छत्तीसगढराज्य

National Tribal Literature Fest : पद्मश्री डॉ. बेसरा के विचार, बोले- वाचिक परम्परा ही आदिवासी का जिंदा साहित्य

रायपुर, 21 अप्रैल। National Tribal Literature Fest : राजधानी रायपुर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन आज प्रख्यात साहित्यकारों द्वारा अपने विचारों का आदान-प्रदान किया गया।

साहित्यिक चर्चा में 33 से अधिक प्रतिभागियों ने लिया भाग

उल्लेखनीय है कि साहित्य परिचर्चा (National Tribal Literature Fest) में 33 से अधिक देश के प्रख्यात साहित्यकार शामिल हुए हैं। जिनमें द्वितीय दिवस में कुल 33 प्रतिभागियों ने परिचर्चा में हिस्सा लिया। आज के सत्र में ‘भारत में जनजातियों में वाचिक परंपरा के तत्व एवं विशेषताएं तथा संरक्षण हेतु उपाय, भारत में जनजातीय धर्म एवं दर्शन, जनजातीय लोक कथाओं का पठन एवं अनुवाद तथा विभिन्न बोली भाषाओं में जनजातीय लोक काव्य पठन एवं अनुवाद’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।

आज के सत्र की अध्यक्षता पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा ने की जबकि सह सत्र अध्यक्षता प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह, रिर्पाेटियर डॉ. देवमत मिंज एवं डॉ. अभिजीत पेयंग द्वारा एवं आभार प्रदर्शन डॉ. रूपेन्द्र कवि द्वारा किया गया।

पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा ने साहित्य परिचर्चा पर अपने विचार वक्तव्य करते हुए कहा कि केवल वाचिक परम्परा ही आदिवासी का जिन्दा साहित्य है। क्योंकि वाचिक परम्परा के द्वारा ही विभिन्न समाज (किसी लेखन प्रणाली के बिना वाचिक इतिहास, वाचिक साहित्य, वाचिक कानून तथा अन्य ज्ञान का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचार करते आये हैं। अन्य संस्कृतियों की भांति भारतीय संस्कृति में वाचिक परम्परा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। अतः इसे संजोह कर रखने की जरूरत है।

इसके अलावा डॉ. सत्यरंजन महाकुल, डॉ. स्नेहलता नेगी, डॉ. गंगा सहाय मीणा, वाल्टर भेंग, वंदना टेटे, प्रो.पी. सुब्याचार्य रूद्रनारायण पाणिग्रही बी. आर.साहू, डॉ. संदेशा रायपा, जयमती कश्यप, डॉ. रेखा नागर डॉ. अल्का सिंह, डॉ. किरण नुरूटी, सहित 33 से अधिक वक्ताओं ने भी साहित्य परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त किये।

41 शोधकर्ताओं ने प्रस्तुत किया शोध पत्र वाचन

शोधपत्र वाचन में आज कुल 41 शोधपत्र पढे गये इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. टी. के. वैष्णव द्वारा की गई, जबकि सह अध्यक्षता प्रो. अरूण कुमार द्वारा की गई। दूसरे दिन के सत्र में जनजातीय साहित्य में लिंग संबंधी मुददे, जनजातीय कला साहित्य, जनजातीय साहित्य में सामाजिक-सांस्कृतिक संघर्ष, जनजातीय साहित्य में मुद्दे, चुनौतियां एवं संभावनाएं तथा जनजातीय विकास मुदर्द एवं चुनौतियां विषय पर शोधपत्र का वाचन किया गया।

शोध पत्र में आदिवासियों के कई मापदंड किए प्रस्तुत

शोधपत्र वाचन में प्रमुख रूप से आदिवासियों की मुख्य भाषण निर्माण, मिथक प्रथागत, सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था, ओडिशा की बोंडा जनजाति के दृष्टिकोण, विश्वास, परंपरा और लिंग मानदंड पर सरत कुमार जेना द्वारा प्रस्तुत किया गया। प्रो. जेना ने कस्टमरी लॉ को बचाने के प्रयास करने तथा उड़ीसा के पिछड़ी जनजाति बण्डा के संबंध में अवगत कराया। पूर्वोत्तर क्षेत्र के आदिवासी साहित्य में महिलाओं की स्थिति पर प्रो. ज्योत्सना द्वारा शोधपत्र का वाचन प्रस्तुत किया गया। प्रो. ज्योत्सना ने पूर्वाेत्तर राज्यों की जनजाति महिलाओं के साहस पर प्रकाश डालते हुए मणीपुर असम, नागालेण्ड एवं अन्य राज्य के रीवा, नागा जाति के बारे में भी उल्लेख किया।

इसके अलावा झारखंड जहां जनजातीय साहित्य बच्चों के मन में अंकुरित होता है पर विनय पाठक, गोंड चित्रकला का कला मानवशास्त्र- मानव और प्रकृति के बीच संबंध पर विचार पर डॉ विनीता दीवान, भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पूर्व साक्षर जनजाति के अंग (जरवा) अध्ययन के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं और मूल्यों को समझना पर डॉ. पीयुष रंजन साहू द्वारा शोधपत्र प्रस्तुत किया गया।

अण्डबार निकोबार के 6 जनजाति की जीवन शैली से रूबरू

डॉ. पीयुष रंजन साहू (National Tribal Literature Fest) ने अण्डबार निकोबार के छः जनजाति समुदाय के जीवन शैली, रूढ़ी परम्परा व जन्म, मृत्यु, विवाह का सचित्र वर्णन किया। जनजातीय विकास मुद्दे एवं चुनौतियां पर डॉ. ललित कुमार, जनजातीय विकास में मनोवैज्ञानिक चुनौतियां पर प्रीति वर्मा, जनजाति विकास मुद्दे चुनौतियां एवं संभावनाएं पर डॉ. अरविन्द कुमार तिवारी, जनजातीय विकास मुद्दे एवं चुनौतियां पर सुनीता कुमारी एवं डॉ. संध्या जसपाल, जनजातीय समाज चुनौतियां एवं संघर्ष पर आचार्य हिरेन्द्र गौतम,जनजातीय विकास, चिंता और चुनौतियां पर गजानंद नायक, प्रो. रीना कुमारी ने जनजातीय कला, साहित्य का संरक्षण करने एवं क्षेत्र के विकास के नाम पर विस्थापन होने पर उनकी कला, संस्कृति एवं साहित्य का विघटन होने से बचाने पर जोर दिया।

इसके अतिरिक्त बस्तर की जनजातीय कला एवं जनजातीय साहित्य डॉ. ध्रुव तिवारी ने बस्तर के लोककला, चित्रकला एवं कलाकारों का संरक्षण, संवर्धन और रोजगारों के संबंध में बताया आदि थे। प्रो. रमन कुमार ने जनजातीय समाज के इतिहास का दस्तावेजीकरण करने पर जोर दिया।

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