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IRDAI को मिलना चाहिए अस्‍पतालों को नियंत्रित करने का अधिकार, इलाज की बढ़ती लागत से नियामक चिंतित

नई दिल्ली, 7 दिसंबर। बीमा क्षेत्र के नियामक इरडा (IRDAI) ने इलाज की बढ़ती लागत पर चिंता जताते हुए सरकार से अस्पतालों (Hospitals) को रेगुलेट करने का अधिकार मांगा है। नियामक ने कहा कि अगर यह संभव नहीं हो तो अस्पतालों को रेगुलेट करने के लिए एक अलग नियामक बनाया जाना चाहिए। बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) के सदस्य टीएल अलमेलू ने कहा कि नियामक के तौर पर इरडा स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में हो रही लगातार वृद्धि से खासा चिंतित है और लोगों के हितों की रक्षा करना चाहता है। उन्होंने कहा, ‘बीमा नियामक के तौर पर हमारे लिए पूरे हेल्थ सिस्टम को रेगुलेट करना बहुत मुश्किल नहीं है। अभी हम इसका एक हिस्सा रेगुलेट करते हैं और वह है बीमा कंपनियां। बीमा कंपनियों से संबंधित थर्ड पार्टी यानी टीपीए को नियंत्रित करने की कोशिश करें तो अस्पतालों को रेगुलेट कर सकेंगे।’

अलमेलू के अनुसार अभी IRDAI बीमा कंपनियों के प्रीमियम बढ़ाने के तरीके पर नजर रखता है। लेकिन अस्पतालों के लिए कोई नियामक नहीं है। कुछ ऐसे वाकये हुए जिसमें बीमा नियामक को बीच-बचाव करना पड़ा और राज्य सरकारों से बात करनी पड़ी। जब इस मुद्दे पर अस्पतालों से जवाब मांगा गया तो उन्हें समय लगा। इसलिए हमारी इच्छा है कि या तो इसके लिए अलग रेगुलेटर हो, या इरडा को ही अस्तपालों को रेगुलेट करने की अनुमति दे दी जाए ताकि एक जवाबदेह तंत्र बनाया जा सके।’

इरडा सदस्य ने कहा कि कोरोना से जुड़ी कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं जहां अस्पतालों ने कैशलेस इलाज देने से इन्कार कर दिया। हम अस्पतालों को कैशलेस इलाज देने के लिए आगे आने को कहते हैं। जितने लोगों ने हेल्थ इंश्योरेंस करा रखा है, उसके मुकाबले कैशलेस इलाज देने वाले अस्पतालों की संख्या नगण्य है। कई अस्पताल ऐसे भी हैं जो कैशलेस इलाज तो देते हैं, लेकिन भारी-भरकम बिल देखकर मरीज की हालत खराब हो जाती है। नियामकीय अंकुश से लोग हेल्थ इंश्योरेंस लेने के प्रति लोग आकर्षित होंगे और बीमा प्रणाली पर उनका विश्वास बढ़ेगा।

इसलिए जरूरी है अस्पतालों का नियामक

नियामक नहीं होने से कई बार अस्पताल और मरीज के बीच बिल को लेकर विवाद हो जाता है, प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ता है- इलाज खर्च को लेकर कई बार अस्पताल और बीमा प्रदाता कंपनी के बीच खींचतान, तो कई बार साठगांठ होती है, जिसका खामियाजा मरीज को भुगतना पड़ता है- बीमाधारकों की संख्या के लिहाज से पर्याप्त अस्पताल नहीं हैं, अगर हैं भी तो जो कैशलेस इलाज मुहैया कराते हैं उनमें से कई अक्सर पहले रकम जमा करा लेते हैं

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