Antim Sanskar : चिता बुझते ही राख पर लिखा जाता है 94…! चौंकाने वाले राज आए सामने…जानिए क्यों…?

Antim Sanskar : चिता बुझते ही राख पर लिखा जाता है 94…! चौंकाने वाले राज आए सामने…जानिए क्यों…?

वाराणसी, 02 दिसंबर। Antim Sanskar : मोक्षदायिनी नगरी काशी और यहां का मणिकर्णिका घाट अनादिकाल से मृत्यु, मोक्ष और अंतिम संस्कार की परंपराओं का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यह वही महाश्मशान है जहां राजा हरिश्चंद्र के समय से लेकर आज तक चिताओं की अग्नि कभी बुझी नहीं। लेकिन हाल ही में इस घाट पर देखने को मिलने वाली एक परंपरा ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, चिता की राख पर 94 अंक लिखने की रहस्यमयी परंपरा।

हैरान करने वाली परंपरा

मणिकर्णिका घाट पर जब किसी का अंतिम संस्कार पूरा होता है और चिता की आग ठंडी पड़ जाती है, तब राख को गंगा में प्रवाहित करने से पहले पुजारी या घाट के स्थानीय लोग राख पर ‘94’ अंक लिख देते हैं। घाट से जुड़े लोग इसे सामान्य मानते हैं, लेकिन पहली बार देखने वालों को यह एक अनसुलझी पहेली लगता है।

94 अंक का धार्मिक अर्थ

स्थानीय मान्यताओं और संतों की व्याख्या के अनुसार, मनुष्य के 100 कर्म माने गए हैं। इनमें 94 कर्म ऐसे होते हैं, जिन पर मनुष्य का नियंत्रण होता है, नैतिकता, व्यवहार, धर्म, समाज, निर्णय आदि। शेष 6 कर्म ईश्वराधीन माने जाते हैं, जीवन, मृत्यु, यश, अपयश, लाभ, हानि। चिता की अग्नि को इन 94 नियंत्रित कर्मों के प्रतीकात्मक अंत के रूप में देखा जाता है। राख पर 94 लिखना यह संकेत है कि, मनुष्य अपने सांसारिक कर्मों से मुक्त हो चुका है, अब शेष 6 कर्म ईश्वर पर छोड़ दिए गए।

वैज्ञानिक और दार्शनिक व्याख्या

विद्वानों के एक मत के अनुसार, चिता पर जलने के बाद शरीर का पंचतत्व में विलीन होना और मन का पांच इंद्रियों के साथ यात्रा करना, कुल छह तत्वों के रूप में माना गया है। 94 अंक इन सांसारिक बंधनों की समाप्ति का प्रतीक है। यह एक मुक्ति-संकेत, एक आध्यात्मिक कोड की तरह सदियों से उपयोग होता आ रहा है। अंतिम क्रिया के दौरान जब पुजारी मटकी फोड़कर नदी की ओर देखते हैं, तो वह यह संकेत देता है, इस संसार से तुम्हारा संबंध समाप्त…अब यात्रा ईश्वर की इच्छा पर।

काशी की आध्यात्मिक परंपरा में ‘94’ का महत्व

यहां के लोग इसे मृतक के लिए एक मौन संदेश मानते हैं। भगवद्गीता में भी मृत्यु के बाद मन, इंद्रियों और कर्मों की यात्रा का उल्लेख मिलता है। इसीलिए यह परंपरा आज भी सौ वर्षों की तरह अक्षुण्ण है।मणिकर्णिका घाट की यह अनोखी परंपरा केवल एक संख्या नहीं, बल्कि मोक्ष, कर्म और ईश्वर की इच्छा का गहन प्रतीक है, जो काशी को दुनिया के सबसे पवित्र स्थानों में एक विशिष्ट रहस्यमय पहचान देती है।

About The Author

धर्म