Bastar Dussehra : कांटों के झूले पर विराजी ‘रण की देवी पीहू दास’…! काछनगादी से शुरू हुआ बस्तर का सबसे लंबा 75 दिवसीय दशहरा महोत्सव…यहां देखें भव्य तस्वीरें

रायपुर, 22 सितंबर। Bastar Dussehra : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की सबसे अनोखी और ऐतिहासिक रस्मों में से एक काछनगादी पूजा विधान आज परंपरागत रूप से भंगाराम चौक में सम्पन्न हुई। इस रस्म के तहत एक कुंवारी कन्या बेल के कांटों से बने झूले पर लेटती है और बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व मनाने की अनुमति प्रदान करती है।

10 वर्षीय पीहू ने निभाई परंपरा
इस वर्ष भी यह जिम्मेदारी 10 वर्षीय कुंवारी कन्या पीहू दास ने निभाई। यह पीहू का लगातार चौथा वर्ष है जब उसने देवी का अवतार लेकर यह रस्म पूरी की।
इस अवसर पर बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव, मांझी-चालकी, पुजारीगण, दशहरा समिति के सदस्य और शासन-प्रशासन के अधिकारी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कमलचंद्र भंजदेव ने बताया कि, काछन देवी और रैला देवी, दोनों ही राजपरिवार की बेटियां थीं, जिन्होंने आत्मोत्सर्ग किया था। तब से यह परंपरा जीवित है। आज के दिन पनका जाति की एक कन्या पर देवी की सवारी आती है और वही दशहरे की अनुमति देती है।

क्या है काछनगादी रस्म की मान्यता?
काछन देवी को रण की देवी माना जाता है। आश्विन अमावस्या को पनका जाति की एक कुंवारी कन्या पर देवी की सवारी आती है। इसके बाद कन्या को बेल के कांटों से बने झूले पर लिटाया जाता है, जिसे काछनगादी कहा जाता है। इसी झूले से देवी राजपरिवार को दशहरा पर्व मनाने की स्वीकृति देती हैं। अनुमति मिलने के बाद राजपरिवार राजमहल लौट जाता है, और दशहरा उत्सव की अगली रस्में शुरू होती हैं।
इस दौरान परंपरागत रूप से गुरु मां द्वारा ‘धनकुली गीत’ गाया गया। पूरा वातावरण भक्ति, श्रद्धा और परंपरा से ओतप्रोत रहा।
75 दिन का दुनिया में अनोखा पर्व
बस्तर दशहरा दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला बस्तर दशहरा उत्सव है, जो पूरे 75 दिन तक विविध परंपराओं और अनूठी रस्मों के साथ मनाया जाता है। इसमें रावण दहन नहीं होता, बल्कि शक्ति की आराधना और लोक आस्था के अनगिनत रूप देखने को मिलते हैं।
बस्तर की यह अनूठी परंपरा न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि लोक मान्यताएं और रियासती परंपराएं आज भी जीवंत हैं। काछनगादी रस्म, बस्तर दशहरे की आधिकारिक शुरुआत मानी जाती है, जिसमें एक कन्या के माध्यम से देवी की आज्ञा प्राप्त करना, श्रद्धा और शक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है।

समापन
दुनिया का सबसे लंबा और अनोखा दशहरा उत्सव का समापन माई दंतेश्वरी देवी की आरती और जिया डेरा तक शोभायात्रा के बाद विभिन्न ग्राम देवी-देवताओं की विदाई के साथ होता है।
बस्तर दशहरा के बारे में मुख्य बातें
यह दुनिया का सबसे लंबा लोक पर्व है, जिसे कई हफ्तों तक मनाया जाता है।
यह पर्व 13वीं शताब्दी में बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था।
बस्तर दशहरा का मुख्य केंद्र जगदलपुर में दंतेश्वरी मंदिर है, जहाँ विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
यह पर्व रावण पर भगवान राम की विजय का उत्सव नहीं है।
बल्कि यह स्थानीय देवी दंतेश्वरी को श्रद्धांजलि देने और पारंपरिक रीतियों का पालन करने के लिए मनाया जाता है।
यह पर्व अपनी अनोखी संस्कृति के कारण वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध है।
