छत्तीसगढ़ विधानसभा विशेष सत्र का पहला दिन: कृषि उपज मंडी संशोधन विधेयक 2020 किया पेश
- इसमें मंडी के कार्य क्षेत्र का विस्तार शामिल है. छत्तीसगढ़ सरकार सीधे नया कानून बनाने के बजाय राज्य के ही मंडी अधिनियम में संशोधन करने जा रही है। इससे मंडी को नियंत्रित करने का अधिकार मिल जाएगा।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम में जिस तरह लिमिट हटाई गई है, उसको नियंत्रित करने के लिए लेखा रखने का अधिकार। केंद्रीय कानून में आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत लिमिट की सीमा को खत्म करने की बात की गई है, लेकिन भूपेश सरकार अपने अधिनियम में संशोधन कर नई धाराएं जोड़ने वाली है, ताकि भंडारण और कारोबार के संचालन के लिए एक नियम हो। इसके तहत छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक अधिकारियों को यह अधिकार मिल जाएगा कि किसी तरह की गलत जानकारी पर संबंधित संस्थान या व्यापारियों पर कार्रवाई कर सकें।
- किसानों के संरक्षण का अधिकार। मोदी सरकार के कृषि कानूनों का विरोध करने वालों का तर्क है कि इनके लागू होने से किसानों की स्वायतत्ता खत्म हो जाएगी, साथ ही उन्हें अपनी फसल का सही दाम नहीं मिल पाएगा। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार मंडी विधेयक में बदलाव करने जा रही है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार अभी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम खरीदी पर दंड का प्रावधान नहीं करने वाली है। यहां पंजाब से अलग स्थिति है। यहां राज्य सरकार एफसीआई के लिए खरीदी करती है, इस कारण एमएसपी वाले प्रावधान को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। इस पर विधानसभा के शीत सत्र में कानून में संशोधन कर नया प्रावधान लाने की उम्मीद है।
मंडी अधिनियम में हो सकते हैं ये संशोधन
- कृषि उपज मंडी विधेयक में संशोधन कर कई नई धाराएं जोड़ी जा सकती हैं।
- भंडारण और कारोबार के संचालन के लिए एक नियम।
- राज्य के अधिकारियों को मंडी का नियंत्रण करने का अधिकार।
- केंद्रीय कानून के तहत नई निजी मंडियां खुलने पर उनका नियंत्रण राज्य के पास ही होगा।
- नियमों का उल्लंघन करने पर राज्य के पास कार्रवाई का भी अधिकार।
‘केंद्र से टकराव के लिए नहीं है कानून’
विधानसभा सत्र से पहले सोमवार को भूपेश कैबिनेट की बैठक हुई, जिसके बाद कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने साफ कर दिया था कि छत्तीसगढ़ सरकार का कृषि कानून किसानों से हित के लिए है, केंद्र से टकराहट के लिए नहीं है।
विपक्ष का काम है विरोध करना
रविंद्र चौबे ने यह भी कहा कि पंजाब के जैसे कानून बनाते तो शायद ये बातें हो सकती थी। एग्रीकल्चर ट्रेड के आधार पर सभी कानून बनाए गए हैं। राज्य की सूची में कृषि शामिल है। केंद्र सरकार से टकराहट के लिए कानून नहीं है, बल्कि किसानों की मदद के लिए है।
विपक्ष हमलावर
छत्तीसगढ़ सरकार के कृषि उपज मंडी संशोधन विधेयक का भाजपा लगातार विरोध कर रही है। सदन में भी हंगामे के आसार बने। भाजपा विधायकों ने मुखर होकर इसका विरोध किया। उन्होंने विधेयक की कानूनी गड़बड़ियों को लेकर सवाल उठाए। सोमवार को भी भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद पूर्व सीएम रमन सिंह ने मंडी संशोधन विधेयक और विशेष सत्र बुलाए जाने को लेकर कांग्रेस पर हमला किया था।
विपक्ष के सवाल
- किस विषय को लेकर कांग्रेस विशेष सत्र बुला रही है?
- आखिर कौन सी ऐसी इमरजेंसी आ गई की विशेष सत्र को बुलाना पड़ रहा है?
नया कृषि बिल क्यों?
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का कांग्रेस सरकार विरोध कर रही है। इसे पूंजीपतियों को फायदे पहुंचाने वाला कानून बता रही है। संसद ने किसानों के लिए 3 नए कानून बनाए हैं।
पहला, ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020’
इसमें केंद्र सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है। किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे।
दूसरा, ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020’
इस विधेयक में कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। सरकार का कहना है कि ये बिल कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्त करता है।
तीसरा, ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020’
इस बिल में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। सरकार का कहना है कि विधेयक के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी।
संसद के मानसून सत्र में केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े कानूनों में बदलाव किया था। इसके तहत कृषि उपज की खरीदी बिक्री के लिए मंडी जाने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई। व्यापारियों के लिए स्टाक सीमा खत्म कर दी गई और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रावधान किए गए। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों में नया कानून बनाने का सुझाव दिया था।
किसान संगठन की ये हैं प्रमुख मांगें
- कृषि बिल को लेकर अखिल भारतीय किसान महासंघ ने कुछ सुझाव दिए थे, इन्हीं में से कुछ सुधार की उम्मीद छत्तीसगढ़ सरकार से है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी को जारी रखने की गारंटी देते हुए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दर पर खरीदी को दंडनीय अपराध माना जाए।
- धान के साथ ही दलहन और तिलहन का भी समर्थन मूल्य तय होना चाहिए।
- अनुबंध खेती में किसानों को भुगतान की गारंटी बैंक या सरकार प्रदान करे। किसी भी हाल में फसल के खराब होने या उत्पादन में कमी आने का जोखिम अनुबंध खेती करवाने वाली संस्था/कंपनी वहन करे।
- किसानों के साथ अनुबंध में विवाद की स्थिति में विवादों के निपटारे के लिए, नि:शुल्क न्याय देने के लिए, जिला स्तर पर एक पर्याप्त अधिकार प्राप्त ‘विवाद निपटारा समिति’ का गठन किया जाए. समिति में अनिवार्य रूप से दो तिहाई संख्या में स्थानीय किसान प्रतिनिधियों को किसान की अध्यक्षता में शामिल किया जाए।