छत्तीसगढ

निकाय चुनाव में ब्राह्मण पारा वार्ड में हार का विश्लेषण विकास ने कुछ यूं किया

बकौल विकास- आज ब्राह्मण पारा वार्ड चुनाव के विश्लेषण की आवश्यकता मुझे महसूस हुई तो आप के सामने कुछेक तथ्य प्रस्तुत करता हूं,सन 2009 के निकाय चुनाव में कांग्रेस पार्टी की मात्र 5 वोटों से ही विजय हुई थी फिर मुझे सन 2014 में कांग्रेस पार्टी ने पार्षद चुनाव का टिकिट दिया था और मात्र 8 दिनों के अंतराल में चुनाव प्रचार करना था नतीजा 518 वोट से मेरी पराजय हुई।और उसके बाद के 2017-18 के विधानसभा चुनाव में दोनों वार्ड मिलाकर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की बढ़त लगभग 2800 वोटों की थी।
2019 के निकाय चुनाव में जहाँ लोकसभा के चुनाव के बाद पहला चुनाव रहा जहाँ से भाजपा को (ब्राह्मण पारा+कंकाली पारा वार्ड) में लगभग 4200 वोटो की लीड मिली थी(परिसीमन में दो वार्ड एक हो गये थे) वहाँ से फिर हमें 531 वोटों से पराजय का सामना करना पड़ा।
शीर्ष नेतृत्व के आदेश पर का मैंने और मेरे परिवार ने अक्षरशः पालन किया और आगे भी करेंगे और मैं अपने आलोचकों का बेहद सम्मान करता हूं जिनकी आलोचना मुझे और भी शक्ति प्रदान करती ताकि मैं पुनः जनहित के लिये लड़ता रहूं,उनके चेहरों की मुस्कान मुझे ऊर्जा प्रदान करती है,ताकि में शसक्त होकर अपने विरोधियों का सामना कर सकूं। हार-जीत तो राजनीति का हिस्सा है और मैं एक निमित्त मात्र हूँ। मैं आभारी हूं मेरी अर्धागिनी रेखा का जो अपने 10 साल और 3 साल के अबोध बेटे को घर मे छोड़कर चुनाव के रण में मेरे कहने पर जूझती रही।
कुछ एक बाते है जिसे मैं सार्वजिक रूप से नही कह सकता कि मेरे साथ क्या छलावा किया गया खैर..
अटल जी की चंद लाइनों के बाद इस पाती को समाप्त करता हूं-
“इसे मिटाने की साज़िश करने वालों से कह दो
कि चिंगारी का खेल बुरा होता है;
औरों के घर आग लगाने का जो सपना,
वो अपने ही घर में सदा खड़ा होता है.”

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