छत्तीसगढ

लोकजतन सम्मान 2020 से अभिनन्दित होंगे बस्तर और छग की पत्रकारिता के आइकॉन कमल शुक्ला

रायपुर, 30 जून। लोकजतन सम्मान 2020 से निर्भीक और सजग पत्रकार कमल शुक्ला को अभिनन्दित किया जाएगा।  यह जानकारी लोकजतन प्रकाशन की ओर से जारी एक घोषणा में दी गयी है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रमुख पाक्षिक के रूप में  बिना किसी व्यवधान के प्रकाशन के लगातार 21 वां  वर्ष पूरा करने जा रहे लोकजतन  ने जागरूक और सचमुच की पत्रकारिता से जुड़े पत्रकारों को सम्मानित करने का सिलसिला पिछली वर्ष वरिष्ठ पत्रकार, सम्पादक डॉ राम विद्रोही को सम्मानित करने से शुरू किया है।  यह सम्मान लोकजतन  के संस्थापक सम्पादक शैलेन्द्र शैली (24 जुलाई 1957 – 7 अगस्त 2001) के जन्म दिन 24 जुलाई को भव्य समारोह में  दिया जाता है।  इस बार यह आयोजन रायपुर में किया जाएगा।
कमल शुक्ला बस्तर और छग की बहादुर पत्रकारिता के आइकॉन हैं।  1985 से बस्तर के विभिन्न कस्बों और शहरों में रहते हुए अमृत सन्देश, दैनिक छत्तीसगढ़, पत्रिका व दण्डकारण्य समाचार से जुड़कर पत्रकारिता की। लेकिन यहां भी उन्हें समाचार पत्र मालिकों के शोषण के खिलाफ लड़ना पड़ा। एक पत्रकार के रूप में उन्होंने बस्तर के जल-जंगल-जमीन को कार्पोरेटों को बेचने की सरकारी साजिशों का पर्दाफाश किया और इस लूट को सुनिश्चित करने के लिए बस्तर के आदिवासियों को फर्जी मामलों में जेल भेजे जाने तथा उन्हें फर्जी मुठभेड़ों में मार डालने के अनेकानेक मामलों को उजागर किया। उनकी साहसिक पत्रकारिता को रोकने के लिए उनके काम पर अघोषित प्रतिबंध भी थोपा गया। बस्तर में आदिवासियों पर अत्याचार के लिए कुख्यात पुलिस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी के आईजी रहते हुए अघोषित रूप से उनके बस्तर में घुसने और पत्रकारिता करने से 2 साल से अधिक समय तक रोका गया, लेकिन फिर भी उन्होंने आंध्र और तेलंगाना की सीमाओं से बस्तर में घुसकर तथ्यपरक रिपोर्टिंग के काम को अंजाम दिया।
इसी दौरान उन्होंने गोम्पाड़ गाँव की मड़कम हिड़मे का मामला उजागर किया, जिसे पुलिस द्वारा सामूहिक बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी और पूरे मामले को फर्जी मुठभेड़ का रूप देकर उसे माओवादी बता दिया गया था। इस घटना की रिपोर्टिंग भी जान पर खेल कर हुई। बाद में उच्च न्यायालय को भी इस घटना का संज्ञान लेकर जांच के आदेश देने पड़े थे।
बस्तर के प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए भाजपा प्रायोजित सलवा जुड़ुम के नाम पर लाखों आदिवासियों को उनके घरों और गांवों से विस्थापित करने और नक्सली बताकर उन्हें मार डालने के षडयंत्र को उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग से स्थापित किया। इस मामले में उनके साहसिक योगदान को देखते हुए उन्हें “कमेटी टू प्रोटेक्ट ऑफ जर्नलिस्ट्स (सीपीजे)” द्वारा अमेरिका में आयोजित प्रेस फ्रीडम अवॉर्ड के कार्यक्रम में भी आमंत्रित किया गया था, जहां उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व भाजपा सरकार के मंसूबों का पर्दाफाश किया।
अपनी जन पक्षधर रिपोर्टिंग के कारण उन्हें तत्कालीन भाजपा सरकार के कोप का शिकार होना पड़ा। उन पर कई फर्जी मामले दर्ज करवाये गए, जिनमें सोशल मीडिया में एक कार्टून शेयर करने पर राष्ट्रद्रोह का मामला भी शामिल है। पत्रकारों को डराने-धमकाने के लिए भाजपा सरकार द्वारा किये गए इस कुकृत्य की राष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई। पुलिस द्वारा आदिवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों के दबे-छिपे मामलों को आज भी वे उजागर कर रहे हैं, जिसके कारण अब वे कांग्रेस सरकार की आंखों की भी किरकिरी बने हुए हैं।
पत्रकार सुरक्षा कानून को बनाने और लागू करने की मांग को लेकर वे लगातार अभियान-आंदोलन चला रहे हैं, जिसका प्रारूप पीयूसीएल के साथ मिलकर उन्होंने तैयार किया था और तब की विपक्षी कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद इसे लागू करने का वादा किया था।
24 अगस्त, 1967 को बिलासपुर में जन्मे कमल शुक्ला कालेज की पढ़ाई के लिए कांकेर आये थे । इस दौरान एसएफआई, जनवादी लेखक संघ और जन नाट्य मंच से जुड़े । मानव समाज और जीवन के प्रति उनमें वैज्ञानिक सोच और दृष्टि विकसित करने में इन संगठनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा और बस्तर में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए आदिवासियों के साथ किये जा रहे अन्याय के खिलाफ लड़ने का जज़्बा पैदा हुआ। इसके लिए उन्होंने पत्रकारिता को अपना हथियार बनाया। अभी कुछ समय  से रायपुर में हैं और भूमकाल समाचार के सम्पादक हैं।

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