साढ़े 3 किलो के ट्यूमर की गिरफ़्त में था दिल, फेफड़ा, हार्ट..सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू ने सफल ऑपरेशन कर निकली ट्यूमर, दिलाई राहत
रायपुर, 13 मार्च। जी हां, यह सच है कि करीब साढ़े तीन किलो के मेडिस्टाइनल ट्यूमर ने बलौदाबाजार निवासी 27 वर्षीय युवक के दिल और फेफड़े को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था। यहां तक कि इन दोनों अंगों से जुड़े महत्वपूर्ण हिस्सों पर भी ट्यूमर का दबाव था लेकिन डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हार्ट, चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं उनकी टीम की बदौलत एक जटिल ऑपरेशन के जरिये ट्यूमर को निकाल कर युवक के दिल और फेफड़े को सुरक्षित बचा लिया गया। इस बीमारी को डॉक्टरी भाषा में जाइंट मेडिस्टाइनल ट्यूमर कहा जाता है जो कि हृदय एवं फेफड़े को अपनी चपेट में लेता है। ऑपरेशन के दस दिन बाद मरीज़ स्वस्थ्य है और डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है।
बकौल युवक, छह महीने से ऐसा महसूस कर रहा था जैसे मेरे सीने को किसी चीज ने जकड़ रखा है। सीने में भारीपन, खांसी और दम फूल रहा था। हार्ट, चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जरी विभाग में हुए ऑपरेशन के बाद अब काफी अच्छा महसूस कर रहा हूं। ऐसा लग रहा है जैसे मेरे दिल और फेफड़े ट्यूमर की गिरफ्त से आजाद हो गये।
बलौदाबाजार के देवसुंदरा निवासी युवक को 6 महीने पहले छाती में भारीपन, खांसी और सांस फूलने की शिकायत थी। थोड़े से काम में भी सांस फूल जाता था। इस समस्या को दिखाने वह पलारी के एक हास्पिटल में गया जहां उसे एक्स रे में छोटा सा गोला (ट्यूमर) दिखा। गोला दिखने के बाद वह एक प्राइवेट अस्पताल में गया। वहां पर गोले की बायोप्सी की गई। बायोप्सी रिपोर्ट के जरिये कैंसर किस प्रकार का है? इस बात की जानकारी मिली। मरीज ने इसके बाद एक प्राइवेट अस्पताल में कीमोथेरेपी करवाई लेकिन ट्यूमर इतना ज्यादा बड़ा था कि कीमोथेरेपी के पूरे सायकल के बाद भी उसके आकार में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
इसके बाद मरीज एसीआई के हार्ट, चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जन एवं विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के पास आया। डॉ. कृष्णकांत साहू ने मरीज के चेस्ट का एच. आर. सीटी एवं कंट्रास्ट सीटी स्कैन करवाया जिससे पता चला कि ट्यूमर छाती में और हृदय के किस-किस भाग को अपनी चपेट में लिया है एवं पेट सीटी स्कैन करवाकर देखा गया कि यह ट्यूमर शरीर के अन्य अंगों जैसे कि फेफड़े, मस्तिष्क और यकृत में कहीं फैला तो नहीं है क्योंकि यदि यह बीमारी फैल चुकी होती तो ऑपरेशन से ज्यादा फायदा नहीं होता और ऑपरेषन करना व्यर्थ चला जाता। विदित हो कि जो कैंसर शरीर के अन्य भागों में भी फैल जाता है उसे मेटास्टेटिस स्टेज-4 का कैंसर कहा जाता है जिससे मरीज को ऑपरेशन करने से भी लाभ नहीं मिलता।*
इस युवक के केस में यह बात अच्छी रही कि यह ट्यूमर केवल हृदय और फेफड़े को अपनी जकड़ में लिया था एवं अन्य अंग सुरक्षित थे। इस कारण योजना बनाई गई कि इसका ऑपरेशन करके निकाला जाएगा चूंकि यह ट्यूमर बहुत ही बड़ा था एवं हृदय के प्रमुख भागों जैसे सुपीरियर वेनाकेवा, इन्नोमिनेट वेन, पल्मोनरी आर्टरी एवं वेन, पेरीकार्डियम (हृदय की झिल्ली) एवं दायें फेफड़े के मध्य लोब (मिडिल लोब) को अपनी चपेट में ले लिया था जिसके कारण इन अंगों से ट्यूमर को अलग करना बहुत ही जटिल कार्य था क्योंकि इसमें जरा भी चूक हो जाने से मरीज की मृत्यु भी हो सकती थी।_
ऐसे किया ऑपरेशन
डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार, यह ट्यूमर बहुत ही बड़ा था। हृदय के साथ-साथ दायें फेफड़े को भी अपने चपेट में ले लिया था जब इस ट्यूमर को निकालने की योजना बनाई गई तो ऑपरेशन के पहले रेडियोलॉजी विभाग में इंटरवेंशनल न्यूरो रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सी. डी. साहू द्वारा डी. एस. ए. मशीन के जरिये ट्यूमर एम्बोलाइजेशन किया गया जिससे ट्यूमर के आस-पास के नसों में खून की सप्लाई को बंद कर दिया गया जिससे कि ट्यूमर से ऑपरेशन के दौरान अत्यधिक खून का बहाव न होने पाये। एम्बोलाइजेशन के दो दिन बाद मरीज को हार्ट, चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जरी विभाग के ऑपरेशन थियेटर में लिया गया जिसमें दायें छाती में चीरा लगाकर ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाल लिया गया एवं अन्य अंग जैसे कि हृदय एवं फेफड़े को सावधानीपूर्वक बचा लिया गया। ऑपरेशन के दौरान क्षतिग्रस्त फेफड़े एवं अन्य अंगों को रिपेयर कर दिया गया जिससे कि फेफड़े एवं अन्य अंग सुचारू रूप से कार्य करे और भविष्य में इसको कोई परेशानी न आये। आज मरीज पूर्णतः स्वस्थ्य है और अपने पूरे काम आसानी से कर रहा है। सांस फूलना भी बंद हो गया है। मरीज का इलाज डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत हुआ।*
ऑपरेशन में शामिल टीम
हार्ट, चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जन एवं विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के साथ डॉ. निशांत सिंह चंदेल, रेसीडेंट डॉ. तन्मय अग्रवाल, एनेस्थीसिया से डॉ. मंजू, नर्सिंग स्टाफ राजेन्द्र साहू, चोवा राम, मुनेष के साथ एनेस्थीसिया टेक्नीशियन भूपेन्द्र चंद्रा।