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Coal Crisis : बिजली संयंत्रों के सामने कोयला संकट गहराने की आशंका, जानें- आरके सिंह ने क्या कहा

नई दिल्ली। Coal Crisis : देश क्या एक बार फिर एक बड़े बिजली संकट में फंसने की तरफ अग्रसर है। संकेत तो कुछ ऐसे ही हैं। घरेलू कोयला उत्पादन में ज्यादा वृद्धि नहीं हो रही है जबकि बिजली की मांग बढ़ने से कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर ज्यादा उत्पादन का दबाव है।

दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयला इतना महंगा हो चुका कि आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों ने तकरीबन आयात बंद कर दिया है। हालात की जानकारी केंद्रीय बिजली मंत्रालय को भी है और मंगलवार को बिजली मंत्री आर के सिंह ने आयातित कोयला आधारित संयंत्रों की समीक्षा और राज्यों की तरफ से आयात किये जाने वाले कोयले की स्थिति की भी समीक्षा की।

उन्होंने घरेलू कोयले की दिक्कत देखते हुए सभी ताप बिजली संयंत्रों (Coal Crisis) को 10 फीसद तक आयातित कोयला घरेलू कोयला में मिलाने का सुझाव भी दिया लेकिन जिस तरह से कोयला मंहगा हुआ है उसे देखते हुए इस सुझाव पर अमल होना असंभव दिख रहा है।

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह से जब कोयले की कमी को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, पंजाब और यूपी में कोयले की कमी नहीं हुई है। बल्कि आंध्र, राजस्थान, तमिलनाडु में कोल की कमी हुई है। उन्होंने कहा, इन राज्यों में कोयले की कमी के पीछे अलग अलग वजह हैं। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु आयात किये कोयले पर निर्भर है। लेकिन पिछले दिनों में आयात वाले कोयले के दाम काफी तेजी से बढ़े हैं। ऐसे में हमने तमिलनाडु से कहा है कि आप आयात वाले कोयले पर निर्भर हैं, तो कोयला आयात करिए।

घट गई है कोयले की आपूर्ति

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल, 2022 को देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की कुल क्षमता 203167 मेगावाट बिजली बनाने के लिए 9.4 दिनों का कोयला था। इन बिजली संयंत्रों के पास 12 अप्रैल, 2022 को कोयले की आपूर्ति घट कर 8.4 दिनों के लिए रह गई है। जबकि नियमानुसार इन संयंत्रों के पास 24 दिनों का स्टाक रहना चाहिए। वैसे पिछले वर्ष के अक्टूबर-नवंबर, 2021 के मुकाबले कोयला आपूर्ति की स्थिति अभी अच्छी है लेकिन जिस तरह के संकेत बन रहे हैं वो चिंताजनक हैं।

इन राज्यों में बिजली कटौती बढ़ने की खबर

गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से आधिकारिक तौर पर की जाने वाली बिजली कटौती बढ़ने की खबरें आने लगी हैं। एक वजह यह है कि भयंकर गर्मी की वजह से बिजली की मांग बढ़ने लगी है और दूसरी वजह यह है कि आयातित कोयले पर आधारित निजी क्षेत्री की बिजली कंपनियों के संयंत्रों से उत्पादन का स्तर लगातार घट रहा है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी आसमान छू रही कोयले की कीमत

सूत्रों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से कोयले की कीमत क्रूड व गैस की तरह ही आसमान छू रही हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत कुछ समय पहले 400 डॉलर प्रति टन हो गई थी जो अभी घट कर 300 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है। दूसरी तरफ आयातित कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों का कहना है कि 150 डॉलर प्रति टन से ज्यादा कीमत पर कोयला देश ला कर बिजली बनाने का कोई फायदा नहीं है।

कम कीमत पर बिजली बेचने की इजाजत

वजह यह है कि पहले इन्हें घरेलू बाजार में 20 रुपये प्रति यूनिट की कीमत तक बिजली बेचने की इजाजत थी लेकिन अप्रैल, 2022 के पहले हफ्ते में केंद्रीय बिजली नियामक आयोग ने यह सीमा घटा कर 12 रुपये प्रति यूनिट कर दी है। इसके पहले बिजली मंत्रालय ने आयोग को पत्र लिख कर पावर एक्सचेंज में बिजली की कीमतों के लगातार 20 रुपये प्रति यूनिट पर बने रहने पर अपनी आपत्ति जताई थी।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी कोयला मिलना भी मुश्किल

देश में आयातित कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों की क्षमता 16,730 मेगावाट है। ऐसे में बिजली मंत्री ने राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक में निर्देश दिया है कि राज्य सरकारों की बिजली इकाइयां अपने आवंटन का 25 फीसद तक कोयला उन संयंत्रों को बेच सकती हैं जिनको इसकी जरूरत है। साथ ही राज्यों को कहा गया है कि वो घेरलू कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों को 10 फीसद आयातित कोयले को मिश्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ताकि बिजली की बढ़ती मांग के मुताबिक ज्यादा उत्पादन हो सके।

कितने बिजली संयंत्र (Coal Crisis) इसके लिए आगे आते हैं, यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी कोयला मिलना भी मुश्किल हो रहा है क्योंकि रूस पर गैस व क्रूड की निर्भरता कम करने में जुटे यूरोपीय देश दक्षिण अफ्रीका व आस्ट्रेलिया जैसे बड़े निर्यातकों से ज्यादा कोयला खरीदने लगे हैं।

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