Nobel Peace Prize Winner मलाला की अपील : महिलाओं और लड़कियों की हालत बेहद खराब, इमरान शरणार्थियों को पाकिस्तान आने दें

लंदन, 17 अगस्त। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता पाकिस्तानी सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई ने न केवल अफगानिस्तान की स्थिति पर बल्कि महिलाओं के अस्तित्व पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने विश्व नेताओं से महिलाओं और लड़कियों को बचाने का आग्रह किया।
ब्रिटेन में रहने वाली मलाला ने मंगलवार को बीबीसी को बताया कि अफगानिस्तान में महिलाएं और लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। वल्र्ड लीडर्स को इस पर तुरंत एक्शन लेना चाहिए। मलाला ने पाकिस्तान सरकार से अफगान शरणार्थियों को जगह देने की अपील भी की है।
मलाला ने कहा, इस समय मानवता पर सबसे बड़ा संकट है। हमें अफगानिस्तान के लोगों की मदद करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘अफगानिस्तान में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं से मेरी बात हुई है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि भविष्य में उनके साथ क्या होगा।’
बाइडेन को तुरंत कड़े कदम उठाने चाहिए
मलाला ने कहा कि वे दुनियाभर के नेताओं तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं। मलाला ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को अफगानिस्तान के लोगों की सुरक्षा के लिए तुरंत और बड़े कदम उठाने चाहिए। सोमवार रात को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में बाइडेन ने अफगान संकट के लिए अफगानिस्तान के नेताओं को जिम्मेदार बताया था। उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान की फोर्स ने बिना लड़े ही तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया।
इमरान खान को लिखी चिट्ठी
मलाला ने कहा कि अफगानिस्तान के मसले पर उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को चिी लिखी है। इसमें अफगानिस्तान से आने वाले लोगों को शरण देने की अपील की है, ताकि तालिबान के डर से अफगानिस्तान छोड़कर आने वाले लोगों को रहने की सुरक्षित जगह मिल सके।
कभी मलाला भी हुईं थी आतंक का शिकार
मलाला का जन्म 1997 में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की स्वात घाटी में हुआ था। मलाला के पिता का नाम जियाउद्दीन यूसुफजई है। 2007 से 2009 तक स्वात घाटी पर तालिबानियों ने खूब आतंक मचा रखा था। इसी आतंक का शिकार मलाला भी हुईं।
मलाला बचपन से ही पढ़ाई में होशियार
तालिबान आतंकियों के डर से लड़कियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया था। मलाला तब आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। मलाला की एक टीचर बताती हैं कि जब वह ढाई साल की थीं, तब से अपने पिता के स्कूल में खुद से 10 साल बड़े बच्चों के साथ बैठकर पढ़ाई करती थीं। वे बचपन से ही पढऩे में बहुत होशियार थीं।

तालिबान के खिलाफ गुल मकाई के नाम से लिखा
साल 2009 में मलाला ने अपने असली नाम को छिपाकर गुल मकई के नाम से बीबीसी के लिए एक डायरी लिखनी शुरू की थी। इसमें उन्होंने स्वात में तालिबान के बुरे कामों का उल्लेख किया था। बीबीसी के लिए डायरी लिखते हुए मलाला पहली बार दुनिया की नजर में तब आईं, जब दिसंबर 2009 में मलाला के पिता जियाउद्दीन ने उनकी पहचान सार्वजनिक की। जनवरी 2020 में गुल मकई के नाम से मलाला पर आधारित फिल्म भी रिलीज हुई।
तालिबान ने मलाला को सिर में मारी थी गोली
2012 में तालिबानी आतंकी उस बस पर सवार हो गए, जिसमें मलाला (Nobel Peace Prize Winner) अपने साथियों के साथ स्कूल जा रहीं थीं। आतंकियों ने मलाला पर एक गोली चलाई जो उसके सिर में जा लगी। मलाला के ठीक होने की दुआ सारी दुनिया में हुई। जल्दी ही वे स्वस्थ्य हो गईं। मलाला ने अपने साथ हुई इस घटना के बाद एक मीडिया संस्था के लिए ब्लॉग लिखना शुरू किया। इसके बाद वो लोगों की नजर में आ गईं।

मलाला के नाम पर कई बड़े सम्मान
जब वे स्वस्थ हुईं तो अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार (2011) समेत कई बड़े सम्मान मलाला के नाम दर्ज होने लगे। 2012 में सबसे अधिक प्रचलित शख्सियतों में मलाला का नाम शामिल हुआ। उनकी बहादुरी के लिए संयुक्त राष्ट्र ने मलाला के 16वें जन्मदिन पर 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित किया। मलाला को 2013 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नोमिनेट किया गया। इसी साल उन्हें यूरोपीय यूनियन का प्रतिष्ठित शैखरोव मानवाधिकार पुरस्कार भी मिला।