Diabetes Ramlila : ‘मधुमेह की रामलीला’ ने मंच पर रच दिया नया इतिहास…! डायबिटीज पर जागरूकता का अद्भुत संदेश…RSSDI की राज्य स्तरीय कांफ्रेंस में डॉ. अजय सहाय की लेखनी और निर्देशन ने किया मंत्रमुग्ध

रायपुर, 17 अक्टूबर। Diabetes Ramlila : डायबिटीज जैसे गंभीर रोग पर जनजागरूकता के लिए रिसर्च सोसाइटी फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया (RSSDI) द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय कॉन्फ्रेंस में एक अनोखी और रचनात्मक पहल देखने को मिली। रायपुर में आयोजित इस सम्मेलन में डॉ. अजय सहाय द्वारा लिखित और निर्देशित नृत्य-नाटिका ‘मधुमेह की रामलीला’ ने न सिर्फ दर्शकों का मन मोह लिया, बल्कि डायबिटीज के खतरे और बचाव के संदेश को गहराई से प्रस्तुत किया।
रामायण शैली में रची गई डायबिटीज कथा

डॉ. राका शिवहरे द्वारा संकल्पित इस नाटिका की कथा संरचना रामायण के ढांचे पर आधारित थी, जिसमें रावण की भूमिका को मधुमेह के रूप में दर्शाया गया। रावण (डॉ. स्मित श्रीवास्तव) द्वारा इंसुलिन रूपी सीता (डॉ. शिखा शिवहरे) का अपहरण करना, और फिर भगवान राम (डॉ. राका शिवहरे), हनुमान (पुष्पेन्द्र सिंह), और विभीषण (डॉ. प्रणय जैन) द्वारा मधुमेह से मुक्ति के उपायों को प्रस्तुत करना, यह सब नाटकीयता के साथ, लेकिन पूरी वैज्ञानिकता के साथ दर्शाया गया।
डॉ. अजय सहाय स्वयं नारद मुनि की भूमिका में सूत्रधार के रूप में मंच पर उपस्थित थे, जो पूरे घटनाक्रम को जोड़ते हुए दर्शकों को यह समझाते हैं कि मधुमेह रूपी रावण को अस्त्र-शस्त्र नहीं, बल्कि जागरूकता, जीवनशैली में बदलाव और सामूहिक प्रयास से पराजित किया जा सकता है।
कलाकारों ने किया दर्शकों को मंत्रमुग्ध
रावण की भूमिका में डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने गंभीरता और सशक्त अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। राम-सीता के रूप में डॉ. राका शिवहरे और डॉ. शिखा शिवहरे की प्रस्तुति प्रभावशाली रही। हनुमान की भूमिका में बॉलीवुड अभिनेता पुष्पेन्द्र सिंह ने मंच पर ऊर्जा भर दी। जनता की पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए डॉ. संध्या दुबे, डॉ. मनोज सोनी और डॉ. अनुराग अग्रवाल ने भूमिका निभाई। प्रस्तुति के अंत में तालियों की गूंज इस बात की गवाही थी कि नाट्य मंचन ने दर्शकों के मन को छुआ और संदेश को प्रभावी ढंग से पहुंचाया।
समाज के लिए संदेश

डॉ. अजय सहाय ने बताया कि भारत को ‘डायबिटीज की राजधानी’ (Diabetes Capital of the World) कहा जा रहा है, जो चिंता का विषय है। यही कारण है कि उन्होंने इस नाटिका को जन-जागरूकता का माध्यम बनाया है। उन्होंने यह भी बताया कि “मधुमेह की रामलीला” का मंचन केवल रायपुर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे देश में इस नाटिका को प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग इस रोग को समझ सकें और समय रहते बचाव कर सकें।
‘मधुमेह की रामलीला’ सिर्फ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सार्थक स्वास्थ्य अभियान है, जिसमें कला और चिकित्सा का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह पहल दिखाती है कि डॉक्टर सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के मंच पर भी बदलाव ला सकते हैं।