राष्ट्रीय

बैंकों का निजीकरण: संघ के स्वदेशी समर्थकों को सरकार के इस कदम में कोई दिलचस्पी नहीं है, पूछा- बैंकिंग विलय से क्या लाभ हुआ?

नई दिल्ली, 15 मार्च। सामाजिक जिम्मेदारी निभाने के लिए ही हुआ था बैंकों का राष्ट्रीयकरण और अब सरकारयू-टर्न ले रही है। पहले बैंकों का संचालन निजी हाथों में था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुनाफा कमाकर अपने सेठों की तिजोरी भरने वाले बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या इंदिरा गांधी के इस कदम को पलटने जा रहे हैं। केन्द्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को फिर निजी हाथों में देने के रास्ते पर बढ़ रही है। इसे लेकर बैंकों के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार का काम व्यवसाय करना नहीं है। यह कहकर उन्होंने बैंकों के निजीकरण जैसे कदम की मजबूत वकालत की है, वहीं प्रधानमंत्री के इस निर्णय पर स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन ही सवाल उठा रहे हैं।

बैंकों का निजीकरण ठीक नहीं, सरकार पुनर्विचार करे

बैंकों के निजीकरण को कठघरे में खड़ा करते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस पर सवाल उठाया है। राजन ने सरकार से बैंकों में अपना दखल कम करने और इनके संचालन में पेशेवर प्रबंधन अपनाने की अपील की है। अमर उजाला से विशेष बातचीत में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन भी सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। महाजन कहते हैं कि यह किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। किसी को भी चाहे वह निजी व्यावसायिक घराना हो या विदेशी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, उनके हाथों में सौंपना ठीक नहीं है। निजी हाथों में जाने से बैंकों का एकाधिकार बढ़ेगा। उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ेगी और बैंक राष्ट्रीयकरण के पहले वाली स्थिति की तरफ बढ़ जाएंगे। महाजन का कहना है कि केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह निजीकरण की बजाय बैंकों में अपना दखल कम करे और प्रोफेशनल प्रबंधन को बढ़ावा दे।

ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के अश्विनी राणा कहते हैं कि यह अजीब मजाक चल रहा है। एक सरकार महिला बैंक खोलने की पहल करती है, दूसरी सरकार उसे बंद करा देती है। केन्द्र सरकार को बताना चाहिए कि जब सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण होगा तो बैंकों की सामाजिक जिम्मेदारी को कौन निभाएगा? राणा स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन की राय से इत्तेफाक रखते हैं। वह साफ कहते हैं कि अब सरकार सहकारी बैंकों (कोऑपरेटिव) के डूबने के मामले सामने आने पर उन्हें रिजर्व बैंक के दायरे में ला रही है। रिजर्व बैंक को भी बताना चाहिए कि वह अब तक क्यों सो रहा था? जब बैंक अपनी तमाम शाखाएं खोल रहे थे, तो रिजर्व बैंक की चेतना कहां थी? अश्विनी राणा का कहना है कि सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।

एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, एक्सिस बैंक क्या थे?

निजी बैंकों में आईसीआईसीआई, एक्सिस, एचडीएफसी के बैंकिंग प्रबंधन, कौशल को उदाहरण के रूप में रखने पर अश्विनी राणा कहते हैं कि यह संस्थाएं पहले क्या थीं? पहले तो सरकारी वित्तीय संस्थाएं ही थीं। यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया बैंक में बदल गया। एचडीएफसी और आईसीआईसीआई भी। राणा का कहना है कि इन बैंकों के पास सामाजिक जिम्मेदारी कितनी है. इस पर गौर करना चाहिए। इसके अलावा यह ग्राहकों के साथ जिस तरह से बैंकिंग कर रही है, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक नहीं कर सकते। सरकार ने सरकारी क्षेत्र के बैंकों में अपना दखल बढ़ा रखा है। बैंकिंग प्रोफशनलिज्म की छूट ही तुलना में काफी कम है।

केंद्र को बैंकों के विलय के फायदे गिनाने चाहिए

केन्द्र सरकार ने बैंकों के विलय का निर्णय लिया था। अब यह मर्जर करीब-करीब पूरा हो रहा है। बैंकिंग प्रणाली के जानकारों का कहना है कि हर बैंक की कंप्यूटर प्रणाली अलग-अलग थी। इसका विलय करने में ही पसीना आ गया। बैंक ग्राहकों को अभी भी परेशान होना पड़ रहा है। इसके अलावा बैंक की तमाम शाखाएं बंद हो रही हैं। आने वाले समय में बैंकिंग क्षेत्र में रोजगार भी कम होंगे। अश्विनी महाजन और अश्विनी राणा दोनों का ही कहना है कि केन्द्र सरकार को अपने इस निर्णय के फिलहाल फायदे गिनाने चाहिए। बैंकिंग कारोबार से जुड़े एक विशेषज्ञ का कहना है कि वह खुलकर कुछ नहीं करना चाहते। सरकार अर्थव्यवस्था में कई स्तर पर केवल प्रयोग करती नजर आ रही है। केन्द्र सरकार के नौकरशाहों या विदेशी सलाहकारों के प्रयोग से अभी स्थिति में बड़ा सुधार नहीं दिखाई दे रहा है।

‘सरकार उपक्रमों को बेच कहां रही है, नियंत्रण दे रही है’

भाजपा के प्रवक्ता और अर्थशास्त्र की समझ रखने वाले गोपाल कृष्ण अग्रवाल इसे केन्द्र सरकार का अच्छा कदम बताते हैं। उनका कहना है कि बैंक की खराब हालत यूपीए सरकार की देन है। मोदी सरकार इस बैंकिंग क्षेत्र में बड़ा सुधार कर रही है। यूपीए के समय में खराब लोन बांटने के कारण बैंक बदहाल हुए, एनपीए बढ़ा, जिसके कारण बैंकों का मर्जर करना पड़ा। हालांकि गोपाल कृष्ण अग्रवाल बैंकों के मर्जर के लाभ नहीं गिना सके। वह केन्द्र सरकार द्वारा रेलवे के निजीकरण, एयर इंडिया और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में देने के सवाल पर कहते हैं कि यह अच्छा कदम है। अग्रवाल के अनुसार सरकार उपक्रमों को बेच नहीं रही है, बल्कि कुशल संचालन के लिए बाजार मूल्य पर शेयर लेकर इन उपक्रमों का नियंत्रण निजी क्षेत्र के लोगों (पब्लिक) को दे रही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button