेक्टर श्री पी.एस. एल्मा ने उसके काम की तारीफ की और उसके द्वारा बनाये जाने वाले मॉस्क खरीद कर ग्राम पचायतों और गांव के जरूरतमंदों को वितरण के लिए कहा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button