संसद में टीएमसी नेता शांतनु सेन ने की घटिया हरकत, याद आया ममता बनर्जी का अशोभनीय आचरण
नई दिल्ली, 23 जुलाई। विपक्ष किस तरह संसद में अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति गंभीर नहीं और विरोध के नाम पर हंगामा करने में अतिरिक्त दिलचस्पी दिखा रहा है, इसका प्रमाण है राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के सदस्य शांतनु सेन की ओर से आइटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथ से कागज छीनकर फाड़ देना। यह हर लिहाज से एक घटिया हरकत है। सबसे खराब बात यह रही कि यह ओछी हरकत उच्च सदन में हुई। इस हरकत से यह धारणा ही ध्वस्त हुई कि निचले सदन यानी लोकसभा की अपेक्षा राज्यसभा में कहीं अधिक धीर-गंभीर चर्चा होती है। यह अफसोस की बात है कि अब दोनों सदनों के कामकाज में अंतर करना कठिन हो रहा है। यह ठीक है कि विपक्ष जासूसी प्रकरण पर आंदोलित है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह इस मसले पर सरकार का पक्ष सुनने से इन्कार करने के साथ संसद की गरिमा गिराने वाला काम करे। आखिर यह क्यों न मान लिया जाए कि उसकी दिलचस्पी चर्चा और बहस में नहीं, हंगामा करने में है।
तृणमूल कांग्रेस सांसद शांतनु सेन ने अपने अशोभनीय आचरण से संसद में ऐसी ही शरारत करने वाले सांसदों की याद दिला दी। इनमें उनकी नेता ममता बनर्जी भी हैं। एक समय उन्होंने बतौर लोकसभा सदस्य अध्यक्ष के समक्ष जाकर उन पर कागज फेंके थे। तब उनकी नाराजगी का कारण बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों को मिल रहा संरक्षण था। यह विडंबना ही है कि आज वह इन घुसपैठियों की सबसे बड़ी हितैषी बन गई हैं। हैरानी नहीं कि शांतनु सेन को अपनी हरकत पर ममता और अपने अन्य साथियों से शाबासी मिली हो। जो भी हो, ऐसे असंसदीय आचरण के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
यदि शांतनु सेन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती, तो आने वाले दिनों में संसद में वैसे ही दृश्य फिर से दिखने को मिल सकते हैं, जैसे गत दिवस देखने को मिले। संसद में सड़कछाप आचरण सहन नहीं किया जाना चाहिए। यदि सहन किया जाएगा तो फिर संसद और सड़क की राजनीति में फर्क करना मुश्किल हो जाएगा। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सत्तापक्ष ने शांतनु सेन के आचरण को शर्मनाक कहा, क्योंकि इससे उनकी सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं।
उन्हें दंड का भागीदार बनाया जाना चाहिए, क्योंकि मामला संसद की मर्यादा का है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि शांतनु सेन आइटी मंत्री अश्विनी वैष्णव से छीनाझपटी करने के दौरान एक अन्य मंत्री हरदीप पुरी से भी उलझे। आखिर सांसद संसद में बहस करने आते हैं या छीनाझपटी करने? सवाल यह भी है कि अन्य विपक्षी दल शांतनु सेन के अभद्र आचरण की आलोचना क्यों नहीं कर पा रहे हैं?