छत्तीसगढ

अपनी भूलों का पश्चाताप् अंतर के भावों से करें, केवल शब्दों से नहीं: साध्वी सम्यकदर्शनाश्री

रायपुर, 11 अक्टूबर। श्री जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी एमजी रोड में जारी जिनवाणी प्रवचन के अंतर्गत शनिवार की धर्मसभा में साध्वी सम्यकदर्शनाश्रीजी महाराज साहब ने कहा कि अपनी शूल रूपी भूलों, दोषों को निकालने का प्रतिक्रमण ही एक माध्यम है। इसीलिए प्रतिक्रमण करने से पूर्व मन-वचन-काया के द्वारा की हुई अपनी सारी भूलों, दुगुर्णों को याद कर लो, फिर उनका पश्चाताप् अंतर के भावों से करों, केवल शब्दों से नहीं। गुरू के समझ प्रायश्चित लेकर फिर कभी वैसी भूलें मुझसे नहीं होंगी, ऐसी प्रतिज्ञा करो, तो ही तुम्हारा प्रतिक्रमण सार्थक होगा। केवल तोते की तरह रंटत विद्या से शब्द बोलकर क्षमापणा करने का कोई अर्थ नहीं, पश्चाताप्-प्रायश्चित के साथ तुम्हारे अंतर के भावों का जुड़ना अत्यंत आवश्यक है। यदि शब्दों के साथ भाव न जुड़े हों तो वे शब्द प्राणहीन हैं, उनकी कोई कीमत नहीं होती।
साध्वी भगवंत ने एक जीवंत प्रसंग के माध्यम से उक्त चिंतन को स्पष्ट करते हुए कहा कि पिंजरे में कैद तोते को उसका मालिक आजाद कर देता है किंतु दिनभर घूम-फिर कर वह तोता पुन: शाम को पिंजरे में वापस आ जाता है। ठीक ऐसी अवस्था संसारी मनुष्यों की भी है। मनुष्य पापों से मुक्त होना चाहता है, केवल शब्दों से मिच्छामि दुक्कड़म कहता है और पुन: संसार के कसायों में आकर उलझ जाता है। आज तक उसने कितने ही प्रतिक्रमण किए किंतु वे उसके लिए सार्थक नहीं हो पाए, वह इसीलिए कि उसके प्रतिक्रमण में, पश्चाताप् में केवल प्राणहीन शब्द ही थे, उनमें भावों की प्रधानता न थी।
चातुर्मास समिति के अध्यक्ष सुरेश भंसाली, महासचिव पारस पारख, कोषाध्यक्ष दीपचंद कोटड़िया, पंकज कांकरिया (गोलू), इकतीसा प्रभारी जिनेश गोलछा व प्रचार प्रभारी तरुण कोचर ने बताया कि अखंड तपों की श्रृंखला में शुक्रवार को श्रीमती कांता बरड़िया ने व शनिवार को श्रीमती उषा मेहता ने आयम्बिल किया। वहीं तेले की तपस्वी श्रीमती सुशीला देवी भंसाली का शनिवार को तेला पूर्ण हुआ।

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